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नज़्म
मेरी फ़रियाद-ए-जिगर-दोज़ मिरा नाला-ए-ज़ार
शिद्दत-ए-कर्ब में डूबी हुई मेरी गुफ़्तार
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हर सई-ए-जिगर-दोज़ के हासिल के नए ख़्वाब
आदम की विलादत के नए जश्न पे लहराते जलाजिल के नए ख़्वाब
नून मीम राशिद
नज़्म
क़हत उस पर क़त्ल-ओ-ग़ारत का ये आलम हाए हाए
हर तरफ़ है नाला-ओ-फ़रियाद-ओ-मातम हाए हाए
सरीर काबिरी
नज़्म
दिल है फ़ौलाद का पत्थर का जिगर रखते हैं
जान जोखों में कफ़-ए-दस्त पे सर रखते हैं
सरदार नौबहार सिंह साबिर टोहानी
नज़्म
टुकड़े होता है जिगर सुन के ये उन की फ़रियाद
फिर भी देखेंगे इलाही कभू देहली आबाद
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
नज़्म
ऐ मिरे मुर्ग़े मिरे सर्माया-ए-तस्कीन-ए-जाँ
तेरी फ़ुर्क़त में है बे-रौनक़ मिरा सारा मकाँ