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नज़्म
फ़रेब खाए हैं रंग-ओ-बू के सराब को पूजता रहा हूँ
मगर नताएज की रौशनी में ख़ुद अपनी मंज़िल पे आ रहा हूँ
जमील मज़हरी
नज़्म
ये नताएज हैं तुम्हारे बे-ग़रज़ आ'माल के
तुम नहीं ज़िंदा मगर ज़िंदा तुम्हारा नाम है