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नज़्म
पाकिस्तान के सारे शहरो ज़िंदा रहो पाइंदा रहो
रौशनियों रंगों की लहरो ज़िंदा रहो पाइंदा रहो
उबैदुल्लाह अलीम
नज़्म
किसी के दस्त-ए-इनायत ने कुंज-ए-ज़िंदाँ में
किया है आज अजब दिल-नवाज़ बंद-ओ-बस्त
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हुई फिर इमतिहान-ए-इशक़ की तदबीर बिस्मिल्लाह
हर इक जानिब मचा कुहराम-ए-दार-ओ-गीर बिस्मिल्लाह
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
फिर लहू बहने लगा आँखों से क्या फिर छिड़ गया
हल्क़ा-ए-अहबाब में ज़िक्र-ए-विसाल-ए-'आरज़ू'
मासूम शर्क़ी
नज़्म
हर्फ़ मासूम थे महकूम थे महसूर भी थे
लफ़्ज़ मस्लूब हुए होंटों पे आ के तेरे
फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी
नज़्म
हर जानिब हैं दिलों ज़मीरों में काले तूफ़ानों वाले लफ़्ज़ हज़ारों घनी भवों के नीचे
घात में
मजीद अमजद
नज़्म
फ़ज़ा में दर्द-आगीं गीत लहराए तो आ जाना
सुकूत-ए-शब में कोई आह थर्राए तो आ जाना