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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
फ़ना कर देंगे अहल-ए-जब्र-ओ-इस्तिब्दाद की हस्ती
ज़मीं में दफ़्न रस्म-ए-जहल-ओ-वहशत कर के छोड़ेंगे
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
ये रह-ओ-रस्म जो इज़हार-ए-मोहब्बत भी नहीं
है तिरे दम से ये राहत कि जो राहत भी नहीं
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
बहीमियत और वहशत-ओ-जब्र का परस्तार भी वही है
ज़मीन पे क़ाबील के क़बीले की रस्म-ए-बे-दाद औज पर है
ज़िया जालंधरी
नज़्म
सुना है हो भी चुका है फ़िराक़-ए-ज़ुल्मत-ओ-नूर
सुना है हो भी चुका है विसाल-ए-मंज़िल-ओ-गाम