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ग़ज़ल
तिरी महफ़िल में फ़र्क़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ कौन देखेगा
फ़साना ही नहीं कोई तो उनवाँ कौन देखेगा
अज़ीज़ वारसी
ग़ज़ल
कुफ़्र-ओ-ईमाँ दोनों से ता-वक़्त-ए-आख़िर काम था
दिल में थी याद-ए-बुताँ लब पर ख़ुदा का नाम था
शहीर मछलीशहरी
ग़ज़ल
कुफ़्र-ओ-ईमाँ में वही रब्त-ए-निहाँ है कि जो था
शोर-ए-नाक़ूस में अंदाज़-ए-अज़ाँ है कि जो था
सय्यद सफ़दर हुसैन
ग़ज़ल
ऐ बे-दरेग़ ओ बे-अमाँ हम ने कभी की है फ़ुग़ाँ
हम को तिरी वहशत सही हम को सही सौदा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इबादत-ख़ाना-हा-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ में गया लेकिन
निदा आई कि वापस जा यहाँ ग़द्दार हैं दोनों
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
ब-नाम-ए-कुफ्र-ओ-ईमाँ बे-मुरव्वत हैं जहाँ दोनों
वहाँ शैख़-ओ-बरहमन की शनासाई भी होती है
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
हर इक जज़्बा तअ'य्युन से गुरेज़ाँ है जहाँ मैं हूँ
ग़म-ए-दिल बे-नियाज़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ है जहाँ मैं हूँ
कैफ़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
हदें मिट जाएँ ताकि इम्तियाज़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ की
जमाल-ए-यार को दानिस्ता सज्दा कर लिया मैं ने
सय्यद अनीसुद्दीन अहमद रीज़वी अमरोहवी
ग़ज़ल
हक़ीक़त दीन-ओ-दुनिया की समझ में आ गई जिस दम
न पूछो कितनी बहस-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ पर हँसी आई
नातिक़ आज़मी
ग़ज़ल
कैफ़ियात-ए-सज्दा-ए-ज़ौक़-ए-मोहब्बत अल-अमाँ
का'बा-ए-दिल बे-नियाज़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ हाए हाए
बासित भोपाली
ग़ज़ल
दर-ए-मय-ख़ाना वा होता है वाइज़ मैं अभी आया
ज़रा पी लूँ तो बहस-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ देख लेता हूँ