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नज़्म
उम्र भर तेरी मोहब्बत मेरी ख़िदमत-गर रही
मैं तिरी ख़िदमत के क़ाबिल जब हुआ तू चल बसी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
'ज़ेहरा' ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है
हालाँकि दर-ईं-अस्ना क्या कुछ नहीं देखा है
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
क्या जाने उस ज़रीफ़ के क्या दिल में आई थी
कर्फ़्यू में जिस ने महफ़िल-ए-शेरी सजाई थी
खालिद इरफ़ान
नज़्म
सुकूँ के फूल हर इक दिल में माँ खिलाती है
वो उजड़े घर को भी रश्क-ए-जिनाँ बनाती है
मक़सूद अहमद मक़सूद
नज़्म
देख आए हम भी दो दिन रह के देहली की बहार
हुक्म-ए-हाकिम से हुआ था इजतिमा-ए-इंतिशार