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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जिस में एक दूसरे से हम-किनार तैरते रहे
मुहीत जिस तरह हो दाएरे के गिर्द हल्क़ा-ज़न
नून मीम राशिद
नज़्म
अपने माज़ी के तारों में हम से पिरोया गया है
हमीं में कि जैसे हमीं हों समोया गया है
नून मीम राशिद
नज़्म
मुझ ऐसे कितने ही गुमनाम बच्चे खेले हैं
इसी ज़मीं से इसी में सुपुर्द-ए-ख़ाक हुए
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
इलाही ख़ैर वो हर दम नई बेदाद करते हैं
हमीं तोहमत लगाते हैं जो हम फ़रियाद करते हैं
राम प्रसाद बिस्मिल
नज़्म
ख़ुदावंद-ए-दो-आलम से वो ये बेवपार करते हैं
जो रक्खा ही नहीं रोज़ा उसे इफ़्तार करते हैं
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
अभी हम लोग बच्चे हैं मगर इक दिन जवाँ होंगे
हमीं इक दिन वक़ार-ए-मादर-ए-हिन्दोस्ताँ होंगे