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ग़ज़ल
शाम-ए-फ़ुर्क़त इंतिहा-ए-गर्दिश-ए-अय्याम है
जितनी सुब्हें हो चुकी हैं आज सब की शाम है
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
एक मंज़र पर नज़र ठहरे तो ठहरे किस तरह
हम मिज़ाज-ए-गर्दिश-ए-अय्याम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
हदीस-ए-तल्ख़ी-ए-अय्याम से तकलीफ़ होती है
सहर वालों को ज़िक्र-ए-शाम से तकलीफ़ होती है
हफ़ीज़ बनारसी
ग़ज़ल
कभी जब दास्तान-ए-गर्दिश-ए-अय्याम लिखता हूँ
तो फिर उनवान की सूरत में अपना नाम लिखता हूँ
वलीउल्लाह वली
ग़ज़ल
फ़ित्ना-ए-गर्दिश-ए-अय्याम से जी डरता है
साया-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम से जी डरता है