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प्रेम

MORE BYमुस्तनसिर हुसैन तारड़

    स्टोरीलाइन

    पत्र के शैली में लिखी गई यह कहानी एक अलमिया कहानी है। प्रेम एक उच्च शिक्षा प्राप्त अमीर घराने की सिख लड़की है जो डलहौज़ी से लाहौर अपने क़लमी दोस्त मुस्तनसिर को पत्र लिखती है। उन पत्रों में सामाजिक समस्याएं, सामाजिक अत्याचार, प्रेम की मनोवैज्ञानिक उलझनों और पेचीदगियों का भलीभांति चित्रण होता है। उसके माँ-बाप सिख बिरादरी से बाहर शादी नहीं कर सकते इसीलिए वो अपने क़लमी दोस्त मुस्तनसिर के लिए नर्म गोशा रखने के बावजूद पत्रों में अपने समान धर्मी लड़के से मुहब्बत ज़ाहिर करती है। उसकी मौत संयोग से स्पेन में होती है जो मुस्तनसिर का पसंदीदा देश है।

    अपने आपको हमेशा के लिए छोड़ जाना कैसा होता है? इंसान दूसरों को तो नहीं छोड़ता कि वो मौजूद रहते हैं, बेदार होते हैं, सोते हैं, खाते-पीते और हँसते भी हैं... वो अपने आपको छोड़ कर चला जाता है। अपने हाथों को, अपनी आँखों को, प्यास और भूक को, जागने और मुस्कुराने को भी। जिस लम्हे वो अपने आपको छोड़ कर जाता है, उसके बाद आसमान पर एक परिंदा तैरता है मगर उसके आस-पास आँखें नहीं होतीं उसे देखने के लिए। उसी लम्हे एक खिड़की खुलती है और एक आवाज़ आती है मगर उसके पास कान नहीं होते कि वो सुने। दरख़्त, रास्ते, मौसम, ज़बानों के ज़ाइक़े उसे अपने आपसे नोच कर बहुत परे फेंक देते हैं। अपने आपसे अलैहदा कर देते हैं।

    चुनाँचे इंसान दोस्तों को तो नहीं छोड़ता। ये तमाम चीज़ें उसे छोड़ देती हैं और यूँ वो अपने आपको छोड़ देता है लेकिन इस इबारत का प्रेम से क्या तअल्लुक़? प्रेम कहानी से क्या रिश्ता? बल्कि प्रेम कहानी से शायद कुछ भी नहीं। शायद मैंने ये इबारत इसलिए लिख दी है कि मेरी समझ में बिल्कुल नहीं रहा मैं प्रेम की कहानी का आग़ाज़ किस तरह करूँ और मैंने एक तमाशा दिखाने वाले की तरह लफ़्ज़ों की पुरपेच डुगडुगी बजा कर आपकी तवज्जो अपनी जानिब मबज़ूल कराने की कोशिश की है। मगर मेरे थैले में कोई ऐसी हैरत अंगेज़ चीज़ नहीं जो आप लोगों की दिलचस्पी का सामान बन चुके। फिर मैंने ख़्वाह-मख़ाह डुगडुगी क्यों बजाई? इस लिए कि ये मेरा पेशा है, लोगों को चौंकाना, उन्हें अपने गिर्द जमा करके ये बावर कराना कि मैं एक बहुत ही अज़ीम अदीब हूँ। हालांकि मेरे पास कहने को कुछ भी नहीं।

    लेकिन प्लीज़ ठहरिए, मेरा थैला इतना ख़ाली भी नहीं, इसमें चंद ख़ुतूत हैं और हाँ कुछ लोग कहते हैं कि मेरी तहरीरों पर हमेशा मौत का ज़र्द रू साया रहता है। ऐसा क्यों होता है? शायद इसलिए कि मैं मौत से ख़ौफ़-ज़दा तो हूँ मगर इसके साथ-साथ ये मुझे मस्हूर भी करती है। इस ज़र्द बदन महबूबा से हम आग़ोशी की फ़ना चाहत मेरे जिस्म को बग़ावत का पैग़ाम भी देती है। ज़िंदगी के बेशतर तजुर्बों में से गुज़रने, उन्हें बयान करने के बाद एक तिश्नगी सी रहती है कि एक तजुर्बा ऐसा है जिसमें से मैं नहीं गुज़रा। हालांकि उसमें से गुज़र कर तो इंसान बस गुज़र जाता है, उसे मुक़य्यद तो नहीं कर सकता मगर फिर भी... ये फ़ना का ख़ौफ़ ही तो है जो इंसान को तख़लीक़ पर उभारता है, वो चीज़ों को उनकी मौत से क़ब्ल लफ़्ज़ों में ढ़ाल कर दवाम देना चाहता है... बहरहाल प्रेम कहानी का तअल्लुक़ शायद मौत से भी नहीं... ये एक और डुगडुगी थी जो मैंने बजाई ताकि आप मेरी बात सुनने के लिए तैयार हो जाएं।

    हाँ तो मैं कह रहा था कि मेरे मदारी के थैले में चंद ख़ुतूत हैं, सैकड़ों में से सिर्फ़ चंद जो इधर-उधर ओझल होकर पड़े रहे, वरना मैं उन्हें भी अपने बेशतर ख़तों की मानिंद पुर्ज़ा-पुर्ज़ा कर चुका होता। मेरे सफ़रनामों की तरह इन ख़तों की सच्चाई का सबूत भी मेरे पास मौजूद नहीं और आप बजा तौर पर एतराज़ कर सकते हैं कि ये मेरे अपने ज़ेहन की पैदावार हैं और फ़र्ज़-ए-मुहाल अगर सचमुच ऐसे ख़ुतूत मौजूद हैं तो वो प्रेम के नहीं किसी और के लिखे हुए भी हो सकते हैं। हाँ, अगर उन्हें किसी माहिर-ए-तहरीर को दिखाया जाए तब फ़ैसला हो सकता है कि प्रेम की कहानी सच है या सिर्फ़ ज़ेहन की पैदावार, मगर माहिर-ए-तहरीर को तो मुवाज़ने के लिए प्रेम की एक आध ओरीजनल तहरीर हासिल करना होगी जो फ़िलहाल तो क़दरे ना-मुमकिन है कि मैंने आज तक तो प्रेम को देखा है और उसकी आवाज़ सुनी है। अलबत्ता मेरे पास उसकी तस्वीरें ज़रूर मौजूद हैं। मगर तस्वीर तो शायद लिख नहीं सकती।

    गर्मियों की एक गर्म दोपहर को (गर्मियों की दोपहरें हमेशा गर्म ही होती हैं... हाहा) मैं हस्ब-ए-मामूल दुकान पर विराजमान था। एक ऐसे बीज की तरह जो बर्फ़बारी के मौसमों में ज़मीन में दबा रहता है ख़्वाबीदा हालत में। मैं उसी क़िस्म की ख़्वाबीदा हालत में बैठा था कि एक 'अस्सलाम अलैकुम' ने मेरी खुली हुई आँखों को, जो पहले अपने आगे हरकत करने वाली अशिया को देख तो रही थीं क़बूल नहीं कर रही थीं, मज़ीद खोल दिया और मैंने अरशद को देखा। वो उजलत में था।

    यार मेरा एक काम करो। उसने जेब से एक तह शुदा काग़ज़ निकाल कर मेज़ पर रखा और उसे थपकने लगा, मेरी एक क़लमी दोस्त है डलहौज़ी में, शीला... हाँ-हाँ इंडिया में... उसकी एक क्लास-फ़ेलो पाकिस्तान में किसी 'मुनासिब शख़्स 'के साथ क़लमी दोस्ती करना चाहती है।

    'मुनासिब शख़्स' की ख़ुसुसियात उस तह शुदा काग़ज़ में दर्ज थीं जिसे अरशद बदस्तूर थपक रहा था।

    मुहतरम अरशद साहब!

    मैं आपकी क़लमी दोस्त शीला की क्लास-फ़ेलो हूँ। मेरी ख़्वाहिश है कि पाकिस्तान में मेरा कोई ऐसा क़लमी दोस्त हो जो स्पोर्ट्स कारों में दिलचस्पी रखता हो (अगर किसी कार रैली में शामिल हो चुका हो तो बहुत बेहतर है) मूसीक़ी की शुदबुद रखता हो, रक़्स कर सकता हो, ज़िंदा दिल हो और लोगों को पसंद करता हो, अंग्रेज़ी ज़बान पर उबूर रखता हो और गुड लुकिंग हो। मैं बेहद शुक्रगुज़ार हूँगी, अगर आप मेरे ख़त को अपने किसी ऐसे दोस्त के हवाले कर दें जो इन ख़ुसुसियात के क़रीब तर हो। शुक्रिया! प्रेम ख़ानग्राह। सेक्रेड हार्ट कालेज, डलहौज़ी। हिमाचल प्रदेश (इंडिया)

    मैंने ये डिमांड ड्राफ़्ट पढ़ा और शुक्रिए के साथ अरशद के आगे रख दिया, इस ख़ातून को स्टर्लिंग मूस, उदय शंकर, बॉब होप, ग्रेगोरी पैक और ब्रटर्न्ड रसल के आमेज़े से वजूद में आने वाला कोई शख़्स दरकार है... सॉरी।

    अरशद के होंट लरज़े और चेहरे पर वो कैफ़ियत नुमूदार हुई जिसे मुँह बिसूरना कहते हैं। इस हालत में वो बेहद मिस्कीन और मासूम नज़र आने लगता है। ऐसे मौक़ों पर मैं ला शऊरी तौर पर टॉफ़ी या मीठी सौंफ़ के पैकेट के लिए अपनी जेबें टटोलने लगता हूँ।

    और फिर यार मैं उम्र के उस हिस्से को फलाँग चुका हूँ, जब क़लमी दोस्ती ऐसे फ़ुज़ूल मशाग़िल पर वक़्त ज़ाए किया जाता है। मैंने अपने दिफ़ाअ में कहा।

    प्लीज़ मेरे लिए... ये शीला की पहली फ़रमाइश है। वो मुझसे नाराज़ हो जाएगी। अरशद बिल्लियाँ बनाते हुए पलकें झपक कर बोला, और फिर उस लड़की का नाम तो देखो कितना ख़ूबसूरत है, प्रेम...

    प्रेम? मैं चौंक गया। ख़त पढ़ने के बावजूद मैंने नाम पर ग़ौर नहीं किया था।

    हाँ। इतना ख़ूबसूरत नाम और ऊपर से सिखनी भी है।

    सिखनी? मैंने पुर इश्तियाक़ लहजे में पूछा।

    हाँ बड़ी डबल क़िस्म की। उसने स्कूटर की चाबी मेज़ पर से उठाई और दुकान से बाहर चला गया।

    दूसरे रोज़ मैंने उस ख़ूबसूरत नाम वाली अजनबी लड़की और सिखनी को चंद सत्रों का एक ख़त लिख दिया। ग़ैर-इरादी तौर पर मेरी तहरीर में ज़हर आलूदगी का उन्सुर नुमायाँ था। शायद इसलिए कि उसने स्पोर्ट्स कारों का ज़िक्र किया था और मुझमें इतनी सकत भी थी कि स्पोर्ट्स साइकिल ख़रीद सकता। वो मुझे अपनी इन डिमांडज़ में एक बदबूदार हद तक अमीर और नक चढ़ी सी कुड़ी लगी। एक ऐसी ही पाकिस्तानी लड़की की तरह जो मुझे अच्छी लगती थी मगर एक रोज़ जब उसने मुझे बताया कि वो रोज़ाना अपने बालों को शेम्पू की बजाय दरआमद शुदा बियर की दो बोतलों से धोती है तो मेरा तमाम तर ज़ाती एतिमाद बियर के झाग की तरह ही बैठ गया और मेरा एहसास-ए-कम्तरी जो मैं ख़ुद फ़रामोशी के शेल्फ़ पर रख कर भूल चुका था, धड़ाम से मेरे सर पर गिरा। मैंने फ़िलफ़ौर अपने आपको उसके मद्दाहों के गिरोह से अलैहदा कर लिया। बहरहाल दूसरे रोज़ मैंने उस ख़ूबसूरत नाम वाली अजनबी लड़की और सिखनी को चंद सत्रों का ख़त लिख दिया।

    अगले हफ़्ते प्रेम का जवाब गया। बाइबल के क़दीम नुस्ख़ों जैसी अंग्रेज़ी तहरीर में रक़म करदा एक आज़ाद, बे फ़िक्र और दोस्ताना ख़त जिसके आख़िरी फ़िक़रे ने मेरे चौड़े माथे पर शिकनों के धागे काढ़ दिए। लिखा था, अगरचे तुममें वो ख़ुसुसियात नहीं हैं जो मेरे नज़दीक एक आइडियल मर्द में होनी चाहिएं मगर इस दुनिया में कौन है जो परफ़ेक्ट है, गुज़ारा कर लूँगी। मेरी अना की खिलौना रेलगाड़ी एक धचके से रुकी और पटरी से उतर कर कछुए की मानिंद औंधी हो गई। मैंने उसे ग़ुस्से और सिखों के अहमक़ाना लतीफ़ों के लीवर से बमुश्किल सीधा करके पटरी पर डाला मगर फिर वो चली नहीं, खड़ी रही। मैंने प्रेम को एक और ज़हर-आलूद ख़त लिखा जिसमें मैंने उसके आइडियल मर्द का दिल खोल कर मज़ाक़ उड़ाया। ख़िलाफ़-ए-तवक़्क़ो फिर जवाब गया। प्रेम के ख़त आने लगे। पहले हर पन्द्रह बीस रोज़ के बाद, फिर हफ़्ते और फिर शायद हर रोज़ ही। कारोबारी ख़तों के पुलिंदों में से मेरी नज़रें उसकी आज़ाद और मुकम्मल दायरों वाली तहरीर को तलाश करने लगीं। मेरा ज़हर कम होने लगा।

    आज, इस वक़्त मेरे पास उसके सिर्फ़ चंद ख़त हैं, इन सैकड़ों ख़तों में से जो प्रेम ने मुझे डलहौज़ी और दिल्ली से लाहौर और बार्सिलोना से लिखे। अगर मुझे मालूम होता कि मैं दस बरस बाद उसके बारे में कहानी लिखूँगा तो मैं यक़ीनन उन्हें संभाल कर रखता मगर मुझे मालूम था, किसी को भी मालूम था। मैंने प्रेम को जितने ख़त लिखे वो तो ज़ाहिर है कि मैं यहाँ नक़ल नहीं कर सकता कि वो तो प्रेम के पास होंगे। मैं अब प्रेम के बारे में मज़ीद बातें नहीं करूँगा, वो ख़ुद आपसे बातें करेगी।

    सेक्रेड हार्ट कालेज, डलहौज़ी

    यकुम मई सन् 68

    प्यारे मुस्तंसर!

    कितनी बेपनाह ख़ुशी हुई मुझे तुम्हारा ख़त मिलने पर। मैं इंतिज़ार कर रही थी। इतने अरसे के बाद पढ़ाई से छुटकारा पा लेना कितनी ख़ूबसूरत बात है और मैं उसी फ़ुर्सत को बहाना बना कर तुम्हें ख़त लिख रही हूँ। कल अंग्रेज़ी का पर्चा था और आज सुबह तारीख़ का। पर्चे तो आसान थे मगर मैं कुछ नर्वस हो गई और ख़ूब उलट-पलट जवाब लिखे। मैंने अभी-अभी फ़ैसला किया है कि मुझे इम्तिहानों से नफ़रत है। तुम्हें नहीं है? मेरा ख़्याल है कि इस क़िस्म के इम्तिहान इल्म की कसौटी हरगिज़ नहीं होते, बस रट्टा लगाया और इम्तिहान के फ़ौरन बाद सब कुछ भूल भाल गया। (मुझे यक़ीन है कि मैं तुम्हें बोर कर रही हूँ, सॉरी।

    अच्छा छोड़ो कोई और बात करते हैं। मसलन... ठीक है मैं तुम्हें अपने और अपने घर के बारे में कुछ बताती हूँ। अगरचे बताने के लिए मेरे पास ज़्यादा कुछ नहीं है। मैं अठारह बरस की हूँ और अगस्त में उन्नीस बरस की हो जाऊँगी... मगर मैं उन्नीस बरस की होना नहीं चाहती, सिर्फ़ अठारह बरस का होना ज़्यादा एक्साइटिंग है। मेरी ख़्वाहिश है कि मैं हमेशा एक ही उम्र की रहूँ। मैं बहुत लम्बे क़द की हूँ अपने ख़ानदान के दीगर अफ़राद की तरह। मुझे इतनी लम्बी लड़की होना बिल्कुल पसंद नहीं और मुझे हमेशा ख़्वाब आते हैं। मेरा क़द छोटा हो गया है और मैं अपनी सहेलियों के लेवल पर गई हूँ। हाँ कभी-कभार मुझे अपना क़द अच्छा भी लगता है। क्योंकि लम्बी लड़कियों पर लिबास ज़्यादा सजता है और वो हुजूम में मुमताज़ नज़र आती हैं, तुम्हारा क्या ख़्याल है?

    मेरे पापा राजस्थान के रहने वाले हैं और मेरी माँ अमृतसर के क़रीब किसी इलाक़े माझे की थी। मगर मैंने जबसे होश संभाला है हम दिल्ली में रह रहे हैं। हमारा घर बहुत पुराना है और नई दिल्ली के मरकज़ में वाक़े है। ये कनॉट प्लेस के बहुत क़रीब है, तुम्हें पता है नाँ कि कनॉट प्लेस से बहुत सारी सड़कें निकलती हैं। बड़ा खम्बा रोड उन्ही में से एक है।

    मेरा कमरा पहली मंज़िल पर है और इसकी बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ हैं जो सड़क पर खुलती हैं, मैं तमाम दिन ट्रैफ़िक को देखती हूँ। मैं हमेशा ख़्वाब देखती रहती हूँ और बाहर देखती रहती हूँ। तुम कितने ख़ुश क़िस्मत हो कि तुम्हारे बहुत सारे बहन-भाई हैं। मैं इस शय से महरूम हूँ और इनकी कमी महसूस करती हूँ। मेरा सिर्फ़ एक भाई है, इन्द्रजीत। मगर जब भी मैं छुट्टियों में घर जाती हूँ तो वो तमाम दिन कालेज में गुज़ारता है और बाक़ी वक़्त दोस्तों के साथ और यूँ हम मिल नहीं सकते। चुनाँचे मैं हमेशा अकेली रहती हूँ। अगरचे मुझे लोगों से मिलना बहुत पसंद है। शायद इसी लिए मेरे पापा को शिकायत रहती है कि मेरे कमरे में दिन-रात मेरे दोस्त ऊधम मचाते रहते हैं लेकिन मेरा जी चाहता है कि वो हमेशा मेरे पास रहें, मुझे अकेला छोड़ें।

    हाँ मुझे भी तुम्हारी तरह एक तै शुदा शादी क़बूल करना होगी। इसकी बहुत सारी वजूहात हैं। मसलन मेरा बाप बिल्कुल इत्तफ़ाक़ नहीं करेगा कि मैं किसी जाट या सिख के अलावा किसी और शख़्स से शादी करने का सोचूँ भी। मेरा ख़ानदान बेहद क़दामत परस्त है (और मैं घर से भाग तो नहीं सकती, भला मुझे कौन अग़वा करेगा? तुम करोगे?) मेरा जी चाहता है कि मैं अपना ख़ावंद ख़ुद चुनूँ मगर मुझे इसकी इजाज़त नहीं मिलेगी। फ़िलहाल मेरी मंगनी नहीं हुई और मुझे ख़्वाहिश है कि हो। मैं कभी भी छोटे मोटे रोमांस को ज़्यादा आगे नहीं जाने देती क्योंकि मुझे मालूम है कि उनका इख़्तिताम शादी पर नहीं हो सकेगा, फिर फ़ायदा? वैसे मैं बहुत से लड़कों के साथ बाहर जाती हूँ, रक़्स करती हूँ। (मेरा भाई भी हमारे साथ होता है) लेकिन सिर्फ़ दोस्ती की हद तक।

    मैं चाहती हूँ कि पंजा साहब देखने के लिए पाकिस्तान आऊँ, मगर फ़िलहाल ये नामुमकिन है क्योंकि मेरे पापा कारोबार नहीं छोड़ सकते और उनके अलावा और कोई नहीं जो मेरे साथ जा सके। मैं किसी हद तक मज़हबी तो हूँ मगर मैं ये नहीं चाहती कि कोई मज़हब को मुझ पर ठूँसे और ज़बरदस्ती उठा कर गुरुद्वारे ले जाए। मैं चाहती हूँ कि मेरी दुआएं दिल से निकलें, क्या तुम मज़हब पर यक़ीन रखते हो? अक्सर लड़के नहीं रखते।

    इन सर्दियों में मैंने बहुत कुछ पढ़ा। वेली ऑफ़ डॉल्ज़, आर्मगडून और अंजलीक वग़ैरा। ओह क्या मैंने तुम्हें बताया है कि मेरी एक दोस्त के वालिद के पास अडोल्फ़ हिटलर की कार है। उसका नाम... है। इतनी बड़ी है नाँ और ज़ाहिर है बेहद शाहाना। हिटलर ने ये कार किसी हिंदुस्तानी महाराजे के हाथ फ़रोख़्त की थी और उसने उसे मेरी दोस्त के वालिद के हाथ बेच दिया। इतना मज़ा आता है उसमें बैठ कर... कभी-कभी यूँ एहसास होता है जैसे हिटलर भी हमारे साथ बैठा हुआ है। लेकिन जिस शय पर मैं बाक़ायदा आशिक़ हो चुकी हूँ वो है 67 मॉडल की जेगुअर। इतनी ख़ूबसूरत और स्मार्ट। मैंने जो देखी वो सिल्वर ब्लू थी और दिल्ली में उड़ती फिरती थी। मेरा बहुत जी चाहता है कि वो मेरी हो और इसके अलावा एक सिल्वर रोल्ज़ रॉयस हो और बहुत सारी नीली मर्सिडीज़ कारें... मगर ये सब ख़्वाब है। एक और कार फ़रारी भी बहुत पापुलर है, ताक़तवर और एक्साइटिंग। अगले ख़त में मैं तुम्हें डल (डलहौज़ी) के बारे में लिखूँगी और प्लीज़ जल्दी लिखना।

    प्रेम

    कितनी अहमक़ाना ख़्वाहिश कि मैं हमेशा एक ही उम्र की रहूँ। मैंने माझे की जट्टी की इस कॉनवेंट में पढ़ने वाली बेटी को इस ख़त के जवाब में यही कुछ लिखा और आख़िर में ये भी कि शादी के लिए तुम्हारे वालिद की आयद करदा शर्तों में से एक तो मैं पूरी करता हूँ कि ख़ालिस जाट हूँ, अलबत्ता फ़िलहाल मुकम्मल तौर पर सिख नहीं हूँ और उसके बारे में तभी सोचा जा सकता है जब मेरे पास तुम्हारी कोई फ़ैसला-कुन तस्वीर हो।

    डलहौज़ी

    28/08/68

    डियर मुस्तंसर!

    तुम्हें मालूम है तुम्हारे ख़त ने मुझे कितनी ख़ुशी दी? तुम्हें नहीं पता। मुझे फ़ालतू वक़्त इतना कम मिलता है और अगर मिल जाए तो कोई पुर सुकून जगह नहीं मिलती। हर कोने खुदरे में लड़कियाँ कीड़ों की तरह रेंग रही होती हैं। बहरहाल इस वक़्त ख़ुश-क़िस्मती से मैं अकेली हूँ, अपने ख़्यालात के साथ और सिर्फ़ तुम्हारा ख़त मेरा रफ़ीक़ है (और ये कितना ख़ूबसूरत रफ़ीक़ है। तुम्हें पता है? नहीं पता।

    मुस्तंसर! दर अस्ल मैंने तुम्हें अपने ख़ानदान के बारे में हर चीज़ बिल्कुल सच नहीं बताई। मैंने झूट बोला था। ये एक ऐसा मौज़ू है जिसे मैं छेड़ना नहीं चाहती। मगर मैं चाहती हूँ कि तुम मेरे दोस्त बनो और मैं सिर्फ़ तुमसे दिल का हाल कह डालूँ। मेरी माँ नहीं है। मैं सिर्फ़ नौ साल की थी जब वो मर गई। चंद बरस बाद मेरे बाप ने दूसरी शादी करली। (मैं शायद उस वक़्त चौदह बरस की थी) और अब मेरी एक छोटी-सी निस्फ़ बहन है, वो चार बरस की है और बहुत ही प्यारी। मैं जब छोटी थी तो अपने बाप की परस्तिश किया करती थी, हाँ वाक़ई मैं तहे दिल से उसे पूजती थी मगर दूसरी शादी के बाद हम एक दूसरे से दूर होते चले गए। मेरी माँ एक बेपनाह हसीन औरत थी (मुझे तवील-क़ामती विरसे में मिली है और चीज़ों के अलावा) और वो मुझे बेहद याद आती है।

    एक लड़की को अपनी माँ की ज़रूरत होती है। ख़ास तौर पर जब वो जवान हो रही होती है। मैं दुनिया की हर शय त्याग दूँ अगर मेरी माँ मुझे वापस मिल जाए। उसके बग़ैर में बेहद अकेली हूँ। वैसे मेरा बाप मुझसे बेहद लाड़ करता है। हमारा एक घर है। ख़ूबसूरत-तरीन और बहुत बड़ा (तमाम पुराने घर होते हैं। मैं अपने घर की एक तस्वीर भेज रही हूँ। मेरा बेड रूम वो बड़ी खिड़की वाला है। दाएँ हाथ पर जहाँ बैठ कर मैं बाहर देखती हूँ और ख़्वाब देखती हूँ। मैं तुम्हें अपने तमाम दोस्तों के बारे में भी बताना चाहती हूँ मगर मुझे मालूम नहीं कि मैं इस कोशिश में किस हद तक कामयाब हूँगी। उनमें एक नलिनी है जिससे में बेहद प्यार करती हूँ। हम स्कूल में इकट्ठी पढ़ती थीं। अब वो दिल्ली के एक कालेज में है। माहीप और मैं भी बहुत अच्छी दोस्त हैं। बहुत ख़ूबसूरत लड़की है और हर लड़के पर नज़र रखती है, जिसे चाहती है क़ाबू कर लेती है। ये ख़्याल किए बग़ैर कि किसी दूसरी लड़की के जज़्बात मजरूह होंगे।

    उसकी बहन प्रदीप पिस्ता क़द की लड़की है, जो एक चश्मे की तरह फूटती है। अलापे हम सबमें से सोबर है और अम्बर सबसे शोख़ और जिन लड़कों के साथ मैं घूमती हूँ मुस्तंसर? वो पूरे दिल्ली में सबसे ज़्यादा हैंडसम और सबसे ज़्यादा निकम्मे हैं। एक ऐसा वक़्त था जब आधे हिंदुस्तान में उनकी धूम थी। मैं उस गैंग में उनकी बहन अम्बर के ज़रिए दाख़िल हुई और पोची ने भी मेरी मदद की। मैं उन लड़कों के बहुत क़रीब थी (और हूँ। चीको और बादल जितने हैंडसम मर्द मैंने आज तक नहीं देखे और उन्हें भी इस बात का इल्म है (याद रहे मैंने तुम्हें अभी नहीं देखा। मैंने आज तक उन्हें किसी लड़की के बारे में संजीदा होते नहीं देखा। वो उनको सिर्फ़ एक रात की तफ़रीह के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। ये लड़के सिर्फ़ दोस्तों की हद तक तो ठीक हैं, लेकिन उनसे राबता बढ़ाना अपनी मौत को आवाज़ देने के मुतरादिफ़ है।

    उनकी छोटी बहन अम्बर भी ऐसी है कि हर लड़के की तरफ़ उतना ही फ़ासला तै करती है जितना वो करता है और मुस्तंसर ये फ़ासला मेरे हिसाब से तो कुछ ज़्यादा ही है। मुझे बादल बहुत अच्छा लगता है। वो ज़हानत के मामले में सिफ़्र है और शराब के मामले में सौ फ़ीसद और इसके अलावा उसका ज़ेहन सिर्फ़ एक रास्ते पर चलता है और तुम जानते हो कि वो कौन सा रास्ता है और मैं बहरहाल उस रास्ते पर खड़े रहने का रिस्क नहीं ले सकती। मुझे मालूम है कि जिस तरह मैं बता रही हूँ, ये लड़के बहुत ख़ौफ़नाक लगते हैं और मुझे उनसे नहीं मिलना चाहिए मगर दोस्ती की हद तक तो हर्ज नहीं और वो बहुत अच्छे दोस्त हैं।

    ओए बेहूदा लड़के क्या मतलब है तुम्हारा, कि अगर मैं गंदी किताबें पढ़ना चाहती हूँ तो बेशक पढ़ूँ। मेरा रंग 'गंदी' का लफ़्ज़ पढ़ कर सुर्ख़ हो गया (हाँ सचमुच) मुझे बिल्कुल शौक़ नहीं गंदी किताबें पढ़ने का और अगर अंजलीक पढ़ते हुए एक-दो मक़ामात ऐसे आगए तो इसमें मेरा क्या क़सूर? ओह मैं इतनी ख़ुश हुई ये पढ़ कर कि तुम्हें भी स्टाइलिश कपड़े पहनने का शौक़ है। मैं चूँकि लम्बे क़द की हूँ इसलिए कपड़े मुझपर बहुत सजते हैं। मुझे भड़कीले शोख़ रंग पसंद हैं। मसलन चुभता हुआ पिंक, ऑरेंज, लाइम ग्रीन और पर्पल। मुझे ऐसे रंग अच्छे नहीं लगते जो फीके और नामालूम से हों और हाँ मेरा एक गुनाह परफ़्यूम हैं। मेरे पास बहुत हैं और मैं मरती हूँ इन पर। इस मर्तबा जब मैं दिल्ली जाऊँगी तो तुम्हें वहाँ से कफ़ लिंक्स भेजूंगी। अच्छा तो मुझे लाहौर आकर गर्मी का मज़ा चखना चाहिए। सच बताओ मुस्तंसर क्या में वाक़ई इस गर्मी में रोस्ट हो जाऊँगी? ठीक है कभी कभी मैं ये दावत ज़रूर क़बूल कर लूँगी और लाहौर आऊँगी। क्या ये दावत हमेशा के लिए बरक़रार है?

    डलहौज़ी आरामदेह हद तक ख़ुनक है। मानसून ज़ोरों पर हैं और बेपनाह बारिश हो रही है। मुझे ये मौसम अच्छा नहीं लगता। मुझे गर्मी और धूप पसंद हैं। मेरा जी चाहता है कि मैं इस ख़त में डलहौज़ी की सर्दी बंद करके तुम्हें भेज दूँ, बस थोड़ी सी। क्या तुम्हें ये पहुँची? मैंने भेज दी है। शाम को कॉनवेंट की सब लड़कियाँ होस्टल से भाग कर फ़िल्म देखने जा रही हैं।

    मैं तुम्हें चंद फ़ुज़ूल सी तस्वीरें भेज रही हूँ। ये पहली तस्वीर तब की है जब हम एक पहाड़ी पर चढ़ने वाले थे और मैं अपनी साढ़ी दुरुस्त कर रही थी। लड़कियाँ मुझे छेड़ती हैं क्योंकि यूँ लगता है कि में साढ़ी उतार रही हूँ। तुमने मेरे लम्बे बालों पर ध्यान दिया? मेरे बाल लम्बे और घने हैं। दूसरी तस्वीर में जो कुरते और चूड़ीदार पाजामे में है, मैं एक कड़कने वाली बिजली का तास्सुर देती हूँ। मगर ये ग़ुस्सा तुम्हारे लिए नहीं है। बस सूरज मेरी आँखों के सामने था और मैंने मुँह बना लिया। तीसरी तस्वीर तुम्हें शाक करेगी। क्योंकि इसमें दुल्हन बनी हुई हूँ। ये एक फ़ैंसी ड्रेस की है और देखो मैं बाक़ायदा शर्मा भी रही हूँ। मैं अच्छी लगती हूँ नाँ दुल्हन के सुर्ख़ लिबास में? और हाँ मुझे याद आया, मेरी इन तस्वीरों को देख कर तुम सिख होने पर आमादा हो? मेरा ख़्याल है तुम्हारा ज़ौक़ इतना बुरा होगा कि मुझे पसंद करो। अब मुझे ख़त ख़त्म करना होगा वरना लिफ़ाफ़े में नहीं आएगा। ख़ुश रहना मुस्तंसर और फ़ौरन लिखना मुझे।

    प्रेम

    कितना अहमक़ाना ख़ौफ़ कि वो रोस्ट हो जाएगी, जल जाएगी और हाँ प्रेम ने जो तस्वीरें भेजीं, वो वाक़ई फ़ैसला-कुन थीं। मुझे वो अच्छी लगी। जिस तस्वीर में वो अपनी साढ़ी दुरुस्त कर रही है उसमें उसकी गूँधी हुई दबीज़ चोटी इस तरह लटक रही है कि उसके बोझ से प्रेम का गोल और भरा-भरा चेहरा एक जानिब झुक सा गया है। दूसरी तस्वीर में उसका लांबा क़द जो उसे माझे की एक जट्टी से विरसे में मिला है, यूँ निकलता दिखाई दे रहा है कि उसे देख कर माही सर्वोदय बूटिया के बोल मुझे पहली मर्तबा सच लगे। माइकल एंजलो के मुजस्समे दाऊद की तरह उसके बाज़ू इतने लम्बे और मुतनासिब हैं कि जैसे वो उसी तरह खड़े-खड़े ज़मीन को छू लेगी। इन सब तस्वीरों में सब कुछ है मगर ख़ुशी नहीं है, जैसे राह तक रही हो और जो कुछ उसे इस राह पर नज़र रहा है वो कुछ ऐसा दिल पसंद नहीं... ये तस्वीरें यक़ीनन फ़ैसला-कुन थीं मगर मैं ढीट बन गया। भला एक ऐसी लड़की के लिए जिनकी आवाज़ सुनी हो, चेहरा देखा हो उसके लिए सिख हो जाने का ख़्याल, क्या एक सिखों ऐसा ख़्याल नहीं है?

    डलहौज़ी

    23 नवंबर 68

    हैलो अजनबी!

    मैं तुमसे बेहद नाराज़ हूँ। तुमने भुला दिया है और लिखते तक नहीं। मेरा जी चाहता है मैं तुमसे हमेशा के लिए मुँह मोड़ लूँ और कभी लिखूँ। मैं सच कह रही हूँ। तुम इतने ज़ालिम हो कि जब मैंने तुमसे दरख़ास्त भी की थी कि लिखते रहना तो क्यों नहीं लिखा मुझे? तुम्हारा ख़त आने पर मैं नर्म पड़ गई। अगरचे एक तवील और ख़ूबसूरत ख़त था मगर फिर भी किसी तौर ताख़ीर का मदावा था। चलो फ़ौरन माफ़ी मांगो मुझसे कि आइन्दा ऐसा नहीं करोगे।

    मेरे इम्तिहान ख़त्म हो गए और मैं अब जितना जी चाहे ऊँघ सकती हूँ। आज नतीजे का ऐलान हुआ। इस अमर को मल्हूज़ ख़ातिर रखते हुए मैंने पिछला एक माह दिल्ली में ख़ूब मज़े किए। रिज़ल्ट इतना बुरा था अलबत्ता अंग्रेज़ी में कुछ कमी रह गई है जिसका मुझे बेहद अफ़सोस है। पिछले बरस मैंने पंजाब यूनिवर्सिटी में टॉप किया था।

    कुछ अरसे से राहिबाओं के साथ मेरी बहुत खट पट रहती है। तुम्हें राहिबाओं और उनके आदात-ओ-अतवार के बारे में कुछ इल्म है? मेरा ख़्याल है कि राहिबाएँ बहुत वहशत-नाक चीज़ें होती हैं और मेरे ऐसी छोटी और भोली लड़कियों को उनके हवाले नहीं करना चाहिए। ज़िंदगी और मोहब्बत के बारे में उनके नज़रियात बहुत गुमराह-कुन होते हैं। इधर ज़रा सी बात हुई और उधर उन्होंने एक गंदी तावील निकाल ली। जी नहीं चाहता यहाँ रहने को मगर मजबूरी है। पापा मुझे दिल्ली में दाख़िला लेकर नहीं देते। ख़ैर सिर्फ़ एक बरस रह गया है इस ठंडे जहन्नुम में और फिर छुट्टी हमेशा के लिए। क्या तुम्हें मेरी बातें बचकाना लगती हैं?

    सो मेरे हैंडसम दोस्त तुम अभी तक पुरानी मुहब्बतों को नहीं भूले? मोहब्बत कितनी ख़ौफ़नाक चीज़ होती है। तुम एक अजनबी को अपना मालिक बना कर तमाम तर ताक़त उसके हाथ में दे देते हो। दुख देने की, ख़ुशी देने की, उदास करने की ताक़त। किसी को भी इतना इख़्तियार नहीं देना चाहिए अपने ऊपर। मैं तुम्हें चीको के बारे में बताऊँ? वो अम्बर और बादल का बड़ा भाई है। मैं पन्द्रह बरस की थी जब उसे एक शादी पर पहली मर्तबा मिली और तब से उसे चाहती हूँ। वो भी मुझे चाहता है मगर हमारा ज़ेहनी रुज्हान ऐसा है कि हम ज़्यादा देर तक साथ-साथ नहीं चल सकते। वो बुनियादी तौर पर एक लड़की के साथ गुज़ारा करने वाला मर्द नहीं है। हर लड़की के साथ मोहब्बत में गिरफ़्तार हो जाता है और मैं एक बीवी की हैसियत से ये कभी बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगी। बहर हाल वो फ़िलहाल मुझसे शादी नहीं कर सकता और शादी के बग़ैर मैं उसे अपने क़रीब नहीं आने देना चाहती। ('क़रीब' का मतलब जानते हो नाँ छोटे बच्चे?) और यही मसला हमारे दरमियान रंजीदगी का बाइस बनता रहता है। चुनाँचे हमारी लड़ाई हो गई और मैं जितनी दुखी हूँ वो उतना ही कम मुतअस्सिर हुआ है। वो बहुत हैंडसम है। (क्या तुम जल गए हो?)

    तस्वीरों का शुक्रिया। तुम्हारे चेहरे पर बहुत बशाशत है। तुम्हारी आँखें इतनी ज़िंदा हैं कि मैं बयान नहीं कर सकती। पता नहीं एक साकिन तस्वीर पर वो इतनी ज़िंदा क्यों लग रही हैं। तुम्हारी बहनें भी ख़ूबसूरत हैं। उनके गालों की हड्डियाँ बेपनाह मुतअस्सिर करती हैं और जबड़ों की लाइन बहुत पर्फ़ेक्ट है। मुझे तराशीदा साख़्त के चेहरे अच्छे लगते हैं।

    क्या मतलब है तुम्हारा कि मैं सिर्फ़ इसलिए शादी करना चाहती हूँ क्योंकि मैं इन दिनों गंदी-गंदी किताबें पढ़ रही हूँ? अहमक़ हो तुम मुस्तंसर डियर। जब मैं, या मेरा ख़्याल है कोई भी लड़की शादी के बारे में सोचती है तो उसमें सिर्फ़ मोहब्बत, इस्तिहकाम और अपना घर बनाने का जज़्बा होता है। तुम लड़के शादी को सिर्फ़ जिन्स के साथ क्यों नत्थी कर देते हो। इससे ज़ाहिर होता है कि एक लड़के का दिमाग़ किस तरह लड़की की निस्बत मुख़्तलिफ़ सतह पर सोचता है। वाक़ई मैंने कोई जिन्सी बात नहीं सोची थी। वैसे मुस्तंसर मेरी समझ में नहीं आता कि एक ही छत के नीचे मैं एक ऐसे शख़्स के साथ किस तरह ज़िंदगी गुज़ार सकूँगी जिससे मैं मोहब्बत नहीं करती क्योंकि चाहे कुछ भी हो जाए, मेरी शादी तो माँ-बाप की मर्ज़ी से ही होगी। तुम किस तरह एक अजनबी शख़्स के साथ जिस्मानी रब्त क़ाइम कर सकते हो? क्या समझते हो कि मेरी सोच अहमक़ाना है? शायद इन सर्दियों में मेरी शादी हो जाए। हो सकता है शायद। लेकिन जब भी मेरी शादी होगी मैं तुम्हारी दोस्त रहना चाहती हूँ। (वो ख़त यक़ीनन मुख़्तसर होंगे ये पहले से बता दूँ) और अगर तुम्हारी शादी हो जाए तो? क्या तुम मुझे लिखते रहोगे? मुझसे वादा करो कि तुम लिखोगे।

    तुम वाक़ई फ़ुनून-ए-लतीफ़ा के बारे में बहुत कुछ जानते हो। मुझे भी दिलचस्पी तो है, मगर मार्डन आर्ट मेरे पल्ले नहीं पड़ता। एक मर्तबा मुझे मोना लीज़ा के बारे में एक मज़मून लिखना पड़ा था जिसमें उसकी मुस्कुराहट के बारे में तश्बीहात की एक तवील फ़ेहरिस्त थी। पेरिस की एक लड़की ने कहा था, ये निस्वानी मुनाफ़िक़त से भरपूर एक मुस्कुराहट है। मैं उसी तरह अपने ख़ावंद के सामने मुस्कुराती हूँ। वैसे मुझे तो ये मुस्कुराहट लगती ही नहीं। होंटों का कर्व बहुत छोटा है। क्या तुमने ये तस्वीर देखी है?

    उर्दू शायरी यक़ीनन ख़ूबसूरत होगी क्योंकि ये ज़बान भी तो ख़ूबसूरत है। शायरी पढ़ना मेरे लिए सुकून का बाइस बनता है। मुझे टैगोर, उमर ख़य्याम और ख़लील जुब्रान-पसंद हैं। टैगोर नन्हे मुन्ने फूलों और ख़ुदा की अज़मत पर नज़्में लिखता है। मैंने ख़लील जुब्रान की सरकश रूहें पिछले दिनों पढ़ी थी। हमारे कालेज में तीन मुसलमान लड़कियाँ हैं। उनमें से एक हुमा नजीब मेरी दोस्त है, उसने मुझे उर्दू सिखाने की कोशिश की तो मैंने तुम्हारा नाम लिखना चाहा। बहुत मुश्किल था। वो मेरे साथ उर्दू बोलती है यानी सुबह बख़ैर और शाम बख़ैर उर्दू में ही कहती है।

    अच्छा तो तुम अपने घर में पंजाबी बोलते हो? मुझे बहुत हैरत हुई। क्या तुम उसे लिख भी लेते हो? दिल्ली में एक नई डिस्कोथेक खुली है। सुना है कि वो 'सेल्ज़' से भी ज़्यादा पागल और पुर शोर जगह है। कमाल है। मुझे यक़ीन था कि 'सेल्ज़' से बढ़ कर कोई और जगह हो ही नहीं सकती। कभी कभी मैं ज़रूर लाहौर आऊँगी और हम दोनों वहाँ किसी डिस्कोथेक में जाएंगे। ठीक है? तुम्हें पता है राहिबाओं का ख़्याल है कि मैं ख़ौफ़नाक हद तक बुरी लड़की हूँ क्योंकि लड़के मेरे दोस्त हैं और मैं उनके हमराह पार्टियों में जाती हूँ। भला जो कुछ मैं दिल्ली में करती हूँ इससे उनका तअल्लुक़? तुम्हारा क्या ख़्याल है?

    डल इतना ख़ूबसूरत है। हिंदुस्तान के ख़ूबसूरत तरीन पहाड़ी मुक़ामात में से एक, लेकिन मुझे पसंद नहीं। डलहौज़ी बहुत ही डल है। डल, डल। ओहो चौदह सफ़े हो गए। मुस्तंसर! मैंने ख़त लिखने की बजाय एक किताब लिख दी है। लिफ़ाफ़ा बहुत भारी हो जाएगा और मैं इतनी सर्दी में मज़ीद टिकटों के लिए बाहर नहीं निकलना चाहती। प्यार!

    प्रेम

    कितनी अहमक़ाना धमकी कि मेरा जी चाहता है मैं तुमसे हमेशा के लिए मुँह मोड़ लूँ और कभी लिखूँ! मोहब्बत कितनी ख़ौफ़नाक होती है। प्रेम के इन अलफ़ाज़ की सच्चाई का सबूत मुझे बहुत बरस बाद मिला, लेकिन एक फ़र्क़ के साथ। एक अजनबी को मालिक बना कर, तमाम तर ताक़त उसके हाथ में दे कर दुख देने की, ख़ुश करने की, उदास करने की ताक़त। मुझे ज़िंदगी में पहली बार सुकून मिला।

    सेक्रेड हार्ट कॉलेज

    डलहौज़ी

    22 मार्च 69

    मुस्तंसर!

    मेरी समझ में नहीं आता कि मैं ग़ुस्से से फूट पड़ूँ, कम से कम रूठ जाऊँ या ये तहरीरी तअल्लुक़ हमेशा के लिए तोड़ दूँ। मैंने तुम्हें सर्दियों में इतने ख़त लिखे, एक पोस्ट कार्ड भी, मगर तुम बिल्कुल ख़ामोश रहे। पहले मुझे शक हुआ कि मेरे ख़ुतूत डाक की हड़ताल में खो गए हैं मगर जो ख़त मैंने दूसरों को लिखे वो तो री डायरेक्ट हो कर मुझे वापस मिल गए, तुम्हारे नहीं मिले, इसका मतलब है वो तुम्हें मिले, मुस्तंसर क्यों नहीं लिखते मुझे।

    आज हफ़्ता है। मेरी छुट्टी का दिन और क़ुदरती तौर पर मौसम को आज ही बकवास हो जाना था। जिस रोज़ मैं खिड़की से बाहर देखूँ और मुझे धुंद और बारिश नज़र आए तो मुझे फ़ौरन इल्म हो जाता है कि ये मेरी छुट्टी का दिन ही होगा। मैं बाहर नहीं जा सकती और सारी शाम अकेली बैठी रहती हूँ। स्कूल की बच्ची की तरह, अकेली और उदास।

    दिल्ली में छुट्टियाँ बहुत मज़े से गुज़रीं। पिछले माह वहाँ एक कार रैली हुई। हम सब एक जीप में सवार हो कर साथ गए, जिसे बादल ने तेज़ हवा की तरह चलाया। वो सौ मील फ़ी घंटा की रफ़्तार से उड़ा जा रहा था। उसके इतने हादसे हो चुके हैं कि अगर एक और हो जाता तो किसी को हैरत होती। हम दिल्ली से तीस मील के फ़ासले पर एक गाँव सोमना में गए। इतनी ख़ूबसूरत और छोटी सी जगह जिसके गिर्द पथरीली पहाड़ियाँ हैं। हम तमाम कारों से पहले पहुँच गए। सारा दिल्ली वहाँ आया हुआ था। हमने लंच किया और सैंडविच और बियर के डिब्बे साथ रख लिए। शाम को हम दिल्ली लौटे, बद-क़िस्ती से... नहीं जीत सकी। वाक़ई ये हिटलर की ज़ाती कार है। इसने महाराजा पटियाला को तोहफ़ा में दी और मौजूदा महाराजा ने अम्बर, बादल और चीको के बाप साक़ी के आगे फ़रोख़्त कर दी।

    मुक़ाबले में दौड़ने वाली तमाम कारें चार्मिंग थीं। मुझे एक भी मिल जाती और हाँ मैंने होली भी ज़बरदस्त मनाई। सुबह-सवेरे लड़के मुझे लेने आगए और फिर हमने बाक़ी लोगों को उनके घरों से पिक किया। रास्ते में हमने हर शख़्स पर रंग फेंका और बिल्कुल जंगली बन गए। जीप में इतने लोग थे कि एक इंच भी जगह ख़ाली नहीं थी। कनी और विनोद बाँट पर बैठे हुए थे और सूफ़ी का सिर्फ़ एक पाँव जीप के अंदर था। हम जम्हूरीया मिस्र के सिफ़ारत ख़ाने के अंदर चले गए। मिस्री सफ़ीर और उनके बीवी-बच्चे बेहद हैरान हुए कि उन्होंने ऐसा शानदार मेला पहले कभी देखा था। उन्होंने हमारी बेशुमार तस्वीरें उतारीं और उनके बेटों ने हमारे साथ। हम पिछले पहर घर लौटे, जहाँ मैंने अपने जिस्म से रंग उतारने की नाकाम कोशिश की। रात को हम 'तबेला' चले गए जो एक नई डिस्कोथेक है और मेरी पसंदीदा। उसे एक अस्तबल की तरह सजाया गया है। हफ़्ते की शब को वहाँ इतना हुजूम होता है कि हमें मेज़ों पर चढ़ कर नाचना पड़ता है। ओह कितना लुत्फ़ आया इन सर्दियों में। बाक़ी बाद में बताऊँगी।

    चीको से ज़्यादा मुलाक़ातें नहीं हुईं। इन दिनों ब्राउली में काम कर रहा है। एक पार्टी में हमारी ज़बरदस्त लड़ाई हो गई। मैंने उसे बता दिया कि मैं रास्ते की धूल नहीं हूँ और वो मेरे साथ धूल ऐसा सुलूक नहीं कर सकता। वो एक दम बहुत अपसेट हुआ और फिर बेहद नाराज़, बाद में ठीक हो गया। उसने मुझे बताया कि वो मुझसे शादी नहीं कर सकता, क्योंकि उसे अभी ठीक तरह से मालूम नहीं कि वो ज़िंदगी में क्या चाहता है। उस शाम जब मैं वापस आई तो वो 'तबेला' में गया और मेरे भाई इन्द्रजीत को कहने लगा, मैं प्रेम से शादी कर रहा हूँ। जाने क्यों? इन्द्रजीत बेहद ग़ुस्से में है। वो इस हक़ीक़त का सामना नहीं करना चाहता कि मुझे चीको से मोहब्बत है। उसने मुझे एक तवील लेक्चर दिया और कहा कि मैं चीको से शादी नहीं कर सकती, क्योंकि वो सिर्फ़ एक प्ले बॉय है। मेरी चची को भी पता चल गया है और वो भी यही कहती है। में बेहद अपसेट हूँ। उस शाम के बाद मैं चीको से नहीं मिली, चुनाँचे कुछ भी तै नहीं हुआ।

    अगर आइन्दा सर्दियों में वो मेरे ख़ानदान की मर्ज़ी के बग़ैर मुझे क़बूल करने को तैयार हो गया तो मैं उसके साथ शादी कर लूँगी। फ़िलहाल मैं ज़ेहनी तौर पर मुंतशिर हूँ। मुझे तो चीको का भी पता नहीं कि वो मेरे बारे में सचमुच क्या महसूस करता है। मुझे ये भी मालूम है कि अगर मैंने उसके साथ शादी कर ली तो वो मुझे बहुत दुखी कर सकता है, अगर वो चाहे तो। लेकिन वो मेरी कमज़ोरी बन चुका है और जानता है। अम्बर के बच्चा होने वाला है और नाज़ के हाँ भी। मई में शायद। वो अपनी माँ के पास चली गई है और उसके ख़ावंद बादल का बुरा हाल है।

    बादल, सुघंद और बूटा का बड़ा ज़बरदस्त हादसा हो गया इन सर्दियों में। अगले रोज़ सुघंद की शादी थी। ये तीनों बहुत ही बुलंद क़िस्म के नशे में मस्त सड़क के दरमियान में पूरी रफ़्तार से गाड़ी चला रहे थे। चुनाँचे एक गोल चक्कर के गिर्द जाने की बजाय सीधे गए और बड़ा सारा धमाका कर दिया। बादल की उंगलियाँ टूट गईं और एक दांत आधा रह गया। वो कमबख़्त इतना मग़रूर है कि बजाय इसके कि ज़िंदगी बच जाने पर शुक्र करे उल्टा फ़िक्र रहा है कि अब मै मुस्कुराऊँगा तो मेरा दांत आधा दिखाई देगा। ख़ुश क़िस्मती से सुघंद को ज़्यादा चोट नहीं लगी। फिर भी शादी की तस्वीरों में उसका चेहरा क़दरे फूला हुआ है। मुझे उसकी बीवी बिल्कुल अच्छी नहीं लगती। कीना परवर सी है। अब ख़त्म करूँ! प्लीज़ जल्द लिखना। क्या अब तुम ख़ुश हो?

    प्रेम

    दोस्तावोस्की को जब मैंने पहली मर्तबा पढ़ा तो नॉवल के इब्तिदाई सौ डेढ़ सौ सफ़्हे तो मुझे बाक़ायदा निगलने पड़े। शहरों और क़स्बों की एक-एक ईंट की तफ़सील। बेशुमार किरदार जो एक-एक करके तहरीर में से उभरते और फिर उनका नाम-ओ-निशान तक मिलता। फिर आहिस्ता-आहिस्ता जब मैं उस माहौल का एक हिस्सा बन गया, उन किरदारों की मर्ग़ूब ख़ुराक, उनके जज़्बों, नफ़सियाती उलझनों, नशिस्त-ओ-बर्ख़ास्त के तौर तरीक़ों और महरूमियों से वाक़िफ़ हुआ तो फिर दोस्तावोस्की की दास्तान गोई ने मुझे निगल लिया। नॉवल के इख़्तिताम पर एक झल्लाहट की सी कैफ़ियत तारी हो गई कि ये किरदार तो बदन रखते थे, जीते जागते थे। फिर ख़त्म क्यों हो गए, सिर्फ़ काग़ज़ों में मुक़य्यद क्यों हैं। मेरे चार चफ़ेरे हमेशा के लिए साँस क्यों नहीं लेते, वो चले क्यों गए। प्रेम के अव्वलीन ख़त भी ऐसे ही थे।

    उसके दोस्त, उसकी सहेलियाँ किसी फ़िक़रे, किसी नफ़रत के इज़हार, किसी प्यार के बोल में से झाँक कर चले जाते और फिर आहिस्ता-आहिस्ता माहीप, अम्बर, बादल, चीको, इन्द्रजीत, विनोद, सुघंद लफ़्ज़ों के लबादे चाक करके मेरे आस-पास फैल गए जैसे इक्कीसवीं रोज़ अंडे के बारीक छिलके को चोंच मार कर चूज़ा धीरे-धीरे बाहर आता है और आपको हैरत से देखने लगता है। मैं एक नज़र आने वाले इंसान की तरह उन लोगों की पार्टियों और कार दौड़ों, मुहब्बतों और मायूसियों में शामिल हो गया। प्रेम मुझे लाहौर की गर्मियों में से निकाल कर डलहौज़ी की ख़ुनक बारिशों और दिल्ली के हड़बोंग मचाते हुजूम में ले जाती। मैं हिसाब लगाता रहता कि नाज़ के हाँ बच्चा कब होगा, प्रेम के इम्तिहानों के बारे में फ़िक्र मंद रहता। मैं हिटलर की कार की पिछली नशिस्त पर प्रेम के साथ बैठा होता और ख़ौफ़-ज़दा रहता कि बादल की तेज़-रफ़्तारी की वजह से हादसा हो जाए। चीको और प्रेम तबेला की मेज़ों पर चढ़ कर मेरे सामने रक़्स करते और सर्वोदय बूटे ऐसी प्रेम होली के दिन मुझपर रंग फेंकती। उसका हर ख़त पेंडोरा के बुक्स की मानिंद होता जिसे खोलते ही मुख़्तलिफ़ किरदार उछल कर बाहर निकलते और मेरे सामने पुतलियों की तरह रक़्स करने लगते। मगर प्रेम उनसे अलग रहती, हमेशा एक फ़ासले पर चुप-चुप और मेरी दस्तरस से बाहर, ख़ामोश! ख़त ख़त्म होता तो ये किरदार अपने लिबास समेटते हुए दोबारा बुक्स में घुस जाते।

    डलहौज़ी

    18 अप्रैल 69

    प्यारे मुस्तंसर!

    अभी तक मुझे नहीं लिखा तुमने! क्या तुम्हें मेरा आख़िरी ख़त नहीं मिला? ख़ुदा करे मिल गया हो क्योंकि वो बाक़ायदा एक अख़बार था। इतने अरसे से तुम्हारी ख़बर नहीं आई और मैं बहुत उदास हूँ।

    तुम्हारी प्रेम

    मुझे उसका ख़त मिल गया था मगर वो आख़िरी नहीं था। आख़िरी ख़त आया मगर बहुत बाद में।

    5 अगस्त 69

    मेरे प्यारे मुस्तंसर!

    मुझे तुम्हारे दोनों ख़त तो मिल गए मगर पहले में तुम्हारी तस्वीर मौजूद थी। ये हिंदुस्तान और पाकिस्तान के दरमियान जो बेहूदा पोस्टल सिस्टम है इसकी गड़बड़ है। तस्वीर वाक़ई भेजी थी या ज़ेहनी तौर पर ग़ैर हाज़िर थे? आज छुट्टी है और इस वक़्त अगरचे मुझे फ़्राँसीसी पढ़नी चाहिए मगर फ़्राँसीसी गई भाड़ में, मैं तुम्हें ख़त लिखना चाहती हूँ।

    मुस्तंसर मैं क्या करूँ? मेरे घर वाले मेरी शादी उसी लड़के से तै कर रहे हैं, मैं जानती हूँ कि वो एक अच्छा लड़का है और उसकी आमदनी भी माक़ूल है। मगर ये कोई वजह नहीं कि मैं उसके साथ शादी कर लूँ। नहीं करना चाहती मैं शादी उसके साथ! अगर मैंने उसके साथ शादी करली तो मुझे कभी ख़ुशी नसीब होगी और ही मैं उसे ख़ुशी दे सकूँगी। मगर इसका दूसरा पहलू ये है कि आख़िर मैं कितनी देर तक इस इंतिज़ार में बैठी रहूँ कि चीको कोई फ़ैसला करे और मैं उसके साथ शादी करूँ और अगर हमारी शादी हो भी जाए तो भी मुझे तवक़्क़ो नहीं कि चीको मुझे ख़ुशी दे सकेगा। मेरा ख़्याल है कि वो तीन-चार बरसों के बाद फिर लड़कियों के साथ फ़्लर्ट करने लगेगा। मुझे पता है कि वो मुझे धोका देगा। अब भी कभी-कभार वो जान-बूझ कर मुझे दुख देता है और अगले रोज़ मुझे इतना प्यार करता है कि मैं सब कुछ भूल जाती हूँ। मैं सोचने के क़ाबिल नहीं रही कि मैं क्या करूँ।

    तुम ही बताओ मुस्तंसर, तुम्हारा क्या ख़्याल है? सब कुछ जानते हुए भी चीको के साथ शादी कर लूँ या एक तै शुदा शादी क़बूल कर लूँ। मैं इतनी ज़्यादा अपसेट हूँ मुस्तंसर। एक लम्हे मैं उसके साथ शादी करने का रिस्क लेने पर तैयार हूँ और दूसरे लम्हे मैं काँप कर कहती हूँ कि नहीं उसे भूल जाना चाहिए। मगर मैं उसे नहीं भूल सकती। मैं उसे पिछले पाँच बरस से प्यार करती हूँ। इसके अलावा उसका ख़ानदान बिल्कुल बिखर चुका है। वालिदैन में तलाक़ हो चुकी है और उन्होंने दोबारा शादी करली है और हाँ! उसका बड़ा भाई बादल या तो सिर्फ़ फ़्लर्ट कर रहा है और या फिर वाक़ई मुझसे मोहब्बत कर रहा है। मेरा ख़्याल है कि दूसरी बात है। अगर मैं चीको से शादी कर लूँ तो बादल मुझसे फ़्लर्ट करेगा तो फिर मैं क्या करूँगी। मेरी मदद करो मुस्तंसर! मैं इतनी नाख़ुश हूँ।

    ख़ैर इन सर्दियों में मैंने ख़ूब लुत्फ़ उठाया। मैं चंद बहुत अच्छे लड़कों के हमराह बाहर गई। हम हमेशा एक हुजूम की सूरत में घर से निकलते थे। सोनी, गोगी, ग्लोगी और विनोद बेहद शरीफ़ और तहज़ीब याफ़्ता लड़के थे। मुझे इतना अच्छा लगा था नाँ कि इंसान चीको, बादल और बूटा के बाद इतने ख़ुश अख़लाक़ लड़कों के साथ बाहर जाए। (इन लड़कों ने कभी किसी लड़की के लिए दरवाज़ा खोलने की ज़हमत नहीं की। दरिंदे)

    क्या मैंने तुम्हें अपनी कज़िन कनी के बारे में बताया था? उसकी माँ ऑस्ट्रेलियन है। हम तब से दोस्त हैं जब हम नन्ही-मुन्नी बच्चियाँ थीं। दिल्ली में जब कभी किसी पार्टी से वापसी होती तो मैं उसी के घर सोती थी। बल्कि सुबह 4 बजे तक हम गप्पें मारती थीं। एक मर्तबा उसके वालिदैन दिल्ली से बाहर गए तो पूरे एक हफ़्ते के लिए उनका फ़्लैट और कार हमारे क़ब्ज़े में रहे और हमने ख़ूब ऐश की। वो अगस्त में पेरिस जा रही है और मैं उसे बहुत मिस करूँगी और वहाँ मैं तीन ऑस्ट्रेलियन लड़कियों से भी मिली थी। बस वो तो यूनिक थीं। दो हफ़्तों के लिए इंडिया आईं और ढाई बरस विराजमान रहीं।

    यास्मीन का क़द पाँच फ़ुट आठ इंच, मैलीज़ा पाँच फ़ुट ग्यारह इंच और लीज़ा छः फ़ुट दो इंच की थी (व्हाव) वो बड़ी ज़बरदस्त चीज़ें थीं। पार्टियों पर इतने पागल कपड़े पहन कर जाती थीं कि क्या बताऊँ। हर वक़्त फड़कती रहती थीं और जब लड़के सुस्त पड़ जाते थे तब भी अकेली नाचती रहती थीं। हर शब को वो एक नए लड़के के साथ बाहर जातीं और उसी के साथ सो जातीं। अख़लाक़ियात के बारे में वो बिल्कुल अनपढ़ थीं। हिंदुस्तानी लड़कियाँ तो गुंग थीं उनकी ये हरकतें देख कर। मैलीज़ा गोगी के साथ और यासमीन इंद्र के हमराह बड़ी बा-क़ायदगी के साथ देखी जाती थीं। दूसरे लड़कों के अलावा। हद ये है ग्लोगी मैलीज़ा को नाम की बजाय वाइफ़ कह कर पुकारता था। बिल आख़िर वो यहाँ से चली गईं, लंडन के लिए बरास्ता लाहौर। तुमसे मिलीं? मैंने उन्हें पता दिया था।

    तुम तो इतनी मुश्किल-मुश्किल किताबें पढ़ते हो कि मैंने तो उनके नाम तक नहीं सुने। तुम स्पेन के बारे में इतना क्यों पढ़ते हो? तुम सयाहत पर जाने का सोच रहे हो। मेरा जी चाहता है तुम्हारे साथ चली जाऊँ स्पेन वग़ैरा। मैंने पाकिस्तान तो ज़रूर आना है कभी कभी। मेरी शदीद ख़्वाहिश है कि तुमसे मिलूँ। तुमसे मिलना कितना अजीब लगेगा। क्या हम अजनबियों की तरह एक दूसरे से मिलेंगे?

    मेरे इम्तिहान दो हफ़्ते तक शुरू हो रहे हैं और जब तक ये ख़त्म हो जाएं, मैं तुम्हें तवील ख़त लिखने से परहेज़ करूंगी। लेकिन तुम ज़रूर बा-क़ायदगी से लिखते रहना। इंद्र, कनी, मारिया और सोनी यहाँ रहे हैं इम्तिहानों के बाद। मेरा ख़्याल है अब मुझे ख़त्म करना ही होगा। मेरे इर्द-गिर्द लड़कियों का एक ग़ोल है जो मुझे तंग कर रही हैं कि तुम्हारा मुस्तंसर बिल्कुल फ़ेड अप हो जाएगा इतना तवील ख़त पढ़ते-पढ़ते, सच बताओ क्या तुम हुए? प्लीज़ जल्दी लिखना।

    तुम्हारी ज़बरदस्त फ़ैन, प्रेम!

    कितना अहमक़ाना ख़ौफ़ कि मुझे कभी ख़ुशी नसीब होगी।

    और तुम स्पेन के बारे में इतना कुछ क्यों पढ़ते हो?

    और हाँ उसने वादा किया है कि वो कभी कभी पाकिस्तान ज़रूर आएगी। कब?

    08/01/69

    हैलो अजनबी!

    क्यों जनाब आज किस सिलसिले में मुझे ख़त से नवाज़ा गया है? कितनी ख़ूबसूरत बात कि तुम्हें इतने अरसे बाद मेरी याद आई और सुनो मैं बहुत ग़ुस्से में हूँ। तुम्हारी इस लापरवाई की वजह से जंगली बिल्ली बनी हुई हूँ। इस वक़्त मेरे पास अलफ़ाज़ नहीं हैं अपना ग़ुस्सा बयान करने के लिए। मुझे चाहिए कि मैं कभी तुमको लिखूँ, कभी भी। मुझे समझ नहीं आती कि तुम्हारी इतनी लापरवाई के बावजूद में तुम्हें क्यों लिखने बैठ गई हूँ। मुझे कहना तो ये चाहिए कि हम जाने कब मिले थे। क्योंकि मेरी याददाश्त बहुत मुख़्तसर है और मैं तुम्हारा नाम तक नहीं जानती... लेकिन दर अस्ल मैं कहूँगी ये कि मैंने तुम्हें बहुत मिस किया है, तुम्हें और तुम्हारे ख़तों को।

    और मुस्तंसर, पिछले चंद माह मेरे लिए एक बोझ थे और मुझे इल्म था कि मैं कैसे इनमें से गुज़रूँगी। इतने छोटे से पहाड़ी क़स्बे में अपनी उम्र का एक बरस बसर करना कितना दुश्वार है। सिर्फ़ लड़कियों और राहिबाओं की रिफ़ाक़त में। सच पूछो तो मैं बहुत उकता गई हूँ और अब जब कि घर वापस जाने का वक़्त क़रीब रहा है तो में फिर से वही पुरानी वहशी लड़की बनती जा रही हूँ। मैं बाईस नवंबर को दिल्ली जा रही हूँ और ये तुम्हारी बेहतरी है कि तुम इससे पहले मुझे ख़त लिख दो, वरना... प्लीज़ लिख दो।

    कनी और अलापे आए थे पिछले माह। घर की बेशुमार ख़बरें मिलीं मसलन बादल और नाज़ के हाँ बेटी पैदा हुई है और उन्होंने उसका नाम एक अमेरिकी रेड इंडियन क़बीले के नाम पर रखा है यानी श्यान। क्या ये अल्टीमेट नाम नहीं? पता नहीं इस तरह के नाम का उसकी आइन्दा ज़िंदगी पर क्या असर होगा। चंद रोज़ पहले बादल और नाज़ एक पार्टी में बहुत बुरी तरह उलझ पड़े। बादल ज़रा नशे में था और उसको शक हुआ कि नाज़ राजू के साथ फ़्लर्ट कर रही है। उसने उसे कंधों से पकड़ कर इतने ज़ोर से झिंझोड़ा कि उसका नेकलेस टूट गया और तमाम जवाहरात फ़र्श पर बिखर गए। उसने उसे मारा भी। कितनी बुरी बात। अम्बर के हाँ लड़का पैदा हुआ है। मुन्नी और पालेन का बच्चा पिछले माह होना था। अभी तक पता नहीं क्या हुआ, या नहीं हुआ।

    इस वक़्त लारा की थीम बज रही है और मुझे मुन्नी याद रहा है कि एक मर्तबा जब मैं उसके हमराह रक़्स कर रही थी तो वो ग़ुस्सा दिला देने की हद तक मुझसे फ़्लर्ट कर रहा था। पहले पहल तो मैं बेहद शॉक्ड हुई मगर मैं ये नहीं कहूँगी कि बाद में उसे इन्जॉय नहीं किया। शायद इसीलिए वो मुझपर कुछ-कुछ असर अंदाज़ हो जाता है। बहुत हैंडसम है।

    क्या मैं चीको से शादी नहीं करूँगी? चीको, उसके साथ शादी करना बहुत फ़न होगा मगर हम ज़्यादा देर एक दूसरे को बर्दाश्त नहीं कर सकेंगे। वो फ़्लर्ट बहुत करता है और मैं जेलस बहुत होती हूँ। इन सर्दियों में मैं उसे एक फ़ासले पर रखूंगी। मुझे रखना होगा क्योंकि मुझे जल्द ही मंगनी करवाना होगी। मैं ऐसे नाज़ुक मरहले पर उसके साथ जज़्बाती होना अफ़ोर्ड नहीं कर सकती। यानी इससे ज़्यादा जितनी कि हो चुकी हूँ। एक और लड़का है जिसके साथ मैं शादी कर सकती हूँ मगर वो जाट नहीं है और मेरा बाप उसे नापसंद करेगा। हम किसी और ज़ात में शादी नहीं कर सकते। (और तुम सिख हो नहीं सकते) ख़ैर मुझे तो फ़र्क़ नहीं पड़ता चाहे लड़का सिख हो या हो लेकिन मुझे दाढ़ियों से बहुत वहशत होती है। बिल्कुल सेक्सी नहीं होतीं।

    पिछले माह हम आउटिंग पर श्रीनगर गए। ये कश्मीर से मेरी पहली मुलाक़ात थी जो फ़ौरन ही मोहब्बत में बदल गई। निशात बाग़ के क़रीब झील डल के इख़्तिताम पर हम एक घर में ठहरे। हम गुलमर्ग और पहलगाम भी गए और बहुत सी शॉपिंग की। एक रोज़ सब लड़कियाँ शिकारे पर सवार होकर नगीन झील तक गईं। हमें कोई डेढ़ घंटा लगा और मैं तुम्हें बता नहीं सकती कि रास्ता कितना ख़ूबसूरत था। हम शाम को वापस आए तो झील डल ग़ुरूब-ए-आफ़ताब के बाद बिल्कुल गुलाबी हो रही थी। इस मंज़र ने मुझे छुआ कहीं पर। मेरा जी चाहा कि ये लम्हे किसी ऐसे शख़्स के साथ गुज़ारूँ जो मेरे लिए अहम हो और हाँ ये ज़बरदस्त मौक़ा था सिगरेट पीने का और हमने बहुत पिए और हाँ जिस घराने में हम रहे वो मुसलमान था और अब मैं तुम्हारे तौर तरीक़ों से वाक़िफ़ हूँ। (क्या पता कब क्या हो जाए) मैं कश्मीर छोड़ कर इम्तिहानों के पास नहीं आना चाहती थी मगर आना पड़ा।

    ख़त्म करूँ? बाईस नवंबर से पहले लिखना। ख़ुदा हाफ़िज़ छोटे बच्चे। मैं इंतिज़ार कर रही हूँ।

    तुम्हारी प्रेम

    वो पाकिस्तान तो सकी मगर हमने एक अहमक़ाना मन्सूबा तैयार किया। अगर प्रेम दिल्ली से बाई एयर काबुल चली जाए और मैं भी वहाँ पहुँच जाऊँ तो हम एक दूसरे को देख सकते हैं। चंद रोज़ इकट्ठे गुज़ार सकते हैं। प्रेम ने इस तजवीज़ को इंतिहाई संजीदगी से लिया और बाक़ायदा मुझसे मशवरे तलब करने लगी कि जहाज़ से उतरते हुए कौन सा लिबास पहनूँ और क्या तुम मुझे पहचान लोगे वग़ैरा-वग़ैरा। एक रोज़ जब मैं अफ़ग़ान सिफ़ारत ख़ाने को वीज़ा फ़ार्मज़ की फ़राहमी के लिए ख़त लिखने के बारे में सोच रहा था तो प्रेम की एक मुख़्तसर चिट्ठी आगई।

    मुस्तंसर!

    मैंने काबुल में तुमसे मिलने के बारे में फिर सोचा है। मैं नहीं सकती। मैं आना चाहती हूँ मगर नहीं आऊँगी। तुम्हारे ख़तों ने मुझे मोम कर दिया है और मैं पिघलना नहीं चाहती, हम दोनों किसी क़िस्म की गड़बड़ अफ़ोर्ड नहीं कर सकते। क्या तुम सिख होना अफ़ोर्ड कर सकते हो और फिर चीको भी तो है। प्यार!

    प्रेम

    उसी बरस एक मर्तबा फिर मेरे बदन में ख़ेमा-ज़न आवारगी के शैतान ने मुझे वरग़लाया, मेरे पाँव को बग़ावत पर आमादा किया। दीवानगी-ए-सफ़र के मौसमों ने मुझे अपनी लपेट में ले लिया और मैं अपने चार चफ़ेरे से नाता तोड़ कर घर से निकल खड़ा हुआ। वस्त एशिया और यूरोप के मुल्कों में धक्के खाता स्पेन में वारिद हुआ। स्पेन की सयाहत के इख़्तिताम पर मैंने अली कांत से बार्सिलोना तक साहिली सड़क पर सफ़र किया। मेरी बस के दाएँ बाएँ स्पोर्ट्स कारें शर्लाटे भरती हुई गुज़र रही थीं। बार्सिलोना एक साँवला सलोना शहर है। पुर-कशिश और समुद्री हवा से नमकीन। उसकी सड़क लारामबला पर सिर्फ़ फूलों की दुकानें हैं। शोख़ी-ए-रंग इस क़दर दहकती हुई कि जैसे बार्सिलोना में आग लग गई हो। मुझे प्रेम का ख़्याल गया जिसे मैंने वतन छोड़ने से पेश्तर रवानगी की इत्तिला भी दी थी। मैंने एक तस्वीरी पोस्ट कार्ड ख़रीदा और डलहौज़ी के पते पर रवाना कर दिया। पोस्ट कार्ड पर आतिशी रंगों के सुलगते हुए फूल थे और उनके दरमियान लिखा था... एक नॉर्मल क़िस्म का पोस्ट कार्ड जो ग़ैर मुल्कों में छुट्टियाँ मनाने वाले लोग वतन में मशक़्क़त करते हुए दोस्तों को सिर्फ़ जलाने के लिए भेजते हैं। सिर्फ़ जलाने के लिए।

    उसी दोपहर जब मैं अपनी डाक वसूल करने थॉमस कुक के दफ़्तर गया तो दोस्तों और भाई-बहनों के ख़ुतूत में एक लिफ़ाफ़ा ऐसा भी था जिसपर डलहौज़ी की मुहर लगी थी और प्रेम की तहरीर थी।

    डियर मुस्तंसर!

    ये मुकम्मल दरिंदगी की इंतहा है कि तुम मुझे बताए बग़ैर पाकिस्तान से चले गए हो। इतनी दूर कि मुझे पहली मर्तबा एहसास हुआ कि मैं तुम्हें कितना मिस करती हूँ। तुम कब वापस रहे हो? जल्दी जाओ। शायद मैं बे-वक़ूफ़ हूँ या शायद नहीं हूँ, इसलिए कि तुम लाहौर में हो या बार्सिलोना में, मुझे तो इससे फ़र्क़ नहीं पड़ना चाहिए। मगर मुझे इतमीनान जब ही होगा जब तुम वापस जाओगे और हाँ ये तुम्हें स्पेन से इतनी दिलचस्पी क्यों है? मैं जलती हूँ स्पेन से। (इसलिए कि ये तुम्हें पसंद है।) मैंने अपने छः ख़तों का जवाब पाकर तुम्हारी बहन शाइस्ता को ख़त लिखा जिसने मुझे तुम्हारा बार्सिलोना का पता भेज दिया। बार्सिलोना कैसा शहर है? मैंने पहली मर्तबा इसका नाम सुना है। प्यार!

    प्रेम

    मैं जलती हूँ स्पेन से।

    बार्सिलोना कैसा शहर है? मैंने पहली मर्तबा इसका नाम सुना है।

    वतन वापसी पर लिट्रेचर के लालची केकड़े ने अपनी टाँगें सफ़रनामों, अफ़सानों और नावलों की सूरत में मेरे बदन पर इस तरह लपेट दीं कि मैं प्रेम के बाक़ायदा ख़ुतूत के जवाब में कभी-कभार ही क़लम उठाता। कुछ अरसे बाद उसने एक मुख़्तसर ख़त में मुझे इत्तिला की कि उसकी शादी हो रही है। मगर उसने ये नहीं बताया कि चीको के साथ या उस लड़के के साथ जो कि सिख है और जाट है और उसके वालिदैन की पसंद है। मैंने उसे मुबारकबाद का एक कार्ड रवाना कर दिया। फिर वो ख़ामोश सी हो गई। मैं तो ग़ाफ़िल था ही। मैंने उसकी तहरीर को मिस नहीं किया।

    एक रोज़ अरशद मेरे पास आया और पूछने लगा, प्रेम कैसी है? तो मुझे याद आया कि उसका आख़िरी ख़त आए हुए एक अरसा बीत चुका। मैंने उसी वक़्त अपने तईं एक निहायत चुभता हुआ ख़त लिखा कि मेरा नाम ये है और पता ये है और हम किसी ज़माने में दोस्त हुआ करते थे। वो ख़ामोश रही। दो बरस और बीत गए।

    1975 में मेरे पाँव के तलवे फिर आबलों के लिए तरसने लगे। मैंने घर वालों की मन्नत समाजत करके आख़िरी मर्तबा सफ़र पर जाने के लिए इजाज़त मांगी। ख़ैर इजाज़त तो नहीं माँगी यक-तरफ़ा तौर पर फ़ैसला दे दिया कि मैं जा रहा हूँ, उम्मीद है आप माइंड नहीं करेंगे। रवाना होने से पेश्तर मेरा जी चाहा कि मैं पिछली मर्तबा की तलाफ़ी करूँ और प्रेम को रवानगी की इत्तिला कर दूँ। मैंने उसे लिखा कि मैं सफ़र पर जा रहा हूँ मगर फ़िक्र करो इस मर्तबा स्पेन नहीं जा रहा जिसके नाम से तुम जल जाती हो और अगर तुम्हारी शादी हो चुकी है और तुमने बहुत सारे बच्चे पैदा कर लिए हैं तो इसका ये मतलब हरगिज़ नहीं कि मुझे ख़त भी लिखो। तुमने ख़ुद ही तो वादा किया था कि शादी के बाद भी हम दोस्त रहेंगे वग़ैरा-वग़ैरा।

    बर्गमान की एक फ़िल्म थी दी सेल्वेंथ सेल। एक नाइट सलीबी जंगों से वापस रहा है, वतन की जानिब। एक तपती और सुनसान दोपहर में वो खेतों के दरमियान बनी पगडंडी पर चल रहा है, जौ की बालियाँ गर्मी की शिद्दत से सुनहरी हो कर चार चफ़ेरे सनसना रही हैं, सिर्फ़ यही सनसनाहट है, सिर्फ़ वही नाइट है और कोई आवाज़ नहीं और कोई बशर नहीं, नाइट देखता है कि दूर खेतों के दरमियान एक ज़र्द रू सियाह पैकर खड़ा है।

    मैं मौत हूँ। क़रीब आता हुआ सियाह पैकर कहता है, और मैं तुम्हारी जान लेने आया हूँ ख़ुदाए ज़ुल-जलाल के हुक्म से। नाइट उसे बहस में उलझा लेता है कि मैंने मज़हब की ख़ातिर वतन से दूर जाकर अपनी जान को ख़तरे में डाला और जब कि मेरी जिला वतनी ख़त्म होने को है ख़ुदा को मेरी ख़िदमात का ये सिला नहीं देना चाहिए। सियाह पैकर कहता है, मैं हुक्म का ताबे हूँ। बहस की गुंजाइश नहीं। इसपर नाइट जो कि शतरंज का माहिर है तजवीज़ पेश करता है कि आओ हम हर शाम शतरंज की बाज़ी लगाते हैं, अगर मैं हार जाऊँ तो बेशक मेरी रूह क़ब्ज़ कर लेना। सियाह पैकर अपनी ज़र्द मुस्कुराहट के साथ हामी भर लेता है। हर शाम बाज़ी लगती है और हार जीत का फ़ैसला नहीं होता और हो सकता भी नहीं कि नाइट एक ऐसी चाल चल चुका है कि अब वो शिकस्त नहीं खा सकता।

    फिर एक सफ़र है सुनसान लैंड स्केप और उजड़े हुए क़स्बों और तपते हुए वीरानों का। नाइट चल रहा है और कुछ फ़ासले पर सियाह पैकर उसके तआक़ुब में। इंसान चल रहा है अपनी नाक़ाबिल-ए-शिकस्त चाल के तकब्बुर में और कुछ फ़ासले पर मौत कि वो बर हक़ है उसके तआक़ुब में और बिल आख़िर... मेरा सफ़र भी कुछ-कुछ उस नाइट से मुशाबहत रखता था। ज़र्द रू पैकर के सियाह साए हमा-वक़्त मेरे तआक़ुब में रहे, मुझे ज़ेर तो कर सके मगर मेरे तआक़ुब में रहे। अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, तुर्की और लेबनान में उन्होंने मेरे लबादे को गिरफ़्त में लिया मगर मेरी ख़ुश बख़्ती ने उनके हाथों में कपकपाहट तारी कर दी और मैं बच निकला। मगर स्विट्ज़रलैंड में... उस निखरे हुए ख़ित्ते पर एक चमकीली सुबह को मैंने अपने चचा को बर्मिंघम फ़ोन किया ताकि अपनी आमद की पेशगी इत्तिला कर सकूँ। उनकी बेटी ने फ़ोन उठाया।

    मुस्तंसर बोल रहा हूँ, स्विट्ज़रलैंड से...

    जी भाई जान... सिर्फ़ इतना कहा और धाड़ें मार-मार कर रोने लगी।

    ख़ालिदा... क्या बात है? ख़ैर तो है?

    ख़ैर नहीं है भाई जान... साजिद भाई शहीद हो गए हैं।

    कोएटा की वो सुबह भी ऐसी होगी क़दरे ख़ुनक और चमकीली जब कैप्टन साजिद नज़ीर ने अपने फ़ौजी जहाज़ के पहियों को ज़मीन की गिरफ़्त से अलैहदा किया। चंद सौ गज़ ऊपर जाने के बाद ज़मीन पर खड़े लोगों ने देखा कि जहाज़ वापस रहा है और फिर उसका ढाँचा उनके सामने जल रहा था। साजिद को जलते हुए जहाज़ को तोड़ कर निकाला गया तो वो होश में था। उसने स्ट्रेचर पर लेटने से इनकार कर दिया और ख़ुद चलता हुआ अपनी जीप तक गया। जीप को ड्राइव करके हस्पताल पहुँचा। तवील सीढ़ियाँ तै कीं और डॉक्टर के कमरे में दाख़िल होकर कहने लगा, डॉक्टर मैं शदीद दर्द महसूस कर रहा हूँ मुझे कोई इंजेक्शन लगा दो। उसके चौड़े कंधों पर सजी ख़ाकी वर्दी सुलग रही थी, सियाह हो रही थी। जिस्म का नव्वे फ़ीसद हिस्सा जल चुका था। जलते हुए जिस्म को सबसे बड़ा ख़तरा सेप्टिक हो जाने का होता है। चुनाँचे साजिद के बिस्तर के गिर्द पालीथीन का एक ख़ेमा नस्ब कर दिया गया।

    उसने नर्स से कहा, तुम्हें पता है मैं माँ-बाप की इकलौती औलाद हूँ। मेरे बाप का भी कोई भाई नहीं। मेरी माँ लाहौर में बैठी मेरा इंतिज़ार कर रही है कि मैं अगले हफ़्ते छुट्टी पर जा रहा था। मैं बिल्कुल अकेला हूँ। मेरा कोई सगा भाई नहीं... हाँ ख़ाला-ज़ाद हैं बहुत सारे... मेरे एक भाई जान हैं जिन्हें सयाहत का जुनून है... वो इन दिनों यूरोप गए हुए हैं... और बिल आख़िर... लांबे क़द और घुंगरियाले बालों वाला मेरा साजिद जिसकी शरारती आँखें और डैशिंग शख़्सियत देख कर मुझे ज़ार-ए-रूस की फ़ौज की घुड़सवार बेबाक अफ़सर याद जाते थे, सियाह पैकर के आगे बाज़ी हार गया। बाज़ी मैंने लगाई थी और हार साजिद गया। ज़र्द रू पैकर ने उसका हाथ थामा और हमसे दूर ले गया।

    मैंने ख़्वाब आवर दवाइयों के बोझ तले दबे एक मरीज़ की तरह यूरोप और एशिया की वुसअतों को पार किया ताकि मैं साजिद के चालीसवें पर वतन पहुँच सकूँ, उसकी मिट्टी पर घास उगने से पहले मैं एक उजड़े हुए घर में दाख़िल हुआ तो मेरे वालिद ज़िंदगी में पहली बार मेरे गले लग कर रोए। उस रात मेरी बीवी मुझे उसके जाने की, उसके ज़मीन में उतरने की तफ़सीलात बताती रही और हम रोते रहे। दूसरी सुबह जब हम चालीसवें में शिरकत के लिए ट्रेन में साजिद के गाँव जा रहे थे तो चुप बैठी हुई मोना ने एक दम कहा, वो प्रेम भी मर गई है।

    कौन सी प्रेम? मेरे शल होते हुए ज़ेहन पर कोई तस्वीर उभरी।

    वही आपकी क़लमी दोस्त... सिख लड़की।

    मगर मैं उस वक़्त कुछ भी सोच सकता था... प्रेम मर गई है तो क्या हुआ... कौन सी प्रेम... पता नहीं कौन सी प्रेम...

    पूरे दो माह के बाद जब हम लोग ज़ेर-ए-ज़मीन जाने वाले के लिए आँसुओं का ज़ख़ीरा ख़त्म कर चुके तो मैंने अपनी बीवी से पूछा, उस रोज़ ट्रेन में तुमने प्रेम का ज़िक्र किया था। वो उठी और अलमारी खोल कर एक ख़त मुझे थमा दिया।

    23, बड़ा खम्बा रोड। न्यू देहली।

    मुहतरम मुस्तंसर!

    आज सुबह की डाक में मेरी इकलौती बहन प्रेम के नाम एक ख़त था। मैंने वो ख़त खोल लिया। क्योंकि प्रेम उसे नहीं खोल सकती। वो मर चुकी है। लिफ़ाफ़े पर उसका नाम देख कर मैंने सोचा कि ये कौन ला इल्म शख़्स है जिसे ये मालूम नहीं कि वो आज से तीन बरस पहले की मर चुकी है। मैंने उसका नाम देख कर आज अपनी खोई हुई बहन के लिए फिर से आँसू बहाए। वो अक्सर आपका ज़िक्र करती रहती थी। इसलिए मैं मुख़्तसरन उसके चले जाने का अहवाल लिखता हूँ।

    शायद आपको मालूम हो कि उसकी मँगनी हो गई थी और वो चँद हफ़्तों तक ब्याही जाने वाली थी। शादी से पेश्तर वो और उसका मंगेतर शॉपिंग के लिए यूरोप गए। वापसी पर फ़्राँस में प्रेम ने ज़िद की कि वो स्पेन देखे बग़ैर घर नहीं लौटेगी। वो स्पेन गए और अली कांत से बार्सिलोना जाने वाली साहिली सड़क पर उनकी तेज़ रफ़्तार स्पोर्ट्स कार का हादसा हो गया। कार प्रेम चला रही थी। वो शदीद ज़ख़्मी हुई मगर उसका मंगेतर बच गया। नज़दीक तरीन हस्पताल बार्सिलोना में था जहाँ प्रेम को दाख़िल करवा दिया गया। उसकी चँद हड्डियाँ टूटी थीं और चेहरे पर ज़ख़्म आए थे। डॉक्टरों ने कहा था कि मुसलसल तिब्बी निगह-दाश्त के साथ चार-पाँच माह में चलने-फिरने के क़ाबिल हो जाएगी। उसका मंगेतर उसके पास ठहरा रहा मगर उसे कारोबारी मसरूफ़ियत की बिना पर चंद हफ़्तों के लिए हिंदुस्तान वापस आना पड़ा।

    एक रात प्रेम सोई हुई थी कि उसे ख़ुन्की का एहसास हुआ। वो कुछ देर तो पहलू बदलती रही मगर सर्दी की काट ने उसे उठने पर मजबूर कर दिया। वो कमरे में नस्ब गैस हीटर के पास आई और उसे जलाने के लिए माचिस की तीली रौशन की। एक ज़ोरदार धमाका हुआ और उसी लम्हे प्रेम कमरे के दरमियान खड़ी मशाल की तरह जलने लगी। वो एक दहशत-ज़दा जानवर की मानिंद गुम-सुम वहीं खड़ी जलती रही और बिल आख़िर तकलीफ़ की शिद्दत से मजबूर हो कर चीख़ें मारने लगी। जब तक लोग मदद को आए वो जलते-जलते सियाह हो चुकी थी। गैस हीटर में ख़राबी थी और उसमें से गैस लीक करती थी। जब प्रेम हीटर जलाने के लिए बिस्तर से उठी तो पूरा कमरा गैस से भरा हुआ था।

    जूं ही मुझे ये दहशतनाक ख़बर मिली मैं फ़ौरन बार्सिलोना रवाना हो गया। उन्होंने प्रेम को पॉलीथीन के बने हुए एक ख़ेमे में रखा हुआ था (जले हुए जिस्म को सबसे बड़ा ख़तरा सेप्टिक हो जाने का होता है) उसका जिस्म सियाह पड़ चुका था। आपको शायद मालूम नहीं कि मेरी बहन बहुत लम्बे क़द की थी और वहाँ उस बिस्तर पर पड़ी, मास के तक़रीबन बग़ैर वो बहुत ही भयानक लगती थी मगर वो बोल सकती थी। उसके ख़ेमे में एक फ़ोन था और दूसरा उधर मेरे क़रीब मेज़ पर रखा था। हम पहरों एक दूसरे को देखते रहते और फ़ोन पर बातें करते रहते। उसने आपके बारे में भी बातें कीं (मुस्तंसर ने मुझे बार्सिलोना से... का कार्ड भी भेजा था। मैं यहाँ तो गई मगर मालूम नहीं कि किस हालत में। वो इस शहर में घूमता रहता था। शायद हस्पताल के इस कमरे के नीचे से भी गुज़रा हो।)

    (मुझे पहली बार बार्सिलोना का नाम तब मालूम हुआ जब मैंने उसे यहाँ ख़त लिखा था। प्रेम शदीद अज़ीयत में थी मगर वो मुस्कुराती रहती थी और बातें करती रहती थी। उसके दर्जनों ऑपरेशन किए गए ताकि जले हुए हिस्सों पर सर्जरी की जा सके मगर दिन दिन उसका वज़न कम होता गया... यहाँ तक कि उसके बिस्तर पर लम्बे क़द का हड्डियों का एक ढाँचा रह गया। मगर वो बोल सकती थी। उन्ही दिनों मुझे एक अशद कारोबारी ज़रूरी के तहत दो रोज़ के लिए दिल्ली वापस आना पड़ा और घर पहुँचते ही मुझे हस्पताल की तरफ़ से तार मिला कि प्रेम उसी रात मर गई थी। मैं बार्सिलोना गया और उसे दिल्ली ले आया। यहाँ जैसा कि हममें रिवाज है हमने उसे जला दिया।)

    मैं शादी शुदा हूँ और मेरे दो जुड़वाँ बच्चे हैं। मैं कारोबार के सिलसिले में ज़्यादा तर दिल्ली से बाहर रहता हूँ। आप प्रेम के दोस्त थे। अगर आप मुझसे राबता रखें तो मैं शुक्रगुज़ार हूँगा। कभी दिल्ली तशरीफ़ लाएं तो मुझे और मेरी बीवी को बेहद ख़ुशी होगी।

    आपका

    इन्द्रजीत

    प्रेम की अहमक़ाना ख़्वाहिश पूरी हुई। आज उसकी मौत के छः बरस बाद वो बाईस बरस की है। वो बाईस बरस की ही रहेगी। उसने कहा था नाँ कि काश इंसान हमेशा एक ही उम्र का रहे।

    स्रोत:

    Siyah Aankh Mein Tasveer (Pg. 28)

    • लेखक: मुस्तनसिर हुसैन तारड़
      • प्रकाशक: नियाज़ अहमद
      • प्रकाशन वर्ष: 2003

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