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नज़्म
त'अल्लुक़ क़त' जब होने को होगा ज़िंदगानी से
तू क्या ले जाएगा ऐ बे-ख़बर दुनिया-ए-फ़ानी से
बिसमिल देहलवी
नज़्म
ये बात अजीब सुनाते हो वो दुनिया से बे-आस हुए
इक नाम सुना और ग़श खाया इक ज़िक्र पे आप उदास हुए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
अन-पढ़ था और जाहिल क़ाबिल मुझे बनाया
दुनिया-ए-इल्म-ओ-दानिश का रास्ता दिखाया
अहमद हातिब सिद्दीक़ी
नज़्म
ऐ इंक़लाब-ए-दुनिया ऐ गर्दिश-ए-ज़माना
ऐ रोज़गार-ए-फ़ानी सुन तो मिरा फ़साना