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नज़्म
फ़र्दा महज़ फ़ुसूँ का पर्दा, हम तो आज के बंदे हैं
हिज्र ओ वस्ल, वफ़ा और धोका सब कुछ आज पे रक्खा है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
यहीं खेतों में पानी के किनारे याद है अब भी
बला-ए-फ़िक्र-ए-फ़र्दा हम से कोसों दूर होती थी
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
या'नी हम भी दस्त-ए-क़ुदरत में मिसाल-ए-जाम हैं
और गिरफ़्तार-ए-बला-ए-गर्दिश-ए-अय्याम हैं
अमजद नजमी
नज़्म
हाँ मगर सुन ले तू ऐ हुस्न की मय से सरशार
ख़ार-ख़ार-ए-अलम-ए-हिज्र से हूँ सख़्त हज़ीं
अज़ीमुद्दीन अहमद
नज़्म
कहीं मेहर सुब्ह-ए-कमाल के
कहीं ज़ुल्फ़-ए-वस्ल-मिज़ाज पर तह-ए-गर्द-ए-हिज्र जमी हुई