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नज़्म
तुम्हारे रोज़-ओ-शब से अब कोई निस्बत नहीं लेकिन
तुम्हारा 'अक्स हर लम्हे के आईने में मिलता है
बशर नवाज़
नज़्म
वो जिस की दीद में लाखों मसर्रतें पिन्हाँ
वो हुस्न जिस की तमन्ना में जन्नतें पिन्हाँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
दिल भी क्या शय है कि भोला भी है 'अय्यार भी है
ख़ाकसारी का भी रंग इस में है पिंदार भी है