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नज़्म
बहुत जंजाल हैं पर हो यहाँ तो ''या'' में और ''या'' में
तुम्हारी जो हमासा है भला उस का तो क्या कहना
जौन एलिया
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
रुख़्सत हुआ वो बाप से ले कर ख़ुदा का नाम
राह-ए-वफ़ा की मंज़िल-ए-अव्वल हुई तमाम
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
पढ़ के जिस के हो गईं हुश्यार अक़वाम-ए-ग़ुलाम
इश्तिराकी फ़ल्सफ़ा का खुल गया हर दिल में बाब
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
'ज़ेहरा' ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है
हालाँकि दर-ईं-अस्ना क्या कुछ नहीं देखा है
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
सिर्फ़ इक काग़ज़ के पुर्ज़े से हुआ ये इंक़लाब
ख़ुद-ब-ख़ुद हर इक शरारत का हुआ है सद्द-ए-बाब