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नज़्म
शिद्दत-ए-दर्द-ओ-अलम से जब भी घबराता हूँ मैं
तेरे नग़्मों की घनी छाँव में आ जाता हूँ मैं
ओम प्रकाश बजाज
नज़्म
फैज़ तबस्सुम तोंसवी
नज़्म
शर्मा के रह गई मिरी मंज़िल की जुस्तुजू कभी
थर्रा के रह गया मिरा दर्द-ए-निहाँ कभी कभी
अशरफ़ बाक़री
नज़्म
उम्र भर याद-ए-चतर हम को रुलाएगी 'हबीब'
ग़म सताएगी सदा दर्द-ए-निहाँ की मानिंद
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
जो वाक़िफ़ नहीं तेरे दर्द-ए-निहाँ से
इसे भी तो ज़िल्लत की पाबंदगी के लिए आल-ए-कार बनना पड़ेगा
नून मीम राशिद
नज़्म
सड़ चुके इस के अनासिर हट चुका सोज़-ए-हयात
अब तुझे फ़िक्र-ए-इलाज-ए-दर्द-ए-इंसाँ है तो क्या