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नज़्म
कुलबुलाती बस्तियाँ मुश्किल से दो-चार आदमी
कितना कमयाब आदमी है कितना बिसयार आदमी
सय्यद ज़मीर जाफ़री
नज़्म
वो इक मुसाफ़िर था जा चुका है
बता गया था कि बे-यक़ीनों की बस्तियों में कभी न रहना