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ग़ज़ल
कहीं ज़ुल्मतों में घिर कर है तलाश-ए-दश्त-ए-रहबर
कहीं जगमगा उठी हैं मिरे नक़्श-ए-पा से राहें
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
गर्दिश-ए-दश्त-ए-तमन्ना से मिला कुछ भी नहीं
ग़लग़ला होने का सुनते थे हुआ कुछ भी नहीं
इम्दाद आकाश
ग़ज़ल
ग़ुबार-ए-दश्त-ए-तलब में हैं रफ़्तगाँ क्या क्या
चमक रहे हैं अँधेरे में उस्तुख़्वाँ क्या क्या
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
सर-ए-शोरीदा पा-ए-दश्त-ए-पैमा शाम-ए-हिज्राँ था
कभी घर था बयाबाँ में कभी घर में बयाबाँ था
बयान मेरठी
ग़ज़ल
हवा-ए-दश्त-ए-अना चली है तो सब परेशान हो रहे हैं
ग़ुबार सी ज़ीस्त उड़ रही है तो सब परेशान हो रहे हैं
साग़र मशहदी
ग़ज़ल
जिसे मिल जाए ख़ाक-ए-पाक-ए-दश्त-ए-कर्बला 'परवीं'
पलट कर भी न देखे वो कभी इक्सीर की सूरत