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नज़्म
मार्क्स के इल्म ओ फ़तानत का नहीं कोई जवाब
कौन उस के दर्क से होता नहीं है फ़ैज़-याब
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
सुन मिरी बातें ज़रा सुन ऐ ज़लील-ओ-ख़्वार क़ौम
ऐ वतन-दुश्मन सितम-आज़ार ऐ ग़द्दार क़ौम
अमीन सलौनवी
नज़्म
ग़ुंचा-ए-दिल मर्द का रोज़-ए-अज़ल जब खुल चुका
जिस क़दर तक़दीर में लिक्खा हुआ था मिल चुका
जोश मलीहाबादी
नज़्म
जो वक़्त मिला हम को अल्लाह की अमानत है
इक ख़्वाब का चेहरा है ता'बीर की सूरत है