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नज़्म
शाहिद-ए-मा'नी-ए-असरार-ए-ज़ुहूर-ए-क़ुदरत
सब पे रौशन था कि वो ख़ास था नूर-ए-क़ुदरत
बिस्मिल इलाहाबादी
नज़्म
शा'इरी से लफ़्ज़-ओ-मा'नी का त'अल्लुक़ ज़ख़्म-ख़ुर्दा हो चुका है
आज की शब क्या हुआ है
ख़ालिद मुबश्शिर
नज़्म
लो वो चाह-ए-शब से निकला पिछले-पहर पीला महताब
ज़ेहन ने खोली रुकते रुकते माज़ी की पारीना किताब