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स्वीटहार्ट

राबिया अलरबा

स्वीटहार्ट

राबिया अलरबा

MORE BYराबिया अलरबा

    (दिल जैसी एक बूँद की क्या औक़ात समुन्दर बीच)

    “अच्छा स्वीटहार्ट अब मैं स्टडी करने जा रहा हूँ। Please Don’t Disturb”

    ये कहते हुए उसने होंट चूमे और उसके रोम-रोम में अपना वुजूद छोड़कर शब-ख़्वाबी का लिबास पहनते ही कमरे से बाहर चला गया। और कमरे का दरवाज़ा बन्द कर दिया।

    स्टडी रुम तन्हा बेडरोज़ की तरह उसका मुन्तज़िर था। उसने लैम्प लाईट आन की, कमरे का दरवाज़ा बन्द किया और आराम से टेक लगाकर बैड पर बैठ गया। फिर बैठे-बैठे ख़ुद ही मुस्कुराने लगा...

    “ये ‘औरतें भी कितनी बेवक़ूफ़ होती हैं, उनके जज़्बों पर तालीम का असर होता है, हालात का। अगर होता है तो ज़बान का... चाहे मर्द की ज़बान कितना ही झूट बोलती हो...”

    मुस्कुराहट मज़ीद फैली तो उसके गालों पर सितारे टिमटिमाने लगे...

    उसने किताब उठाई और पढ़ने लगा। लेकिन उसके पास पढ़ने को किताब से ज़ियादा दिलचस्प चीज़ थी। सो उसने किताब बन्द करके रख दी और साईड टेबल की दराज़ से मोबाइल निकाला।

    “हाँ जान... स्वीटहार्ट। कैसी हो?”

    अभी वो सच-मुच उसकी जान थी। क्योंकि उसने अभी तक उसकी जान नहीं निकाली थी। वो ख़ुद भी जानता था कि मर्द की जान औरत में तब तक होती है जब तक वो उसे तस्ख़ीर नहीं कर लेता।

    “मैंने तुम्हें कहा था ना, इतने फ़ोन किया करो। ये अच्छा नहीं है, मुझे तुम्हारी आदत हो गई तो? मोहब्बत हो गई तो?”

    “ओह हो... यार तुम भी ना... मुस्तक़बिल के ख़ौफ़ में हाल ख़राब करने वाली बात है... अच्छा बस मैं अपने लिए करता हूँ फ़ोन। समझीं... तुम।”

    और वो उसे ये तक कह सकी, “कितने ख़ुद-ग़रज़ हो...”

    वो फ़क़त मुस्कुरा कर देखती और ख़ामोश हो जाती।

    “तुम्हें पता है जान तुम बहुत ख़ूबसूरत हो। बहुत प्यारी सी, जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था ना...’’

    ‘‘लेकिन पता नहीं... ख़ूबसूरत लड़कियों के मुक़द्दर क्यों अच्छे नहीं होते।”

    “अच्छा प्लीज़ बस करो, सब ही मर्द हर औरत की तारीफ़ करते हैं, यू​िनवर्सिटी में हमारे एक प्रोफ़ेसर तो कहा करते थे, औरत बदसूरत होती ही नहीं। बस कुछ ज़ियादा ख़ूबसूरत होती हैं। कुछ कम”

    “छोड़ो... मेरे साथ ये दूसरे मर्दों की बातें किया करो। मुझे अच्छा नहीं लगता, सिर्फ़ अपनी बातें किया करो... सिर्फ़ अपनी...”

    वो जानता था कि औरत को सिर्फ़ बातों से तस्ख़ीर-ओ-मिस्मार किया जा सकता है और बातें... वो तो गुफ़्तगू के ताज-महल तामीर कर सकता था। माहिर आर्कीटेक्ट था।

    “पता है आयान मेरा दिल करता है कि मैं हवाओं में उड़ूँ, बाग़ों में तितलियों की तरह फूलों पे रक़्स करूँ, बारिशों में नहाऊँ...”

    “अच्छा ये बताओ तुम्हारा दिल करता है कि तुम आज़ाद दुनिया में घूमो... एक मर्तबा मैं अयूबिया से भी कहीं आगे निकल गया। वहाँ मैंने एक कपल देखा। दोनों ने जींस और टी.शर्ट पहनी हुई थी। लड़का लड़की की गोद में सर रखे लेटा था... लड़की ज़रा झुकती तो उसके बाल लड़के के चेहरे को छू जाते थे। मुझे बहुत ही अच्छा लगा। मेरी तो ख़्वाहिश ही रही... बहर-हाल... कभी तुमने ऐसा कुछ देखा...”

    “प्लीज़ किया करो ऐसी बातें, तुम जानते हो, मेरी हस्सासियत... मेरा रूमान... रो पड़ूँगी मैं... हक़ीक़त तो नहीं अलबत्ता एक पेंटिंग देखी थी कि एक लड़की दीवान पर टेक लगाए सुस्ता रही है और एक लड़का उसे नर्मी से चूम रहा था। काश मैं वो तस्वीर अपने बेडरूम में लगा सकती...”

    “तुम में जादू है जान... तुमसे जाने क्यों बात करते ही मैं हॉट हो जाता हूँ। मुझसे बर्दाश्त ही नहीं होता। मैं सोचता हूँ अगर तुम मेरी बीवी होतीं तो मुझे कैसे बर्दाश्त करतीं, इतने हॉटमैन को... अच्छा कपड़े उतार दो... मैं अपने होंटों से तुम्हारे बदन को महसूस करना चाहता हूँ...”

    उसकी आँखों में आँसू जाते। कभी तो वो रो पड़ती कि आयान को उसे बा-क़ायदा तसल्लियाँ देना पड़तीं। मगर फिर भी आयान उसके दिल के तार बार-बार बजा देता और वो तड़प-तड़प कर बजने लगती... कि आख़िर उसका सारा वुजूद ला-हासिल इश्क़ में गिरिफ़्तार हो कर नासूर-ए-जाँ बन गया।

    “आयान प्लीज़ ऐसी बातें किया करो”, उसकी आवाज़ भर्रा गई।

    “अच्छा आइन्दा कोशिश करूँगा करूँ। अच्छा जान सोता हूँ, मुझे सुब्ह दफ़्तर भी जाना है”

    और flying kiss की आवाज़ ने उसे एक-दम लर्ज़ा और थरथरा दिया।

    “चलो अब मुझे भी पारी कर दो ना...”

    “नहीं आयान तुमने एक दिन चले ही जाना है। फिर किसको करूँगी। तब मेरा दिल करेगा तो क्या करूँगी?” , वो ये कहते हुए रो पड़ी।

    “अच्छा चलो अब इस लम्हे को ख़राब करो। आँसू साफ़ करो, वर्ना मैं भी रो पड़ूँगा, पारी करो ना!”

    उसने इतने प्यार और मान से कहा कि सोनिया ने रोते-रोते kiss की और फ़ोन बन्द कर दिया।

    आयान उठा। अपने कमरे में गया और अपनी बीवी से लिपट कर सो गया और वो बहुत देर तक जाने किस बात को याद कर के रोती रही...

    ये आँख-मिचौली रोज़ होती रही और रोज़ फ़ोन करने की तकरार, मगर रोज़ ही सोनिया को फ़ोन का इन्तिज़ार रहता और आयान को फ़ोन करने का... कभी-कभी दिन तवील लगते... तो कभी वक़्त थमा-थमा सा लगता मगर...

    “स्वीटहार्ट... डार्लिंग... आज मैंने तुम्हें बहुत मिस किया...”

    “वो क्यों?”, ये कहते हुए उसकी आवाज़ भर आई।

    “मेरा दिल करता है मैं तुम्हें छू लूँ... क्या तुम मुझे छूने दोगी?”

    “नहीं”

    “मगर क्यों? मैं रेप नहीं करूँगा तुम्हारा... मैं ऐसा बन्दा नहीं हूँ... अगर तुम मुझे आज से कुछ साल पहले मिली होतीं ना तो आज मेरी बीवी होतीं... I am one woman person. तुमसे जो तअल्लुक़ है बस पहला और आख़िरी है। इसके बाद किसी से नहीं हो सकता।”

    ये सुनते ही वो रोने लगी और आयान बोलता ही चला गया।

    “और पता है हम दूर पहाड़ों में तन्हा निकल जाते, हमारे कमरे से बाहर आसमान होता या पहाड़ और अन्दर हम दोनों... मेरी और तुम्हारी पसन्द यकजा हो जाती। रेशम का बिस्तर और आफ़ वाईट लाइट्स... और अचानक मेरी आँख खुलती तो मैं देखता कि तुम पलंग पे नहीं हो, इज़्तिराब में इधर-उधर देखता, बाहर आता तो तुम स्लीपिंग सूट में मलबूस आसमान के तारों से बातें कर रही होतीं, मैं तुम्हें गोद में उठाता... और कमरे में ले जाता और कमरा लॉक कर लेता...

    है ना... और इसके बाद मेरी आँख खुल जाती... आह... छोड़ो यार अभी तुम रो पड़ोगी... कि ऐसी बातें किया करो... नहीं करता यार... तुम भी तो कुछ बोलो...”

    “क्या बोलूँ? कुछ बचा ही नहीं बोलने को।”, उसने ज़ब्त करते हुए कहा।

    “अच्छा अगर कोई तुम्हें छूना चाहे तो इसकी क्या शर्त होगी?”

    “निकाह”

    “निकाह... मैं करूँगा तुमसे निकाह...”, मगर लहजे का कश्कोल नफ़ी का तलबगार था।

    “मगर मैं नहीं करूँगी।”

    “लेकिन मैं करूँगा।”

    उसने इसरार किया मगर उसकी आवाज़ में रूह ही नहीं थी। अगर रूह होती तो वो सोनिया की जान की तरह उसकी रूह भी क़ब्ज़ कर लेता।

    “नहीं मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगी।”

    “अच्छा हम हमेशा दोस्त तो रहेंगे ना। हमारा तअल्लुक़ कभी ख़त्म नहीं होगा।”

    “पता नहीं आयान, मैं ऐसा कोई दावे नहीं करती... दोस्ती है ये...?”, उसके दिल को झटका सा लगा।

    “हाँ-हाँ! क्योंकि तुम्हारी शादी हो जाएगी और तुम...”, आयान ने झल्लाकर कहा।

    “प्लीज़”

    सोनिया ने रोते हुए फ़ोन बन्द कर दिया। उसे यूँ लगा जैसे कोई उसके जज़्बों की तौहीन कर रहा है। कि उसके लहजे में तो ज़माने से टकराने की ताक़त ही नहीं थी। जो ताक़त उसकी बातों में थी उसका लहजा उस क़ुव्वत से ख़ाली था।

    कुछ दिन बाद उसका तबादला किसी और महकमे में हो गया और फ़ोन कम होते-होते ख़त्म होने लगे। वो सिम जो सोनिया के लिए ली थी वो बन्द रहने लगी। रैगुलर नम्बर पे सोनिया काल करती नहीं थी। अब सिर्फ़ दफ़्तर का नम्बर था जिस पे सिर्फ़ आयान की आवाज़ सुन सकती थी।

    मगर आयान के पास अब आवाज़ सुनाने के लिए भी वक़्त नहीं था। लेकिन फिर भी एक दिन उसका मुख़्तसर-सा फ़ोन आया और उसने वसीअ-ओ-अरीज़ बातें कर दीं।

    “जान... कैसी हो...? सुनाओ... हाँ जान अली से मेरी बात हुई थी। मैंने उसे बताया है कि तुम्हें उसकी डॉक्यूमेंटरी बहुत अच्छी लगी।”

    “हाँ उसका ई-मेल मिला था।”, उसने बे-दिली से जवाब दिया।

    “जान-ए-मन ये मत समझना कि मैं भूल गया। यार तुम्हें पता नहीं यहाँ कितनी मसरूफ़ियत होती है। मैं तुम्हें बहुत मिस करता हूँ... स्वीटहार्ट अब तुम अपने इर्द-गिर्द ख़ुशियाँ तलाश करो... आई मिस यू...”

    ये कहते ही उसने फ़ोन बन्द कर दिया। उसके लहजे में हल्का सा मक्र था। वो तड़प उठी।

    मैंने कौन सी ख़ुशियाँ माँग ली थीं आयान तुमसे... सच्चे जज़्बों की भीक तक तो माँगी नहीं... कभी तुम्हारे लफ़्ज़ों-जुमलों के नश्तरों तक की शिकायत तो की नहीं तुमसे... और तुम कह रहे हो... वो फूट-फूटकर रोने लगी।

    वो जो चश्म-ए-तसव्वुर में उसके सीने पर सर रख कर सोने की आदी हो गई थी, उसे मालूम हुआ कि चन्द माह से उसे चश्म-ए-तसव्वुर में भी उसके सीने पर जगह क्यों नहीं मिल रही थी।

    वो खुली-खुली आँखें जो बातों से उसका दीदार करती थीं रो-रो कर मुरझा गईं। जैसे चाँद के गिर्द हाले पड़े होते हैं।

    और इश्क़-ए-ज़ालिम ने तड़प कर एक रात आयान के उस नम्बर पर अचानक काल कर दी जो उसका था। फ़ोन मसरूफ़ था। एक दो मर्तबा पहले की तरह आज भी मसरूफ़...

    उसकी तड़प टीसों में बदल गई और उसने सेल ही बन्द कर दिया और बिस्तर की आग़ोश में अपने दुख बाँटने लगी। हक़ीक़तन आज बहुत कुछ खो गया था। उसका अपना वुजूद भी...

    आयान ने चन्द ही लम्हों में सोनिया को कालबैक किया मगर उसका फ़ोन उसके मुक़द्दर की तरह सोया हुआ था।

    उसे ज़रा बौखलाहट हुई।

    मुझे हमेशा की तरह सिम चेंज कर लेनी चाहिए थी। बुरा वक़्त बता के थोड़ी आता है।

    आह, अफ़सोस मेरी वज्ह से किसी को तकलीफ़ हुई, उफ़ गॉड... मेरी वज्ह से किसी का दिल दुखा। लेकिन चन्द साअतों में वो पुर-सुकून हो गया।

    मुस्कुराया और उसी नम्बर पर काल कर दी।

    “और सुनाओ स्वीटहार्ट... आई मिस यू... तुम में जादू है जान...”

    वो सुलगने लगी तो आयान अपनी सोचों में गुम हो गया। उसका दिल कहीं था दिमाग़ कहीं...

    डियर आयान... रीलैक्स... सच यही है... जो हुआ सो हुआ... और ऐसी ख़ूबसूरत लड़कियाँ तो दुनिया और ज़िन्दगी में आती-जाती रहती हैं। यूँ भी यार अली की और उसकी हेलो हाय हो गई है और ये मजबूर और बेबस लड़कियाँ... तो बातों की बाँहों में जल्द जाती हैं। वैसे भी अच्छी लड़की है। ख़ूबसूरत भी है। अली सब सँभाल लेगा। जुनैद ने ये हसीन तोहफ़ा मुझे दिया था। और आज ये ख़ूबसूरत गिफ़्ट मैं अली को दे रहा हूँ।

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