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नज़्म
मुसलमाँ को मुसलमाँ कर दिया तूफ़ान-ए-मग़रिब ने
तलातुम-हा-ए-दरिया ही से है गौहर की सैराबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मिरी तख़्लीक़ की मुझ को जहाँ की पासबानी दी
समुंदर मोतियों मूँगों से कानें लाल-ओ-गौहर से
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
और अब चर्चे हैं जिस की शोख़ी-ए-गुफ़्तार के
बे-बहा मोती हैं जिस की चश्म-ए-गौहर-बार के
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
यूँही देखूँ जो राखी को तो ये रंगीन डोरा है
जो देखूँ ग़ौर से इस को तो है ज़ंजीर लोहे की
फौज़िया मुग़ल
नज़्म
'जनक' 'वशिष्ठ' 'मनु' 'वाल्मीकि' 'विश्वामित्र'
'कणाद' 'गौतम' ओ 'रामानुज' 'कुमारिल-भट्ट'
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
ज़रा देखो तो मुझ को ग़ौर से शायद वो मैं ही था
बहुत दिन में मिले हैं हम तो आओ आज जी भर कर