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नज़्म
इसी बाइस मैं हूँ अम्बोह की लज़्ज़त से बे-माया
मगर तुम इक दो-पाया रास्त क़ामत हो के दिखलाना
जौन एलिया
नज़्म
जल्सा-गाहों में ये दहशत-ज़दा सहमे अम्बोह
रहगुज़ारों पे फ़लाकत-ज़दा लोगों के गिरोह
साहिर लुधियानवी
नज़्म
अपनी प्यास इक दूसरे के ख़ूँ से बुझा रही है
ये संग-दिल जश्न-ए-मर्ग-ए-अम्बोह-ए-बे-गुनाहाँ मना रहे हैं
ज़िया जालंधरी
नज़्म
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
वो बात हिन्दियों ने ग़ैरों के दरमियाँ की
जिस पर झुकी है गर्दन अम्बोह-ए-सरकशाँ की