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नज़्म
सुब्ह ग़र्क़-ए-बहस हो ग़ुंचे खिलाने के एवज़
दर्स दें मौजें सबा की गुनगुनाने की एवज़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ये नग़्मा क्या है ज़ेर-ए-पर्दा-हा-ए-साज़ कम समझे
रहे सब गोश-बर-आवाज़ लेकिन राज़ कम समझे
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
मैं ज़ेर-ए-साया-ए-उम्मीद जिस के बढ़ न सका
वो माँ मैं जिस से शरारत की दाद पा न सका
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
ब-ज़ेर-ए-शाख़-ए-गुल-ए-शगुफ़्ता मैं सूरत-ए-शम्अ' चुप खड़ी हूँ
फ़ज़ा में कोयल की इक सदा है
बिलक़ीस जमाल बरेलवी
नज़्म
उठ जा नज़र से मेरी हाँ ऐ हिजाब-ए-हस्ती
हुस्न-ए-अज़ल निहाँ है ज़ेर-ए-नक़ाब-ए-हस्ती