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नज़्म
मस्त हो जाता है तू अब्र-ए-सियह को देख कर
चशमकों से बर्क़ की लेता है तू क्या क्या असर
साक़िब कानपुरी
नज़्म
ज़ुल्फ़ का अब्र-ए-सियह बाज़ू-ए-सीमीं पे लिए
फिर कोई नग़्मा-ज़न-ए-साज़-ए-बहार आ ही गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सफ़ेद और सियाह गोटों के हसीं इक दाएरे अंदर
बहुत ही सुर्ख़ रंगत की हसीं इक गोट होती है
इब्न-ए-मुफ़्ती
नज़्म
ये रूप सर से क़दम तक हसीन जैसे गुनाह
ये आरिज़ों की दमक ये फ़ुसून-ए-चश्म-ए-सियाह