आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "राज़-ए-हक़-ओ-बातिल"
नज़्म के संबंधित परिणाम "राज़-ए-हक़-ओ-बातिल"
नज़्म
हर मसर्रत में है राज़-ए-ग़म-ओ-हसरत पिन्हाँ
क्या सुनोगी मिरी मजरूह जवानी की पुकार
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अभी तहज़ीब-ए-अदल-ओ-हक़ की कश्ती खे नहीं सकती
अभी ये ज़िंदगी दाद-ए-सदाक़त दे नहीं सकती
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
यूँ तो हम हर शम-ए-इल्म-ओ-फ़न के परवाने रहे
ये हक़ीक़त है कि हम तेरे भी दीवाने रहे
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मैं हूँ 'मजाज़' आज भी ज़मज़मा-ए-संज-ओ-नग़्मा-ख़्वाँ
शाइर-ए-महफ़िल-ए-वफ़ा मुतरिब-ए-बज़्म-ए-दिलबराँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
इक़बाल सुहैल
नज़्म
मिटा कर अपनी हस्ती राह-ए-हक़ में खुल गईं आँखें
कि मर कर ज़िंदगी का राज़-ए-पिन्हाँ देख लेता हूँ
लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
नज़्म
कुफ्र-ओ-बातिल के उड़े हाथों के तोते ऐ 'चर्ख़'
हक़-परस्ती का वो यूँ डंका बजाता आया
चरख़ चिन्योटी
नज़्म
राह-ए-हक़ में न थे पाबंद किसी मज़हब के
तारिक़-ए-सुबहा-ओ-ज़ुन्नार गुरु-नानक थे