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नज़्म
'इश्क़ की शान से लर्ज़ां है ख़ुदाई ऐ दोस्त
'अक़्ल भूली नहीं वो मंज़र-ए-ख़्वाबीदा-ए-नील
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
वो कुछ नहीं है अब इक जुम्बिश-ए-ख़फ़ी के सिवा
ख़ुद अपनी कैफ़ियत-ए-नील-गूँ में हर लहज़ा
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
रिदा-ए-नील-गूँ पर चाँदनी जब खेत करती है
तिरे आँचल की लहरों पर हवाएँ रक़्स करती हैं
सिद्दीक़ कलीम
नज़्म
जहाँ तक देख पाता हूँ ज़मीं पर ताबिश-ए-ज़र है
फ़ज़ा-ए-नील-गूँ में बर्ग-अफ़्शानी से मंज़र है
उबैदुर्रहमान आज़मी
नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
हिन्दोस्तान है इक दरिया-ए-हुस्न-ए-क़ुदरत
और उस में पंखुड़ी है तू ख़ुशनुमा कँवल की