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नज़्म
और सुनी बंसी की है बरसों सदा-ए-दिल-नवाज़
दास्तान-ए-दर्द-ए-दिल अफ़साना-ए-सोज़-ओ-गुदाज़
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
सुकूत-आमोज़ तूल-ए-दास्तान-ए-दर्द है वर्ना
ज़बाँ भी है हमारे मुँह में और ताब-ए-सुख़न भी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दास्तान-ए-रंज-ओ-ग़म जब सुन चुकी वो नाज़नीं
नाज़ से बोली कि ये सब सच है हाँ ऐ नुक्ता-चीं
नबीउल हसन शमीम
नज़्म
बदल दे क़िस्सा-ए-मजनून-ए-पाबंद-ए-सलासिल को
बदल दे दास्तान-ए-कोहना-ए-लैला-ए-महमिल को
बर्क़ आशियान्वी
नज़्म
सुनो गर सुन सको तुम दास्तान-ए-ख़ूँ-चकाँ मेरी
रुला देगी मगर आँसू लहू के दास्ताँ मेरी