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वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

सआदत हसन मंटो

वो ख़त जो पोस्ट न किये गए

सआदत हसन मंटो

MORE BYसआदत हसन मंटो

    स्टोरीलाइन

    ये कहानी दस मुख़्तसर पत्रों का संग्रह है जो अलग-अलग अफ़राद को तंज़िया और नीम-मज़ाहिया अंदाज़ में लिखे गए हैं। पत्र लिखने वाला जो एक औरत है अपने जिस प्रिय को पत्र लिख रही है, की रोज़मर्रा की छोटी-छोटी ख़ामियों और कमियों की निशान-देही करती है।

    हव्वा की एक बेटी के चंद ख़ुतूत जो उसने फ़ुर्सत के वक़्त मुहल्ले के चंद लोगों को लिखे। मगर इन वजूह की बिना पर पोस्ट किए गए जो उन ख़ुतूत में नुमायां नज़र आती हैं।

    (नाम और मक़ाम फ़र्ज़ी हैं)

    पहला ख़त... मिसेज़ कृपलानी के नाम

    खातून-ए-मुकर्रम,

    आदाब अर्ज़, माफ़ फ़रमाईएगा। मैं ये सुतूर बग़ैर तआ’रुफ़ के लिख रही हूँ। मगर मुझे चंद ज़रूरी बातें आपसे कहना हैं। आपको मैं एक अ’र्से से जानती हूँ। हर रोज़ सुबह साढ़े आठ बजे जब मैं बिस्तर से उठ कर बालकनी में आती हूँ तो आपको बाज़ार में सैर से वापस आते देखा करती हूँ। मुझे तअ’ज्जुब है कि मिस्टर कृपलानी जिन्हें साढ़े आठ बजे घर से दफ़्तर पहुंचने के लिए निकल जाना होता है। सिर्फ़ एक बूढी नौकरानी की मौजूदगी और आपकी ग़ैर हाज़िरी में नाश्ता कैसे करते हैं, कपड़े क्यों कर तबदील करते हैं और फिर आपका बच्चा भी तो है। उसकी देख भाल कौन करता है?

    इसमें कोई शक नहीं कि सैर आपकी सेहत के लिए मुफ़ीद है। मगर इस सैर का असर आपके शौहर पर क्या पड़ेगा, क्या आपने इसकी बाबत कभी ग़ौर किया है? मैंने परसों मिस्टर कृपलानी को देखा। उनकी हालत क़ाबिल-ए-रहम थी। आपने सर पर हैट उलटा लगा रखा था और अगर मेरी निगाहों ने धोका नहीं दिया तो उनके बूट का एक तस्मा खुला हुआ था जो बार बार उनके पांव में उलझ रहा था। कल भी आपकी हालत ऐसी ही थी। उनकी पतलून शिकनों से भरपूर थी और टाई की गिरह भी दुरुस्त नहीं थी।

    अगर आपकी सुबह की सैर इसी तरह जारी रही तो मुझे अंदेशा है एक रोज़ मिस्टर कृपलानी इस अफ़रातफ़री में दफ़्तर का रुख़ करेंगे कि राह चलती औरतों को अपनी आँखें बंद करनी पड़ेंगी।

    और हाँ, देखिए कल आप ने जो साड़ी पहन रखी थी, वो आपकी नहीं है। मुझे अच्छी तरह याद है कि मिसेज़ अडवानी ने ये साड़ी पिछली दीवाली पर ख़रीदी थी। दूसरों के कपड़े पहनना बहुत मा’यूब है। आपके पास कम अज़ कम बीस साड़ियां मौजूद हैं। मिसेज़ अडवानी की साड़ी मुस्तआ’र लेकर आपने क्यों पहनी। ये मैं अभी तक नहीं समझ सकी।

    एक बात और, वो ये कि आपको बग़ैर आस्तीनों का ब्लाउज़ अच्छा मालूम नहीं होता। आपके काँधों पर ज़रूरत से ज़्यादा गोश्त है, जिसकी नुमाइश आँखों पर बहुत गिरां गुज़रती है। आपके जिस्म का ये ऐ’ब आस्तीनों वाले ब्लाउज़ में छुप जाता है। इसलिए आपको हमेशा उसी तराश का ब्लाउज़ पहनना चाहिए।

    ऊंची एड़ी का शूआप क्यों पहनती हैं? आपका क़द माशा अल्लाह काफ़ी ऊँचा है। परसों आपने ग़ैर-मामूली ऊंची एड़ी का सैंडल पहन रखा था। माफ़ फ़रमाईए, मालूम होता था कि आपके पैरों के साथ स्टूल बंधे हुए हैं। ऊंची एड़ी का जूते पहन कर आप आसानी से चल भी नहीं सकतीं। ख़्वाह मख़्वाह क्यों अपने आपको तकलीफ़ देती हैं।

    आप की...

    दूसरा ख़त... मिसेज़ अडवानी के नाम

    मुहतरम बहन,

    तस्लीमात। मैंने पिछले दिनों आपको बांद्रा के मेले पर चंद सहेलियों के साथ देखा था। आपने पीले रंग की जॉर्जट की साड़ी पहन रखी थी, बॉर्डर के बग़ैर। ब्लाउज़ काली साटन का था। खुले गले का, आस्तीनों के बग़ैर। गले पर ज़र्द रंग की साटन का पाइपिंग था और सामने सीने पर उसी रंग का फूल। पांव में आपके सुनहरी सैंडल थी।

    छाता स्याह रंग का था जिसकी मुंठ ज़र्द रंग के सेलोलॉयड की थी। काले बालों में पीला रिबन था। स्याही और ज़र्दी का ये मेल मुझे बहुत पसंद आया था। आपके ज़ौक़ की मैं बेहद मो’तरिफ़ हूँ। रंगों के सही इल्तिज़ाम का आप ख़ूब सलीक़ा रखती हैं। मगर कल आप जब बस पर से उतरीं तो मुझे ये देख कर सख़्त सदमा हुआ कि आपने काली साड़ी के साथ भोसले रंग का ब्लाउज़ पहन रखा है आप के बालों में नीला रिबन गंधा है और जूता सफ़ैद कैनवस का पहन रखा है।

    मेरी समझ में नहीं आता कि आप ऐसी आ’ला ज़ौक़ रखने वाली ख़ातून ने क्यों कर ऐसे भोंडे लिबास में बाहर निकलना गवारा किया और फिर ग़ज़ब ये है कि आप बस में कहीं दूर गई थीं। आइन्दा अगर मैंने आपको ऐसे बेतुके लिबास में देखा तो मुझे इतना सदमा होगा कि मैं बयान नहीं कर सकूंगी।

    एक बात और मेरी समझ में नहीं आई कि आपकी नौकरानी इतना सिंघार क्यों करती है? उसकी उम्र मेरे अंदाज़ के मुताबिक़ अठारह बरस है। बज़ाहिर वो कुंवारी है। इस उम्र में और ख़ासकर कंवारपने में उसका यूं बन-संवर कर सौदा सुल्फ़ लेने बाहर बाज़ार में निकलना उतना ख़तरनाक नहीं जितना कि उसका आपके घर में अपने सिंघार पर तवज्जो देना है। आप उमूमन घर से बाहर रहती हैं और मिस्टर अडवानी चूँकि दफ़्तर नहीं जाते, इसलिए वो अक्सर घर ही में रहते हैं... आपकी ग़फ़लत हद से ज़्यादा बढ़ गई है। मैं इससे ज़्यादा और कुछ नहीं कह सकती।

    मेरा ख़्याल है कि आपकी दाईं आँख बाईं आँख से कुछ छोटी है... अगर आप चश्मा पहना करें तो ये ऐ’ब बिल्कुल दूर हो जाएगा। क्योंकि शीशों में से ये मामूली फ़र्क़ नज़र आएगा।

    हाँ, ये आप अपनी सहेलियों को अपनी साड़ियां पहनने के लिए क्यों दे दिया करती हैं। आपको मालूम होना चाहिए कि ये बिदअ’त मआ’शरती नुक़्ता-ए-नज़र से बहुत बुरी है। इसके इलावा सहेलियां ख़ाह कितनी ही मुहतात हों, मुस्तआ’र कपड़े को निहायत बेदर्दी के साथ इस्तेमाल करती हैं। अगर आप को यक़ीन हो तो उस सफ़ेद साड़ी को ग़ौर से देखिए जो आपने एक रोज़ मिसेज़ कृपलानी को पहनने के लिए दी थी। उसका तले का काम कई जगह से उखड़ गया है।

    बाज़ार में चलते वक़्त आप बार बार साड़ी का पल्लू सँभाला करें। मुझे इससे बड़ी उलझन होती है।

    आपकी...

    तीसरा ख़त... मिस्टर अय्यूब ख़ान इंस्पेक्टर पुलिस के नाम

    मुकर्रमी मोहतरमी,

    सलाम मस्नून

    क्या ऐसा नहीं हो सकता कि आप दिन में दो बार अपनी दाढ़ी मुंडवाना छोड़ दें... मैं समझती हूँ कि नॉर्मल आदमी की दाढ़ी के बाल नॉर्मल हालत में इतनी जल्दी कभी नहीं उगते। पुलिस स्टेशन जाते हुए और वहां से शाम को आते हुए आपका पहला काम ये होता है कि सैलून में दाख़िल हो जाएं...

    मेरा ख़याल है कि आपको MANIA होगया है। अगर आपका दिमाग़ी तवाज़ुन दुरुस्त हो तो कोई वजह नहीं कि आप दिन में दोबार सुबह-ओ-शाम अपनी दाढ़ी पर उस्तरा फिराएं। क्या सैलून का नाई आप की इस अ’जीब-ओ-ग़रीब आदत पर ज़ेरे लब कभी नहीं मुस्कुराया।

    और फिर ये आप अपने सर के बाल किस तौर से कटवाते हैं? वल्लाह बहुत बुरे मालूम होते हैं। गर्दन से लेकर खोपड़ी के बालाई हिस्से तक आप बालों का बिल्कुल सफ़ाया करा देते हैं और कानों के ऊपर तक बारीक मशीन फिरवा कर आख़िर आप क्या फ़ैशन पैदा करना चाहते हैं। हज़रत आपकी गर्दन बहुत भद्दी है और आपके सर के निचले हिस्से पर फोड़ों के निशान हैं जो सिर्फ़ बाल ही छुपा सकते हैं और क्या आपने कभी ग़ौर फ़रमाया है कि बार बार बाल मूंडने से आपकी गर्दन मोटी हो जाएगी।

    आपके कान बहुत बड़े हैं। जिस फ़ैशन की हजामत का आप को शौक़ है, उससे ये और भी ज़्यादा बड़े दिखाई देते हैं। मेरी राय है कि आप क़लमें रखें और कानों के क़रीब से बाल ज़्यादा कटवाएं। गर्दन पर अगर आप थोड़े से बाल उगने दें तो कोई हर्ज नहीं। इससे आपको कोई तकलीफ़ होगी।

    हाथ में छड़ी लेकर जब आप बाज़ार में चलते हैं तो दिमाग़ में इस ख़याल को जगह दिया करें कि हर स्कूल जाने वाली लड़की आपको देख रही है। किसी शाइस्ता मज़ाक़ लड़की की आँखें आपकी तरफ़ नहीं उठ सकतीं। इसलिए कि आप अपने काँधों पर ऐसा भोंडा सर उठाए फिरते हैं जिसको आपके ईजाद करदा फ़ैशन ने और भी ज़्यादा बदनुमा बना रखा है।

    बार बार आप अपने कोट से क्या झाड़ा करते हैं? क्या गर्द-ओ-ग़ुबार के ज़र्रे सिर्फ़ आप ही के कोट पर बैठते हैं... या फिर आप हद से ज़्यादा नफ़ासत पसंद हैं?

    किसी ने मुझसे कहा था कि चालीस बरस के होने पर भी आप कुंवारे हैं? अगर ये सच है तो इससे आपको इबरत हासिल करना चाहिए। मेरा मशवरा लीजिए और दिन में दोबार सैलून में जा कर दाढ़ी मुंडवाना छोड़ दीजिए। ख़ुदा आपकी हालत पर रहम करे।

    आपकी मुख़लिस...

    चौथा ख़त... मिस डीसिल्वा के नाम

    डिअर मिस डीसिल्वा।

    तुम्हारी हालत पर मुझे बहुत अफ़सोस होता है। तुम रोज़ बरोज़ मोटी होरही हो। अगर तुम्हारा मोटापा इसी रफ़्तार से बढ़ता गया तो मुझे अंदेशा है कि तुम किसी मर्द के क़ाबिल रहोगी। स्कूल जाने के लिए जब तुम ‘जिम’ पहन कर घर से निकलती हो तो मेरे दिल में अ’जीब-ओ-गरीब ख़याल पैदा होते हैं। मैं सोचती हूँ कि इस क्रिस्मस पर तुम डांस कैसे कर सकोगी। एक दो क़दमों ही में तुम्हारा पसीना छूट जाएगा और तुम्हारा साथी क्यों कर तुम्हारी बाँहों को हस्ब-ए-मंशा हरकत में लासकेगा।

    तुम्हारी बग़लों के नीचे इस क़दर गोश्त जमा होरहा था कि तुम डांस करने के बिल्कुल क़ाबिल नहीं रही हो। ख़ुदा के लिए अपना ईलाज करो और इस मोटापे को जल्द अज़ जल्द ख़त्म करने की कोशिश करो।

    एक नसीहत मेरी और सुन लो। शाम को तुम हर रोज़ टेरिस पर अकेली जाती हो और सामने वाले मकान पर डीकोस्टा के बड़े लड़के को इशारे करती रहती हो। अव़्वल तो ये शरीफ़ लड़कियों का काम नहीं। दूसरे ये इशारे चर्बी भरे गोश्त के मानिंद भद्दे और बे लज़्ज़त होते हैं। तुम जैसी मोटी लड़कियों को ऐसी इशारेबाज़ी नहीं करनी चाहिए। इसलिए कि इशारा एक लतीफ़ या’नी बारीक और पतली चीज़ का नाम है। तुम्हारे इशारे, इशारे नहीं होते। उनके लिए मुझे कोई और नाम तलाश करना होगा।

    जिस लौंडे के साथ तुम रुमान लड़ाना चाहती हो, उसके मुतअ’ल्लिक़ भी सुन लो। वो एक आवारा मिज़ाज लड़का है। ढाई महीने से काली खांसी में मुब्तला है। माँ-बाप ने नाक़ाबिल-ए-इस्लाह समझ कर उसको अपने हाल पर छोड़ दिया है। उसके पास सिर्फ़ तीन पतलूनें हैं, जिनको बदल बदल कर पहनता है। हर रोज़ अपनी क़मीज़ और पतलून पर वो दो बार इस्त्री करता है ताकि बाहर के लोगों की नज़र में उसकी वज़ा’दारी क़ायम रहे। मुझे ऐसे आदमियों से नफ़रत है।

    तुम अपनी पिंडलियों के बाल उस्तरे से मूंडा करो। बाल उड़ाने के सब पोडर और सब क्रीमें भी फ़ुज़ूल हैं। बाल हमेशा के लिए कभी ग़ायब नहीं हो सकते, इसलिए तुम अपनी पिंडलियों पर ज़ुल्म करो। बाल रहने दो और लंबी जुराबें पहना करो।

    तुम्हारा दोस्त आज दोपहर को अपना फटा हुआ जूता ख़ुद मरम्मत कर रहा था।

    तुम्हारी ख़ैर ख़्वाह...

    पांचवां ख़त... कौशल्या देवी के नाम

    श्रीमती कौशल्या देवी, नमस्कार

    इसमें कोई शक नहीं, अपने घर में हर शख़्स को इख़्तियार है कि वो आरामदेह से आरामदेह लिबास पहने और तकल्लुफ़ात से आज़ाद रहे। मगर देवी जी आप मलमल की बारीक धोती पहन कर इस आज़ादी से नाजायज़ फ़ायदा उठा रही हैं और फिर ये धोती आप कुछ इस ‘बेतकल्लुफ़ी’ से पहनती हैं कि जब आप इत्तिफ़ाक़ से नज़र आजाऐं तो सोचना पड़ता है कि आपको किस ज़ाविए से देखा जाये।

    आपको मालूम होना चाहिए, रोशनी के सामने खड़े होने से आपकी मलमल की धोती का वजूद होने होने के बराबर होता है। आपकी उम्र इस वक़्त चव्वालीस बरस के क़रीब है। उम्र की इस ज़्यादती ने आपके जिस्म को बिल्कुल ढीला कर दिया है। यही वजह है कि बारीक धोती में से आपकी भद्दी टांगों की नुमाइश आँखों पर “गोहांजनी” बन कर रह जाती है।

    आपके फ़्लैट का दरवाज़ा आम तौर पर खुला रहता है और मैंने अक्सर आपको बावर्चीख़ाने के पास यही बारीक धोती पहने देखा है। अगर आपको इसका इस्तिमाल तर्क नहीं करना है तो बराह-ए-करम अपने फ़्लैट का दरवाज़ा बंद रखा करें।

    आप की...

    छटा ख़त... मिस्टर सईद हसन जर्नलिस्ट के नाम

    जनाब-ए-मन, तस्लीम।

    आप हर रोज़ सुबह बालकोनी में पतलून पहनते हैं। आपका ये फ़े’ल कम्यूनिज़्म की बदतरीन मिसाल है। मुझे उम्मीद है कि ये ख़त पढ़ कर आप ज़रूर शर्मसार होंगे और आइन्दा से पतलून शरीफ़ आदमियों की तरह अपने कमरे में पहना करेंगे।

    मुख़लिस...

    मुकर्रर: आपके बाल बहुत बढ़ गए हैं। सैलून आपके मकान के नीचे है, हिम्मत करके आज ही कटवा दें।

    सातवां ख़त... मिसेज़ क़ासिमी के नाम

    खातून-ए-मुकर्रम। अस्सलामु अलैकुम।

    मैं बहुत अ’र्से से आपको ये ख़त लिखने का इरादा कर रही थी मगर चंद दर चंद वजूह के बाइस ऐसा कर सकी। मैंने सुना है कि दो घरों में नफ़ाक़ पैदा करने के लिए आपको बहुत से गुर ज़बानी याद हैं। मिसेज़ अडवानी और मिसेज़ कृपलानी के दरमियान एक दफ़ा आप ही की कोशिशों से रंजिश पैदा हुई थी और पिछले दिनों सेठ गोपाल दास की लड़की पुष्पा के बारे में आपने जो अफ़वाहें मशहूर की थीं, उनसे सेठ गोपाल दास और सेठ राम दास के ख़ानदानों में अच्छा ख़ासा हंगामा बरपा होगया था।

    मुझे आपकी सलाहियतों का ए’तराफ़ है। मगर मैं सोचती हूँ कि अभी तक आपके और मिसेज़ क़ानूनगो के दरमियान कशीदगी पैदा क्यों नहीं हुई। अब तक आपने जिस औरत को अपनी सहेली बनाया है उससे तीसरे चौथे महीने आपकी तू तू मैं मैं ज़रूर होती है, लेकिन मिसेज़ क़ानूनगो से आप की दोस्ती को छः महीने होगए हैं जो कई बरसों के बराबर हैं। मैं अब ज़्यादा देर इंतिज़ार नहीं कर सकती। इस महीने में मिसेज़ क़ानूनगो से आपकी चख़-चख़ ज़रूर होनी चाहिए। आपको अपनी रवायात बरक़रार रखनी चाहिऐं।

    हाँ ये ज़रूर बताईए कि आप कहाँ पैदा हुई थीं। ये तो मुझे मालूम है कि आप पंजाब की रहने वाली हैं। मगर आप का चेहरा नेपालियों और तिब्बतियों से क्यों मिलता जुलता है? आपकी नाक बिल्कुल नेपालियों की तरह चिपटी है और गालों की हड्डियां भी उन्ही की तरह उभरी हुई हैं, अलबत्ता आपका क़द उनकी तरह पस्त नहीं।

    आप ने ईद पर जो साड़ी पहनी थी, मुझे पसंद नहीं आई। आपका ज़ौक़ निहायत फ़ुज़ूल है। अगर आप भड़कीले और शोख़ रंगों के बजाय हल्के रंग के कपड़े इंतख़ाब किया करें तो बहुत अच्छा हो। लंबे क़द की औरतों को खड़ी लकीरों की क़मीज़ नहीं पहननी चाहिए। इससे वो और लंबी हो जाती हैं।

    इसी तरह आपको “पफ़ सेल्युज़” का ब्लाउज़ भी नहीं पहनना चाहिए क्योंकि लंबे क़द की औरतों के लिए ये मौज़ूं नहीं होता और फिर आप तो वैसे ही दुबली पतली हैं। आपके कांधे पर ब्लाउज़ के उठे हुए पफ़ बहुत बुरे मालूम होते हैं।

    आपकी ख़ैरअंदेश...

    आठवां ख़त... मिस राजकुमारी ऐक्ट्रस के नाम

    मिस राजकुमारी,

    मुझे तुम से नफ़रत है। तुम औरत नहीं हो, सूटकेस हो।

    तुम से नफ़रत करनेवाली...

    नवां ख़त... मिस्टर सालेह भाई कंट्रैक्टर के नाम

    जनाब सालेह भाई साहब, तस्लीम।

    मुझे आपके ख़िलाफ़ कोई शिकायत नहीं लेकिन फिर भी मैं आपको पसंद नहीं करती। मालूम क्या वजह है कि आपको देख कर मेरे दिल में ग़ैज़-ओ-ग़ज़ब पैदा हो जाता है। आप बहुत शरीफ़ आदमी हैं। आपकी शक्ल-ओ-सूरत भी कोई ख़ास बुरी नहीं। लेकिन मेरी समझ में नहीं आता कि फिर आप को मैं नापसंदीदगी की निगाह से क्यों देखती हूँ... आपके चेहरे पर यतीमी बरसती है, आपकी चाल भी निहायत वाहियात है।

    आपकी हमदरद...

    दसवां ख़त... मिस रज़िया सलाहुद्दीन के नाम

    डिअर मिस रज़िया, सलाम मस्नून।

    तुम अभी अभी पंजाब के किसी गांव से आई हो। पहले साड़ी पहनने की आदत इख़्तियार करो फिर इस लिबास में बाहर निकलो। तुम्हें ये लिबास पहनने का बिल्कुल सलीक़ा नहीं है। ख़ुदा के लिए अपने आपको तमाशा बनाओ।

    तुम्हारी ख़ैर ख़्वाह...

    स्रोत:

    دھواں

      • प्रकाशन वर्ष: 1941

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