आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "मक़्ता-ए-सिलसिला-ए-शौक़"
नज़्म के संबंधित परिणाम "मक़्ता-ए-सिलसिला-ए-शौक़"
नज़्म
सब गलियों में तरनजन थे और हर तरनजन में सखियाँ थीं
सब के जी में आने वाली कल का शौक़-ए-फ़रावाँ था
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
इक़बाल सुहैल
नज़्म
ख़त्म हो जाएगा ये सिलसिला-ए-अहद-ए-वफ़ा
ज़िंदगी अब तो बिखर जाएगी टूटे हुए तारों की तरह