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नज़्म
वसूल होते हैं पहले ये नामा-ओ-पैग़ाम
कि ऐ शहंशह-ए-अक़्लीम-ए-'हाफ़िज़'-ओ-'ख़य्याम'
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
जीना है तो जीने के अंदाज़ भी पैदा कर
काम आएँगे आबा के ये नाम-ओ-निशाँ कब तक
बशीरून्निसा बेगम बशीर
नज़्म
न जहल से कोई ढारस न आगही से तसल्ली
न वक़्त-ए-नाला-ओ-ज़ारी न होश-ए-ज़ख़्म-शुमारी
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
याँ है जो चीज़ वो सच्ची नहीं जुज़ नाम-ए-ख़ुदा
नाम-ओ-शोहरत के ये चुम्कारे भी बिल्कुल झूटे