aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

दिल्ली की सैर

रशीद जहाँ

दिल्ली की सैर

रशीद जहाँ

MORE BYरशीद जहाँ

    स्टोरीलाइन

    यह फ़रीदाबाद से दिल्ली की सैर को आई एक औरत के साथ घटी घटनाओं का क़िस्सा है। एक औरत अपने शौहर के साथ दिल्ली की सैर के लिए आती है। दिल्ली में उसके साथ जो घटनाएं होती हैं वापस जाकर उन्हें वह अपनी सहेलियों को सुनाती है। उसके साथ घटी सभी घटनाएं इतनी दिलचस्प होती हैं कि उसकी सहेली जब भी उसके घर जमा होती हैं, हर बार उससे दिल्ली की सैर का क़िस्सा सुनाने के लिए कहती हैं।

    “अच्छी बहन हमें भी तो आने दो”, ये आवाज़ दालान में से आई, और साथ ही एक लड़की कुर्ता के दामन से हाथ पोंछती हुई कमरे में दाख़िल हुई।

    मलिका बेगम ही पहली थीं जो अपनी सब मिलने वालियों में पहले-पहल रेल में बैठी थीं। और वो भी फरीदाबाद से चल कर दिल्ली एक रोज़ के लिए आई थीं मुहल्ले वालियाँ तक उनकी दास्तान सफ़र सुनने के लिए मौजूद थीं।

    “ए है आना है तो आओ! मेरा मुँह तो बिल्कुल थक गया। अल्लाह झूट ना बुलवाए तो सैंकड़ों ही बार तो सुना चुकी हूँ। यहां से रेल में बैठ कर दिल्ली पहुंची और वहां उनके मिलने वाले कोई निगोड़े स्टेशन मास्टर मिल गए। मुझे अस्बाब के पास छोड़ ये रफू-चक्कर हुए और मैं अस्बाब पर चढ़ी बुर्क़े में लिपटी बैठी रही। एक तो कम्बख़्त बुर्क़ा, दूसरे मरदुवे। मर्द तो वैसे ही ख़राब होते हैं, और अगर किसी औरत को इस तरह बैठे देख लें तो और चक्कर पर चक्कर लगाते हैं। पान खाने तक नौबत आई। कोई कम्बख़्त खाँसे, कोई आवाज़े कसे, और मेरा डर के मारे दम निकला जाये, और भूक वो ग़ज़ब की लगी हुई कि ख़ुदा की पनाह! दिल्ली का स्टेशन क्या है बुआ क़िला भी इतनी बड़ा होगा। जहां तक निगाह जाती थी स्टेशन ही स्टेशन नज़र आता था और रेल की पटरियाँ, इंजन और माल गाड़ियां। सबसे ज़्यादा मुझे उन काले काले मर्दों से डर लगा जो इंजन में रहते हैं।”

    “इंजन में कौन रहते हैं?” किसी ने बात काट कर पूछा।

    “कौन रहते हैं? मा’लूम बुआ कौन! नीले नीले कपड़े पहने, कोई दाढ़ी वाला, कोई सफाचट। एक हाथ से पकड़ कर चलते इंजन में लटक जाते हैं देखने वालों का दिल सन सन करने लगता है। साहिब और मेम साहब तो बुआ दिल्ली स्टेशन पर इतने होते हैं कि गिने नहीं जाते। हाथ में हाथ डाले गिटपिट करते चले जाते हैं। हमारे हिंदुस्तानी भाई भी आँखें फाड़ फाड़ कर तकते रहते हैं। कमबख़्तों की आँखें नहीं फूट जातीं। एक मेरे से कहने लगा, “ज़रा मुँह भी दिखा दो।”

    मैंने फ़ौरन...

    “तो तुमने क्या नहीं दिखाया?” किसी ने छेड़ा।

    “अल्लाह अल्लाह करो बुआ। मैं इन मुओं को मुँह दिखाने गई थी। दिल बल्लियों उछलने लगा”, तेवर बदल कर, “सुनना है तो बीच में “टोको।”

    एक दम ख़ामोशी छागई। ऐसी मज़े-दार बातें फरीदाबाद में कम होती थीं और मलिका की बातें सुनने तो औरतें दूर दूर से आती थीं।

    “हाँ बुआ सौदे वाले ऐसे नहीं जैसे हमारे हाँ होते हैं। साफ़ साफ़ ख़ाकी कपड़े और कोई सफ़ेद, लेकिन धोतियां किसी किसी की मैली थीं टोकरे लिये फिरते हैं, पान, बेड़ी, सिगरेट, दही बड़े, खिलौना है खिलौना, और मिठाईयां चलती हुई गाड़ियों में बंद किए भागे फिरते हैं। एक गाड़ी आकर रुकी। वो शोरगुल हुआ कि कानों के पर्दे फटे जाते, इधर क़ुलियों की चीख़ पुकार उधर सौदे वाले कान खाए जाते थे, मुसाफ़िर हैं कि एक दूसरे पर पिले पड़ते हैं और मैं बेचारी बीच में अस्बाब पर चढ़ी हुई। हज़ारों ही तो ठोकरें धक्के खाए होंगे। भई जल तू जलाल तू आई बला को टाल तू, घबरा घबरा कर पढ़ी रही थी। ख़ुदा ख़ुदा कर के रेल चली तो मुसाफ़िर और क़ुलियों में लड़ाई शुरू हुई,

    “एक रुपया लूँगा।”

    “नहीं, दो आना मिलेंगे।”

    एक घंटा झगड़ा हुआ जब कहीं स्टेशन ख़ाली हुआ। स्टेशन के शुह्दे तो जमा’ ही रहे। कोई दो घंटा के बाद ये मूंछों पर ताव देते हुए दिखाई दिए और किस लापरवाही से कहते हैं, “भूक लगी हो तो कुछ पूरियां वुरियां लादूं, खाओगी? मैं तो उधर होटल में खा आया।”

    मैंने कहा कि, “ख़ुदा के लिए मुझे मेरे घर पहुंचा दो, में बाज़ आई इस मुई दिल्ली की सैर से। तुम्हारे साथ तो कोई जन्नत में भी ना जाये, अच्छी सैर कराने लाए थे। फरीदाबाद की गाड़ी तैयार थी उसमें मुझे बिठा और मुँह फुला लिया कि”, तुम्हारी मर्ज़ी, सैर नहीं करतीं तो ना करो!”

    स्रोत:

    (Pg. 160)

      • प्रकाशक: एजुकेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
      • प्रकाशन वर्ष: 2013

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

    GET YOUR PASS
    बोलिए