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नज़्म
ज़िंदगी महव-ए-सफ़र है नए अंदाज़ के साथ
हैं लब-ए-शौक़ पे मंज़िल के तराने रक़्साँ
ज़हीर नाशाद दरभंगवी
नज़्म
रज़ी हैदर
नज़्म
सरसब्ज़गी के सहर से निकल कर
ज़मीं की वुसअ'तें नापते थल की जानिब महव-ए-सफ़र हूँ
उमैननुज़ ज़हरा सय्यद
नज़्म
क्या क़ुरआन के मुताबिक़ इंसान का मुन्तहा ख़ुदा नहीं
तो क्या हम ख़ुदा की जानिब महव-ए-सफ़र हैं
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
जिन्हें बताने से ज़ियादा छुपाना पड़ गया था
हम अपनी ज़ात के ख़ल्वत-कदे में महव-ए-सफ़र
तसनीम आबिदी
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
कू-ब-कू क़र्या-ब-क़र्या यम-ब-यम महव-ए-सफ़र
दुख के लम्बे सिलसिले और चंद लम्हों की ख़ुशी
रियाज़ अनवर
नज़्म
किसे किस घाट उतरना है
सराब-ए-रंग में महव-ए-सफ़र उन आहुवान-ए-नाफ़ा-ए-गुम-कर्दा से, कुछ पूछो
अख़्तर हुसैन जाफ़री
नज़्म
यही वो मंज़िल-ए-मक़्सूद है कि जिस के लिए
बड़े ही अज़्म से अपने सफ़र पे निकले थे