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चूहेदान

सआदत हसन मंटो

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    शौकत को चूहे पकड़ने में बहुत महारत हासिल है। वो मुझसे कहा करता है, ये एक फ़न है जिसको बाक़ायदा सीखना पड़ता है और सच पूछिए तो जो जो तरकीबें शौकत को चूहे पकड़ने के लिए याद हैं, उनसे यही मालूम होता है कि उसने काफ़ी मेहनत की है। अगर चूहे पकड़ने का कोई फ़न नहीं है तो उसने अपनी ज़हानत से उसे फ़न बना दिया है। उसको आप कोई चूहा दिखा दीजिए, वो फ़ौरन आप को बता देगा कि इस तरकीब से वो इतने घंटों में पकड़ा जाएगा और इस तरीक़े से अगर आप उसे पकड़ने की कोशिश करें तो इतने दिन लग जाऐंगे।

    चूहों की नस्लों और उनकी मुख़्तलिफ़ आदात-ओ-अतवार का शौकत बहुत गहरा मुताला कर चुका है। उसको अच्छी तरह मालूम है कि किस ज़ात के चूहे जल्दी फंस जाते हैं और किस नस्ल के चूहे बड़ी मुश्किल के बाद क़ाबू में आते हैं और फिर हर क़िस्म के चूहों को फांसने की एक सौ एक तरकीब शौकत को मालूम है।

    मोटे मोटे उसूल उसने एक रोज़ मुझे बताए थे कि छोटी छोटी चूहियां अगर पकड़ना हों तो हमेशा नया चूहेदान इस्तेमाल करना चाहिए। चूहेदान की साख़्त किसी क़िस्म की भी हो, उसकी कोई परवाह नहीं। ख़्याल इस बात का रखना चाहिए कि चूहेदान ऐसी जगह पर रखा जाये जहां आपने चूहिया या चूहियां देखी थीं। ट्रंकों के पीछे, अलमारियों के नीचे, कहीं भी, जहां आपने चूहिया देखी हो, चूहेदान रख दिया जाये और उसमें तली हुई मछली का छोटा सा टुकड़ा रख दिया जाये। टुकड़ा बड़ा हो।

    अगर चूहेदान खट से बंद होने वाला है तो उसमें ख़ासतौर पर बड़ा टुकड़ा नहीं लगाना चाहिए कि चूहिया अंदर आकर उस टुकड़े का कुछ हिस्सा कुतर कर बाहर चली जाएगी। टुकड़ा छोटा होगा तो वो उसे उतारने की कोशिश करेगी और यूं झटपट पिंजरे में क़ैद हो जाएगी... एक चूहिया पकड़ने के बाद चूहेदान को गर्म पानी से धो लेना चाहिए। अगर आप उसे अच्छी तरह धोएँगे तो पहली चूहिया की बू उसमें रह जाएगी जो दूसरी चूहियों के लिए ख़तरे के अलार्म का काम देगी। इसलिए इस बात का ख़ासतौर पर ख़याल रखना चाहिए।

    हर चूहे या चूहिया को पकड़ने के बाद चूहेदान को धो लेना चाहिए। अगर घर में ज़्यादा चूहे चूहियां हों और उन सबको पकड़ना हो तो एक चूहेदान काम नहीं देगा। तीन-चार चूहेदान पास रखने चाहिऐं जो बदल बदल कर काम में लाए जाएं। चूहे की ज़ात बड़ी सयानी होती है, अगर एक ही चूहेदान घर में रखा जाएगा तो चूहे उससे ख़ौफ़ खाना शुरू कर देंगे और उसके नज़दीक तक नहीं आयेंगे।

    बा’ज़ औक़ात इन तमाम बातों का ख़याल रखने पर भी चूहे चूहियां क़ाबू में नहीं आतीं। उसकी बहुत सी वजहें होती हैं। बहुत मुम्किन है कि आपसे पहले जो मकान में रहता था उसने इसी क़िस्म का चूहेदान इस्तेमाल किया था जैसा कि आप कर रहे हैं, ये भी हो सकता है कि उसने चूहे पकड़ कर बाहर गली या बाज़ार में छोड़ दिया हो और वो चंद दिनों के बाद फिर वापस घर गया है। ऐसे चूहे जो एक बार चूहेदान में फंस कर फिर अपनी जगह पर वापस आजाऐं इस क़दर होशियार हो जाते हैं कि बड़ी मुश्किल से क़ाबू में आते हैं।

    ये चूहे दूसरे चूहों को भी ख़बरदार कर देते हैं जिसका नतीजा ये होता है कि आपकी तमाम कोशिशें बेसूद साबित होती हैं और चूहे बड़े इत्मिनान से इधर उधर दौड़ते रहते हैं और आपका और आपके चूहेदान का मुँह चिड़ाते रहते हैं।

    चूहे के बिल के पास तो चूहेदान हर्गिज़ हर्गिज़ नहीं रखना चाहिए, इसलिए कि इतनी बड़ी चीज़ अपने घर के पास देख कर जो पहले कभी नहीं होती थी चूहा फ़ौरन चौकन्ना हो जाता है और उसको दाल में काला काला नज़र जाता है... जब किसी हीले से चूहे पकड़े जाएं तो गिर्द-ओ-पेश की फ़िज़ा का मुताला-ओ-मुशाहिदा करके ये मालूम करना चाहिए कि आस पास के लोग कैसे हैं, किस क़िस्म की चीज़ें खाते हैं और उनके घरों के चूहे किस चीज़ पर जल्दी गिरते हैं। ये तमाम बातें मालूम करके आपको तजुर्बे करना पड़ेंगे और ऐसी तरकीब ढूंढना पड़ेगी जिसके ज़रिये से आप अपने घर के चूहे गिरफ़्तार कर सकें।

    शौकत चूहे पकड़ने के फ़न पर एक तवील लेक्चर दे सकता है। किताब लिख सकता है मगर चूँकि वो तबअ’न ख़ामोशी पसंद है इसलिए उसके मुतअ’ल्लिक़ ज़्यादा बातचीत नहीं करता। सिर्फ़ मुझे मालूम है कि वो इस फ़न में काफ़ी महारत रखता है, मुहल्ले के दूसरे आदमियों को इसकी मुतलक़ ख़बर नहीं, अलबत्ता उसके पड़ोसी उसके यहां से कभी कभी चूहेदान आ’रियतन ज़रूर मंगाया करते हैं और उसने इस ग़रज़ के लिए एक पुराना चूहेदान मख़सूस कर रखा है।

    पिछली बरसात की बात है। मैं शौकत के यहां बैठा था कि उसके पड़ोसी ख़्वाजा अहमद सादिक़ साहब डिप्टी सुपरिंटेंडेंट पुलिस का बड़ा लड़का अरशद सादिक़ आया, मैंने जब उठ कर दरवाज़ा खोला तो उस ने कहना शुरू किया, “इन कमबख़्त चूहों ने नाक में दम कर रखा है। अब्बा जी से बारहा कह चुका हूँ कि ज़हर मंगवाईए इनको मारने के लिए मगर उन्हें अपने कामों ही से फ़ुर्सत नहीं मिलती और यहां हर रोज़ मेरी किताबों का सत्यानास हो रहा है... आज अलमारी खोली तो ये बड़ा चूहा मेरे सर पर आन गिरा। तुम्हें क्या बताऊं इन चूहों ने मुझे कितना तंग किया है। किसी किताब की जिल्द सलामत नहीं। बा’ज़ बड़ी किताबों की जिल्द तो इस सफ़ाई से इन कमबख़्तों ने कतरी है कि मालूम होता है किसी ने आरी से काट दी है।”

    मैं अरशद को शौकत के पास ले गया और कहा, “अरशद साहब तशरीफ़ लाए हैं। चूहों की शिकायत लेकर आए हैं।”

    अरशद कुर्सी पर बैठ गया और पेशानी पर से पसीना पोंछ कर कहने लगा, “शौकत साहब, मैं क्या अर्ज़ करूं। अभी अलमारी की तमाम किताबें मैं बाहर निकाल कर आया हूँ। एक भी इनमें ऐसी नहीं जिस पर चूहों ने अपने दाँत तेज़ किए हों। बावर्चीख़ाना मौजूद है, दूसरी अलमारियां हैं जिनमें हर वक़्त खाने-पीने की चीज़ें पड़ी रहती हैं, समझ में नहीं आता कि मेरी किताबें कतरने में उनको क्या मज़ा आता है, या’नी काग़ज़ और दफ़ती भला कोई ग़िज़ा है... अजी साहब, एक अंबार कतरे हुए गत्ते और धुन्के हुए काग़ज़ों का मैंने अलमारी में से निकाला है।”

    शौकत मुस्कुराया, “डिप्टी सुपरिंटेंडेंट पुलिस के घर में चूहे हर रोज़ सेंध लगाते फिरें... ये कैसे हो सकता है?”

    अरशद ने इस मज़ाक़ से लुत्फ़ उठाया इसलिए कि वो वाक़ई बहुत परेशान था, “शौकत साहब, वो मामूली चूहे थोड़े हैं। मोटे मोटे संडे हैं जो खुले बंदों फिरते रहते हैं... मेरे सर पर एक आन पड़ा। ख़ुदा की क़सम अभी तक दर्द होरहा है।”

    शौकत और मैं दोनों खिलखिला कर हंस पड़े, अरशद भी मुस्कुरा दिया। आप तो दिल लगी कर रहे हैं और यहां ग़ुस्से के मारे मेरा बुरा हाल हो रहा है।”

    शौकत ने उठ कर अरशद को सिगरेट पेश किया, “अपने दिल का गुबार इसके धुएं के साथ बाहर निकालिये और मुझे बताईए कि मैं आपकी क्या ख़िदमत कर सकता हूँ।”

    अरशद ने सिगरेट सुलगाया और कहा, “मैं आपसे चूहेदान मांगने आया था। अम्मी जान ने मुझसे कहा था कि शौकत के घर में मैंने दो-तीन पड़े देखे हैं।”

    शौकत ने फ़ौरन नौकर को आवाज़ दी और उसे कहा, “वो चूहेदान जो तुमने कल गर्म पानी से धोकर ख़ूब साफ़ किया था, अरशद साहब के घर दे आओ और देखो उनके नौकर से कहना कि उस अलमारी के नीचे उस कोना में रखे जहां अरशद साहब अपनी किताबें रखते हैं... उस अलमारी से दूर भी नहीं। इसमें मछली या तेल में तली हुई किसी चीज़ का टुकड़ा लगा कर रख दिया जाये।” फिर अरशद से मुख़ातिब हो कर कहा, “आप भी अच्छी तरह सुन लीजिएगा... बाज़ार से अगर पकौड़े मिल जाएं तो एक पकैड़ा काफ़ी रहेगा और जब चूहा पकड़ा जाये तो ख़ुदा के लिए उसे मेरे घर के पास छोड़ दीजिएगा और बहुत जगहें आपको मिल जाएंगी जहां से वो फिर वापस सके।”

    देर तक अरशद हमारे पास बैठा रहा। शौकत उसको मज़ीद हिदायात देता रहा। जब नौकर चूहेदान उसके घर पहुंचा कर वापस गया तो उसने इजाज़त चाही और चला गया।

    इस वाक़िया के चार रोज़ बाद अरशद मेरे घर आया। मैं और वो चूँकि इकट्ठे कॉलिज में पढ़ते रहे हैं। इसीलिए वो मेरे बेतकल्लुफ़ दोस्त हैं, शौकत से उसका तआ’रुफ़ मैंने ही कराया था। आते ही उसने इधर उधर देखा जैसे मुझसे कोई राज़ की बात तख़्लिया में कहना चाहता है। मैंने पूछा, “क्या बात है। तुम इतने परेशान क्यों हो?”

    “मैं तुम्हें एक बड़ी दिलचस्प बात सुनाने आया हूँ मगर यहां नहीं सुनाऊंगा, तुम बाहर चलो।” ये कह कर उसने मुझे बाज़ू से पकड़ा और बाहर ले गया।

    रास्ते में उसने मुझे अपनी दास्तान सुनाना शुरू की,’ “अजीब-ओ-गरीब कहानी है जो मैं तुम्हें सुनाने वाला हूँ। बख़ुदा ऐसी बात हुई कि मेरी हैरत की कोई इंतहा नहीं रही... या’नी किसे यक़ीन था कि इतनी ज़िद्दी और नफ़ासतपसंद लड़की एक चूहेदान के ज़रिये से मेरे क़ाबू में आजाएगी... उसी चूहे दान के ज़रिये से जो उस रोज़ तुम्हारे सामने मैंने शौकत से लिया था।”

    मैंने हैरतज़दा होकर पूछा, “कौन सी लड़की इस चूहेदान में फंस गई... लड़की हुई चूहिया हो गई... आख़िर बताओ तो सही लड़की कौन है?”

    “अमां वही सलीमा जिसकी नफ़ासतपसंदियों की बड़ी धूम है और जिसकी ज़िद्दी तबीयत के बड़े चर्चे हैं।”

    मेरी हैरत और ज़्यादा बढ़ गई, “सलीमा... झूट?”

    “ख़ुदा की क़सम... झूट बोलने वाले पर ला’नत और भला मैं तुमसे झूट क्यों कहने लगा... यही सलीमा, शौकत के दिए हुए चूहेदान के ज़रिये से मेरे क़ाबू में आगई और बख़ुदा ये मेरे वहम-ओ-गुमान में भी था कि वो ऐसी आसानी से फंस जाएगी।”

    मैंने फिर उससे हैरत भरे लहजे में कहा, “लेकिन ये हुआ क्यों कर। तुम मुझे पूरी दास्तान सुनाओ तो कुछ पता चले... चूहेदानों से भी कभी किसी ने लड़कियां फांसी हैं। बड़ी बेतुकी सी बात मालूम होती है मुझे।”

    मैं सलीमा को अच्छी तरह जानता हूँ। हमारे यहां उसका अक्सर आना जाना है। वो सिर्फ़ नफ़ासत- पसंद ही नहीं बल्कि बड़ी ज़हीन लड़की है। अंग्रेज़ी ज़बान पर उसे ख़ूब उ’बूर हासिल है। तीन-चार मर्तबा उससे मुझे गुफ़्तुगू करने का इत्तफ़ाक़ हुआ तो मैंने मालूम किया कि अदब और शे’र के मुतअ’ल्लिक़ उसकी मालूमात बहुत वसीअ’ हैं। मुसव्विर भी है, प्यानो बजाने में बड़ी महारत रखती है। उसकी ज़िद्दी और नफ़ासतपसंद तबीयत के बारे में भी चूँकि मुझे बहुत कुछ मालूम है, इसीलिए मुझे अरशद की ये बात सुन कर सख़्त ता’ज्जुब हुआ। वो तो किसी को ख़ातिर ही में लानेवाली नहीं। अरशद जैसे चुग़द को उसने कैसे पसंद कर लिया। ये मुअ’म्मा मेरी समझ में नहीं आता था।

    अरशद बेहद ख़ुश था। उसने मेरी तरफ़ फतहमंद नज़रों से देखा और कहा, “मैं तुम्हें सारा वाक़िया सुना देता हूँ। इसके बाद किसी क़िस्म की वज़ाहत की ज़रूरत रहेगी। क़िस्सा ये है कि परसों रात को अम्मी जान और अब्बा जी और दूसरे लोग सब सिनेमा देखने चले गए, मैं घर में अकेला था। कुछ समझ में नहीं आता कि क्या करूं। आराम कुर्सी में टांगें फैलाए लेटा यही सोच रहा था कि एक मोटा सा चूहा मुझे नज़र आया। उसको देखना था कि मारे ग़ुस्से के मेरा ख़ून खौलने लगा। फ़ौरन उठा और उस को पकड़ने की तरकीब सोचने लगा।

    “उसे हाथ से पकड़ना तो ज़ाहिर है बिल्कुल मुहाल था, मैं किसी तरीक़े से उसको मार भी नहीं सकता था, इसलिए कि कमरे में बेशुमार फ़र्नीचर और ट्रंक वग़ैरा पड़े थे। मैंने शौकत के दिए हुए चूहेदान का ख़याल किया जिससे आठ चूहे हम लोग पकड़ चुके थे मगर शौकत की हिदायात के मुताबिक़ उसको गर्म पानी से धोना ज़रूरी था। मुझे कोई काम तो था नहीं और वक़्त भी काफ़ी था, चुनांचे मैंने ख़ुद ही समावार में पानी गर्म किया और चूहेदान को धोना शुरू कर दिया।

    “अभी मैंने लौटे से गर्म पानी की धार उसके आहनी तारों पर डाली ही थी कि दरवाज़े पर दस्तक हुई। दरवाज़ा खोला तो क्या देखता हूँ कि सलीमा खड़ी है। मैंने कहा, “आईए , आईए।” वो अंदर चली आई और कहने लगी, “क्या कर रहे हैं आप? मैंने झेंप कर जवाब दिया, “जी चूहेदान धो रहा हूँ।” वो बेइख़्तियार हंस पड़ी। “चूहेदान धो रहे हैं... ये सफ़ाई आख़िर किसलिए हो रही है, कोई बड़ा चूहा इंस्पेक्शन के लिए तो नहीं आरहा।” ये सुन कर मेरी झेंप दूर हो गई और मैंने क़हक़हा लगा कर कहा, “जी हाँ... एक बहुत बड़ा चूहा इंस्पेक्शन के लिए आना चाहता है, ये सफ़ाई इसी सिलसिले में हो रही है।”

    ये कह कर अरशद ख़ामोश हो गया। इस पर मैंने उससे कहा, “सुनाते जाओ, रुको नहीं... तुम्हारी दास्तान बहुत दिलचस्प है... हाँ तो फिर सलीमा ने क्या कहा?”

    “कुछ नहीं, मेरी बात सुन कर वह सहन ही में चौकी पर बैठ गई और कहने, “आप सफ़ाई कीजिए। इस सफ़ाई की इंस्पेक्शन मैं करूंगी... हाँ ये तो बताईए आज ये सब लोग कहाँ गए हैं।” मैंने जवाब दिया, “सिनेमा गए हैं, मैं बेकार बैठा था कि एक चूहा अपने कमरे में मुझे नज़र आया। मैं क्या अर्ज़ करूं हमारे घर में किस तरह बड़े बड़े मोटे संडे चूहे सेंध मारते फिरते हैं। मेरी किताबों का तो उन्होंने सत्यानास कर दिया है। अब उनके ज़ुल्म-ओ-सितम से मेरे अंदर एक इंतक़ामी जज़्बा पैदा हो गया है। ये चूहेदान ले आया हूँ इससे हर रोज़ दो-तीन चूहे पकड़ता हूँ और उनको काले पानी भेज देता हूँ।” सलीमा ने मेरी गुफ़्तुगू में दिलचस्पी ज़ाहिर की, “ख़ूब, ख़ूब... लेकिन ये तो बताईए काला पानी यहां से कितनी दूर है।” मैंने कहा, “बहुत दूर नहीं। कोतवाली के पास ही जो गंदा नाला बहता है उसी को फ़िलहाल मैंने काला पानी बना लिया है। चूहों ने इस पर ए’तराज़ नहीं किया, क्योंकि उस मोरी का पानी काला ही है।”

    हम दोनों ख़ूब हंसे। फिर मैंने लोटा उठाया और चूहेदान को ब्रश के साथ धोना शुरू कर दिया। जब छींटे उड़े तो मैंने सलीमा से कहा, “आप यहां से उठ जाईए, छींटे उड़ रहे हैं... वैसे भी ये मेरी बड़ी बदतमीज़ी है कि मैं आपके सामने ऐसी ग़लीज़ चीज़ साफ़ करने बैठ गया हूँ।” उसने फ़ौरन ही कहा, “आप तकल्लुफ़ कीजिए और अपना काम करते चले जाईए। छींटों के मुतअ’ल्लिक़ भी आप कोई फ़िक्र करें।”

    जब मैंने चूहेदान अच्छी तरह धो कर साफ़ कर लिया तो सलीमा ने पूछा, “अच्छा, अब आप ये बताईए कि इसको धोने की क्या ज़रूरत थी, बग़ैर धोए क्या आप इस ज़ालिम चूहे को नहीं पकड़ सकते।”

    मैंने कहा, “जी नहीं... इससे पहले चूँकि इस चूहेदान में हम एक चूहा पकड़ चुके हैं और उसकी बू इस में अभी तक बाक़ी है इसलिए धोना ज़रूरी है। गर्म पानी से पहले चूहे की बू ग़ायब हो जाएगी। इस लिए दूसरा चूहा आसानी के साथ फंस जाएगा।”

    मेरी ये बात सुन कर सलीमा ने बिल्कुल बच्चों की तरह कहा, “अगर चूहेदान में चूहे की बू रह जाये तो दूसरा चूहा नहीं आता।”

    मैंने स्कूल मास्टरों का सा अंदाज़ इख़्तियार कर लिया, “बिल्कुल नहीं, इसलिए कि चूहों की नाक बड़ी तेज़ होती है। आपने सुना नहीं आम तौर पर ये कहा करते हैं कि फ़ुलां आदमी की तो चूहे की नाक है। या’नी उसकी क़ुव्वत-ए-शाम्मा बड़ी तेज़ है... समझीं आप?

    सलीमा ने मेरी तरफ़ जब देखा तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैंने एक बहुत बड़ी बात उससे कह दी है जिसको सुन कर वो बहुत मरऊ’ब हो गई है। उसकी निगाहों में मुझे अपने मुतअ’ल्लिक़ क़दर-ओ-मंज़िलत की झलक नज़र आई। इससे मुझे शह मिल गई। चुनांचे वो तमाम बातें जो मैंने शौकत से उस रोज़ सुनी थीं, एक लेक्चर की सूरत में दुहराना शुरू कर दीं और वो...”

    मैंने उसकी बात काट कर कहा, “ये सब मुझे अफ़साना मालूम होता है। तुम झूट कहते हो।”

    “तुम भी अजीब क़िस्म के मुनकिर हो।” अरशद ने बिगड़ कर कहा, “भई क़सम ख़ुदा की, इसका एक एक लफ़्ज़ सच है। मुझे झूट बोलने की ज़रूरत ही क्या है। तुम्हें हैरत ज़रूर होगी, इसलिए कि मैं ख़ुद बहुत मुतहय्यर हूँ। सलीमा जैसी पढ़ी लिखी और ज़हीन लड़की ऐसी फ़ुज़ूल बातों से मुतअस्सिर हो गई। ये बात मुझे हमेशा मुतहय्यर रखेगी, मगर भई हक़ीक़त से तो इनकार नहीं हो सकता। उसने मेरी ऊटपटांग बातें बड़े ग़ौर से सुनीं जैसे उसे दुनिया का कोई राज़-ए-निहुफ़ता बता रहा हूँ... वल्लाह ये ज़हीन लड़कियां भी परले दर्जे की सादा लौह होती हैं।

    “सादा लौह नहीं कहना चाहिए। ख़ुदा मालूम क्या होती है। तुम उनसे कोई अ’क़्ल की बात कहो तो बस बिगड़ जाएंगी, ये समझेंगी कि हमने उनकी अ’क़्ल-ओ-दानिश पर हमला कर दिया है और जब उनसे कोई मामूली सी बात कहो जिससे ज़ेहानत का दूर से तअ’ल्लुक़ भी हो तो वो ये समझेंगी कि उनकी मालूमात में इज़ाफ़ा होरहा है।

    तुम किसी फ़लसफ़ादान और बाल की खाल उतारने वाली औरत से कहो कि ख़ुदा एक है तो वो नुक्ता चीनी शुरू करदेगी। अगर उससे ये कहो, देखो मैंने तुम्हारे सामने माचिस की डिबिया से ये एक तीली निकाली है, ये हुई एक तीली, अब मैं दूसरी निकालता हूँ। मेज़ पर उन तीलियों को पास पास रख कर जब तुम उससे ये कहोगे, देखो, अब ये दो तीलियां हो गई हैं तो वो इस क़दर ख़ुश होगी कि उठ कर तुम्हें चूमना शुरू कर देगी।”

    ये कह कर अरशद ख़ूब हंसा। मुझे भी हंसना पड़ा इसलिए कि बात ही हंसी पैदा करने वाली थी। जब हम दोनों की हंसी कम हुई, मैंने उस से कहा, “अब तुम अपनी बक़ाया कहानी सुनाओ और हंसी मज़ाक़ को छोड़ो।”

    “हंसी मज़ाक़ मैं कैसे छोड़ सकता हूँ भाई।” अरशद ने बड़ी संजीदगी से कहा, “मैं तो उससे हंसी मज़ाक़ ही में बातें कर रहा था मगर वो बड़ी संजीदगी से सुन रही थी। हाँ, तो जब मैंने चूहे पकड़ने के उसूल उसको बता दिए तो और ज़्यादा बच्चा बन कर उसने मुझसे कहा, “अरशद साहब, आप तो फ़ौरन चूहे पकड़ लेते होंगे?”

    मैंने बड़े फ़ख़्र के साथ जवाब दिया, “जी हाँ, क्यों नहीं।” इस पर सलीमा ने बड़े इश्तियाक़ के साथ कहा, “क्या आप इस चूहे को जो आपने अभी अभी देखा था मेरे सामने पकड़ सकते हैं?”

    “अजी ये भी कोई मुश्किल बात है, यूं चुटकियों में उसे गिरफ़्तार किया जा सकता है।” सलीमा उठ खड़ी हुई, “तो चलिए, मेरे सामने उसे गिरफ़्तार कीजिए। मैं समझती हूँ आप कभी इस चूहे को पकड़ नहीं सकेंगे।”

    मैं ये सुन कर यूंही मुस्कुरा दिया, “आप ग़लत समझती हैं। पंद्रह नहीं तो बीस मिनट में वो चूहा इस चूहेदान में होगा और आपकी नज़रों के सामने बशर्ते कि आप इतने अ’र्सा तक इंतिज़ार कर सकें।”

    सलीमा ने कहा, “मैं एक घंटे तक यहां बैठने के लिए तैयार हूँ मगर मैं आपसे फिर कहती हूँ कि आप नाकाम रहेंगे? वक़्त मुक़र्रर कर के आप चूहे को कैसे पकड़ सकते हैं?”

    मैं उस वक़्त अ’जीब-ओ-ग़रीब मूड में था। अगर कोई मुझसे ये कहता कि तुम ख़ुदा दिखा सकते हो तो मैं फ़ौरन कहता, हाँ दिखा सकता हूँ। चुनांचे मैंने बड़े फ़ख़्रिया लहजे में सलीमा से कहा, “हाथ कंगन को आरसी क्या... मैं अभी आपको वो चूहा पकड़ के दिखा देता हूँ मगर शर्त बांधिए।”

    उसने कहा, “मैं हर शर्त बांधने के लिए तैयार हूँ, इसलिए कि हार आप ही की होगी।” इस पर ख़ुदा मालूम मुझमें कहाँ से जुर्रत गई जो मैंने उससे कहा, “तो ये वा’दा कीजिए कि अगर मैंने चूहा पकड़ लिया तो आपसे जो चीज़ तलब करूंगा आप बखु़शी दे देंगी।”

    सलीमा ने जवाब दिया, “मुझे मंज़ूर है।” चुनांचे मैंने काँपते हुए हाथों से चूहेदान में सुबह की तली हुई मछली का एक टुकड़ा लगाया और उसको अपनी किताबों की अलमारी से दूर सोफे के पास रख दिया। शर्त वर्त का मुझे उस वक़्त कोई ख़याल नहीं था लेकिन मैं दिल में ये दुआ ज़रूर मांग रहा था कि कोई कोई चूहा ज़रूर फंस जाये ताकि मेरी सुर्ख़रूई हो। जाने किस जज़्बे के मातहत मैंने गप हाँक दी। बाद में मुझे अफ़सोस हुआ कि ख़्वाह मख़्वाह शर्मिंदा होना पड़ेगा। चुनांचे एक बार मेरे जी में आई कि उससे कह दूं, मैं तो आप से यूं ही मज़ाक़ कर रहा था। चूहा पंद्रह मिनट में कैसे पकड़ा जा सकता है... गांधी जी का सत्य गरह ही होता तो उसे जब चाहे पकड़ लेते मगर ये तो चूहा है। आप ख़ुद ही ग़ौर फ़रमाएं। मगर मैं उससे ये कह सका। इसलिए कि इसमें मेरी शिकस्त थी।”

    ये कह कर अरशद ने जेब से सिगरेट निकाल कर सुलगाया और मुझ से पूछा, “क्या ख़याल है तुम्हारा इस दास्तान के मुतअ’ल्लिक़?”

    मैंने कहा, “बहुत दिलचस्प है, मगर इसका दिलचस्प तरीन हिस्सा तो अभी बाक़ी है। जल्दी जल्दी वो भी सुना दो।”

    “क्या पूछते हो दोस्त... वो पंद्रह मिनट जो मैंने इंतिज़ार में गुज़ारे सारी उम्र मुझे याद रहेंगे। मैं और सलीमा कमरे के बाहर कुर्सियों पर बैठे थे। वो ख़ुदा मालूम क्या सोच रही थी मगर मेरी बुरी हालत थी। सलीमा ने मेरी जेब घड़ी अपनी रान पर रखी हुई थी। मैं बार बार झुक कर उसमें वक़्त देख रहा था। दस मिनट गुज़र गए, मगर पास वाले कमरे में चूहेदान बंद होने की खट सुनाई दी। ग्यारह मिनट गुज़र गए। कोई आवाज़ आई, साढ़े ग्यारह मिनट हो गए, ख़ामोशी तारी रही। बारह मिनट गुज़रने पर भी कुछ हुआ। सवा बारह मिनट हो गए, साढ़े बारह हुए कि दफ़अ’तन खट की आवाज़ बुलंद हुई। मुझे ऐसा महसूस हुआ कि चूहेदान मेरे सीने में बंद हुआ है। एक लम्हा के लिए मेरे दिल की धड़कन बंद सी हो गई लेकिन फ़ौरन ही हम दोनों उठे।

    “दौड़ कर कमरे में गए और चूहेदान के तारों में से जब मुझे एक मोटे चूहे की थूथनी और उसकी लंबी लंबी मूंछें नज़र आईं तो मैं ख़ुशी से उछल पड़ा। पास ही सलीमा खड़ी थी, उसकी तरफ़ मैंने फ़तहमंद नज़रों से देखा और झटपट उसके हैरत से खुले हुए होंटों को चूम लिया... ये सब कुछ इस क़दर जल्दी में हुआ कि सलीमा चंद लम्हात तक बिल्कुल ख़ामोश रही, लेकिन इसके बाद उसने ख़फ़्गी आमेज़ लहजे में मुझसे कहा, “ये क्या बेहूदगी है?”

    उस वक़्त ख़ुदा मालूम में कैसे मूड में था कि एक बार मैंने फिर उसी अफ़रातफ़री में उसका बोसा ले लिया और कहा, “अजी मौलाना, आपने शर्त हारी है और... तीसरी मर्तबा उसने अपने होंट बोसे के लिए ख़ुद पेश कर दिए... जिस तरह चूहा हाथ आया इसी तरह सलीमा भी हाथ गई, मगर भई मैं शौकत का बहुत ममनून हूँ। अगर मैंने चूहेदान को गर्म पानी से धोया होता तो चूहा कभी फंसता।”

    ये दास्तान सुन कर मुझे बहुत लुत्फ़ आया लेकिन अफ़सोस भी हुआ। इसलिए कि शौकत उस लड़की सलीमा की मुहब्बत में बुरी तरह गिरफ़्तार है।

    स्रोत:

    دھواں

      • प्रकाशन वर्ष: 1941

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