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नज़्म
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जो ख़ुश हैं वो ख़ुशी में काटे हैं रात सारी
जो ग़म में हैं उन्हों पर गुज़रे है रात भारी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
सरवत हुसैन
नज़्म
मिरे दादा जो ब्रिटिश फ़ौज के नामी भगोड़े थे
न जाने कितनी जेलों के उन्हों ने क़ुफ़्ल तोड़े थे