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नज़्म
मालिक-ए-अर्ज़-ओ-समा को याद करता है जहाँ
हम्द गाती है ज़मीं तस्बीह पढ़ता आसमाँ
मोहम्मद असदुल्लाह
नज़्म
ये मई की पहली, दिन है बंदा-ए-मज़दूर का
मुद्दतों के ब'अद देखा इस ने जल्वा हूर का
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
हो तो सकता है किसी देव के जैसे मैं भी
ले उड़ूँ तुझ को कहीं दूर की दुनियाओं में
मोहम्मद ओवैस मालिक
नज़्म
ज़ुल्फ़-ए-ख़ूबाँ की तरह देहली की सड़कें हैं दराज़
और तांगा हाँकने वालों पे ज़ाहिर है ये राज़
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
न पूछ ऐ हम-नशीं कॉलेज में आ कर हम ने क्या देखा
ज़मीं बदली हुई देखी फ़लक बदला हुआ देखा