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ग़ज़ल
आज उस फूल की ख़ुशबू मुझ में पैहम शोर मचाती है
जिस ने बे-हद उजलत बरती खिलने और मुरझाने में
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
जवाँ होने से पहले ही बुढ़ापा आ गया हम पर
हमारी मुफ़्लिसी पर उम्र की उजलत ज़ियादा थी
राजेश रेड्डी
ग़ज़ल
हमें इस आलम-ए-हिज्राँ में भी रुक रुक के चलना है
उन्हें जाने दिया जाए जिन्हें उजलत ज़ियादा है
शाहीन अब्बास
ग़ज़ल
मैं न कहता था कि उजलत इस क़दर अच्छी नहीं
एक पट खिड़की का आ कर देख लो वा रह गया