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ग़ज़ल
दिल पे वो वक़्त भी किस दर्जा गिराँ होता है
ज़ब्त जब दाख़िल-ए-फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ होता है
आमिर उस्मानी
ग़ज़ल
क़िस्मत में हैं बर्बादियाँ याद-ए-वतन से क्या ग़रज़
मैं फूल हूँ टूटा हुआ मुझ को चमन से क्या ग़रज़
नाज़िश बदायूनी
ग़ज़ल
हर रोज़ ही करते हैं काग़ज़ पे ये फ़न ज़िंदा
हम अहल-ए-सुख़न हैं हम रखते हैं सुख़न ज़िंदा
जावेद क़मर
ग़ज़ल
फिर हुजूम-ए-ग़म-ए-जानाँ है ख़ुदा ख़ैर करे
फिर मिरी मौत का सामाँ है ख़ुदा ख़ैर करे