Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

माँ पर शेर

शायरी में महबूब माँ

भी है। माँ से मोहब्बत का ये पाक जज़्बा जितने पुर-असर तरीक़े से ग़ज़लों में बरता गया इतना किसी और सिन्फ़ में नहीं। हम ऐसे कुछ मुंतख़ब अशआर आप तक पहुँचा रहे हैं जो माँ को मौज़ू बनाते हैं। माँ के प्यार, उस की मोहब्बत और शफ़क़त को और अपने बच्चों के लिए उस की जानसारी को वाज़ेह करते हैं। ये अशआर जज़्बे की जिस शिद्दत और एहसास की जिस गहराई से कहे गए हैं इस से मुतअस्सिर हुए बग़ैर आप नहीं रह सकते। उन अशआर को पढ़िए और माँ से मोहब्बत करने वालों के दर्मियान शएर कीजिए।

सब ने माना मरने वाला दहशत-गर्द और क़ातिल था

माँ ने फिर भी क़ब्र पे उस की राज-दुलारा लिक्खा था

अहमद सलमान

बूढ़ी माँ का शायद लौट आया बचपन

गुड़ियों का अम्बार लगा कर बैठ गई

इरशाद ख़ान सिकंदर

शर्म आई है मुझे अपने क़द-ओ-क़ामत पर

माँ के जब होंठ पहोंचे मिरी पेशानी तक

ग़ुलाम हुसैन साजिद

दुआ को हात उठाते हुए लरज़ता हूँ

कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बोसे बीवी के हँसी बच्चों की आँखें माँ की

क़ैद-ख़ाने में गिरफ़्तार समझिए हम को

फ़ुज़ैल जाफ़री

मैं अपनी माँ के वसीले से ज़िंदा-तर ठहरूँ

कि वो लहू मिरे सब्र-ओ-रज़ा में रौशन है

अबुल हसनात हक़्क़ी

दूर रहती हैं सदा उन से बलाएँ साहिल

अपने माँ बाप की जो रोज़ दुआ लेते हैं

मोहम्मद अली साहिल

मैं ने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दें

सिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खा लफ़्ज़-ए-माँ रहने दिया

मुनव्वर राना

माँ बाप और उस्ताद सब हैं ख़ुदा की रहमत

है रोक-टोक उन की हक़ में तुम्हारे ने'मत

अल्ताफ़ हुसैन हाली

अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा

मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है

मुनव्वर राना

एक लड़का शहर की रौनक़ में सब कुछ भूल जाए

एक बुढ़िया रोज़ चौखट पर दिया रौशन करे

इरफ़ान सिद्दीक़ी

माँ मुझे देख के नाराज़ हो जाए कहीं

सर पे आँचल नहीं होता है तो डर होता है

अंजुम रहबर

शहर के रस्ते हों चाहे गाँव की पगडंडियाँ

माँ की उँगली थाम कर चलना बहुत अच्छा लगा

मुनव्वर राना

जिस ने इक उम्र दी है बच्चों को

उस के हिस्से में एक दिन आया

अज्ञात

ताक़ पर जुज़दान में लिपटी दुआएँ रह गईं

चल दिए बेटे सफ़र पर घर में माएँ रह गईं

इफ़्तिख़ार नसीम

इस लिए चल सका कोई भी ख़ंजर मुझ पर

मेरी शह-रग पे मिरी माँ की दुआ रक्खी थी

नज़ीर बाक़री

शहर में कर पढ़ने वाले भूल गए

किस की माँ ने कितना ज़ेवर बेचा था

असलम कोलसरी

किस शफ़क़त में गुँधे हुए मौला माँ बाप दिए

कैसी प्यारी रूहों को मेरी औलाद किया

अंजुम सलीमी

घर की इस बार मुकम्मल मैं तलाशी लूँगा

ग़म छुपा कर मिरे माँ बाप कहाँ रखते थे

साजिद जावेद साजिद

शायद यूँही सिमट सकें घर की ज़रूरतें

'तनवीर' माँ के हाथ में अपनी कमाई दे

तनवीर सिप्रा

दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन

माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है

मुनव्वर राना

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है

माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है

मुनव्वर राना

मैं इस से क़ीमती शय कोई खो नहीं सकता

'अदील' माँ की जगह कोई हो नहीं सकता

अदील ज़ैदी

शाम ढले इक वीरानी सी साथ मिरे घर जाती है

मुझ से पूछो उस की हालत जिस की माँ मर जाती है

अज्ञात

माँ की दुआ बाप की शफ़क़त का साया है

आज अपने साथ अपना जनम दिन मनाया है

अंजुम सलीमी

रात मुझे माँ की तरह गोद में ले ले

दिन भर की मशक़्क़त से बदन टूट रहा है

तनवीर सिप्रा

कहो क्या मेहरबाँ ना-मेहरबाँ तक़दीर होती है

कहा माँ की दुआओं में बड़ी तासीर होती है

अंजुम ख़लीक़

बाप ज़ीना है जो ले जाता है ऊँचाई तक

माँ दुआ है जो सदा साया-फ़िगन रहती है

सरफ़राज़ नवाज़

माँ की आग़ोश में कल मौत की आग़ोश में आज

हम को दुनिया में ये दो वक़्त सुहाने से मिले

कैफ़ भोपाली

हवा दुखों की जब आई कभी ख़िज़ाँ की तरह

मुझे छुपा लिया मिट्टी ने मेरी माँ की तरह

अज्ञात

मुनव्वर माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना

जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती

मुनव्वर राना

किताबों से निकल कर तितलियाँ ग़ज़लें सुनाती हैं

टिफ़िन रखती है मेरी माँ तो बस्ता मुस्कुराता है

सिराज फ़ैसल ख़ान

सामने माँ के जो होता हूँ तो अल्लाह अल्लाह

मुझ को महसूस ये होता है कि बच्चा हूँ अभी

महफूजुर्रहमान आदिल

सुरूर-ए-जाँ-फ़ज़ा देती है आग़ोश-ए-वतन सब को

कि जैसे भी हों बच्चे माँ को प्यारे एक जैसे हैं

सरफ़राज़ शाहिद

अब इक रूमाल मेरे साथ का है

जो मेरी वालिदा के हाथ का है

सय्यद ज़मीर जाफ़री

तेरे दामन में सितारे हैं तो होंगे फ़लक

मुझ को अपनी माँ की मैली ओढ़नी अच्छी लगी

मुनव्वर राना

ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता

मैं जब तक घर लौटूँ मेरी माँ सज्दे में रहती है

मुनव्वर राना

चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है

मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है

मुनव्वर राना

घर लौट के रोएँगे माँ बाप अकेले में

मिट्टी के खिलौने भी सस्ते थे मेले में

क़ैसर-उल जाफ़री

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई

मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई

मुनव्वर राना

माएँ दरवाज़ों पर हैं

बारिश होने वाली है

जमाल एहसानी

तिफ़्ल में बू आए क्या माँ बाप के अतवार की

दूध तो डिब्बे का है तालीम है सरकार की

अकबर इलाहाबादी

एक मुद्दत से मिरी माँ नहीं सोई 'ताबिश'

मैं ने इक बार कहा था मुझे डर लगता है

अब्बास ताबिश

जब चली ठंडी हवा बच्चा ठिठुर कर रह गया

माँ ने अपने ला'ल की तख़्ती जला दी रात को

सिब्त अली सबा

मुद्दतों ब'अद मयस्सर हुआ माँ का आँचल

मुद्दतों ब'अद हमें नींद सुहानी आई

इक़बाल अशहर

कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में

ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है

मुनव्वर राना

माँ ने लिखा है ख़त में जहाँ जाओ ख़ुश रहो

मुझ को भले याद करो घर भूलना

अजमल अजमली

बच्चे फ़रेब खा के चटाई पे सो गए

इक माँ उबालती रही पथर तमाम रात

अब्दुल माजिद नश्तर जबलपुरी

बर्बाद कर दिया हमें परदेस ने मगर

माँ सब से कह रही है कि बेटा मज़े में है

मुनव्वर राना

आज फिर माँ मुझे मारेगी बहुत रोने पर

आज फिर गाँव में आया है खिलौने वाला

नवाज़ ज़फ़र

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

GET YOUR PASS
बोलिए