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नज़्म
उरूक़-मुर्दा-ए-मशरिक़ में ख़ून-ए-ज़िंदगी दौड़ा
समझ सकते नहीं इस राज़ को सीना ओ फ़ाराबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ऐ दिल पहले भी तन्हा थे, ऐ दिल हम तन्हा आज भी हैं
और उन ज़ख़्मों और दाग़ों से अब अपनी बातें होती हैं
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
दौलत के फ़रेबी बंदों का ये किब्र और नख़वत मिट जाए
बर्बाद वतन के महलों से ग़ैरों की हुकूमत मिट जाए