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नज़्म
बुनियाद-ए-ग़ुरूर-ओ-किब्र-ओ-अना को ठोकर से ढा देती है
तदबीर की आख़िर नाकामी तक़दीर को मनवा देती है
सरीर काबिरी
नज़्म
बरहना तेग़ों ने सारे मंज़र बदल दिए हैं
फ़सील-ए-क़स्र-ए-अना के नीचे वफ़ा की लाशें पड़ी हुई हैं
तारिक़ क़मर
नज़्म
ख़ालिदा तू है बहिश्त-ए-तुर्कमानी की बहार
तेरी पेशानी पे नूर-ए-हुर्रियत-ए-आईना-कार