पानियों की साज़िशों ने जब भँवर डाले 'फ़राज़'
तब्सिरा करते रहे सब डूबते तैराक पर
निकल आई फ़लक की दूर से रूह
भँवर से ख़ूब ये तैराक निकला
ग़ज़ल में प्रयुक्त काफ़िये
मौत अपनी जान ऐ दिल गर्दिश-ए-अफ़्लाक को
डूबने का ख़ौफ़ है गिर्दाब में तैराक को
ग़ज़ल में प्रयुक्त काफ़िये
दिल वो दरिया है जिसे मौसम भी करता है तबाह
किस तरह इल्ज़ाम धर दें हम किसी तैराक पर
या समुंदर से मिरी ख़ाक जुदा कर 'शाहिद'
या बना दे मुझे तैराक मिरी इज़्ज़त रख
ग़ज़ल में प्रयुक्त काफ़िये
इक उम्र से किनारा-ए-बेचारगी पे हूँ
दरिया चढ़ा है और मैं तैराक भी नहीं
ग़ज़ल में प्रयुक्त काफ़िये
तुझ को बिल्कुल नहीं एहसास-ए-हुनर ऐ दरिया
अब तिरे वास्ते तैराक कहाँ से लाएँ
ग़ज़ल में प्रयुक्त काफ़िये
ऐ भँवर तेरी तरह बेबाक हो जाएँगे हम
साथ में रह कर तिरे तैराक हो जाएँगे हम
ज़ोरों पे 'सलीम' अब के है नफ़रत का बहाव
जो बच के निकल आएगा तैराक वही है
ग़ज़ल में प्रयुक्त काफ़िये
दरियाओं की नज़्र हुए
धीरे धीरे सब तैराक