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नज़्म
वो पहली शब-ए-मह शब-ए-माह-ए-दो-नीम बन जाएगी
जिस तरह साज़-कोहना के तार-ए-शिकस्ता के दोनों सिरे
नून मीम राशिद
नज़्म
तेरा चेहरा है कि तख़्लीक़-ए-मह-ओ-महर का राज़
तेरी आँखें हैं कि असरार-ए-दो-आलम जैसे
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
कोई फ़िक्र-ए-जवाँ का नाम ले ले के उछलता है
मह-ओ-अंजुम अगर ला दो तो उस का जी बहलता है
अंजुम आज़मी
नज़्म
सुकूत-ए-ज़िंदगानी जज़्ब हो जाए तरन्नुम में
रगों में ख़ून के बदले मय-ए-दो-आतिशा भर दे
मैकश हैदराबादी
नज़्म
जो छू लेता मैं उस को वो नहा जाता पसीने में
मय-ए-दो-आतिशा के से मज़े आते थे जीने में
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
कितनी ऊँची उठा दी है हिज्र की संगीन दीवार तू ने
लम्बी बहुत लम्बी मशरिक़ैन से मग़रबीन तक