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नज़्म
यही वो मंज़िल-ए-मक़्सूद है कि जिस के लिए
बड़े ही अज़्म से अपने सफ़र पे निकले थे
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
कैसे समझाऊँ कि उल्फ़त ही नहीं हासिल-ए-उम्र
हासिल-ए-उम्र इस उल्फ़त का मुदावा भी तो है
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
ख़्वाब फिर ख़्वाब थे ख़्वाबों का भरोसा क्या था
हासिल-ए-काहिश-ए-नाकाम यही होना था
नरेश कुमार शाद
नज़्म
''हर घड़ी अपनी जगह पर साअत-ए-नायाब है
हासिल-ए-उम्र-ए-गुरेज़ाँ एक भी लम्हा नहीं
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
हासिल-ए-इश्क़-ए-मुस्तफ़ा उन से निज़ाम-ए-काएनात
उन के बग़ैर शरअ'-ओ-दीन बुत-कदा-ए-तसव्वुरात