aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

टब का समुंदर

ख़्वाजा हसन निज़ामी

टब का समुंदर

ख़्वाजा हसन निज़ामी

MORE BYख़्वाजा हसन निज़ामी

    आज सुबह जो मैं नहाने के लिए अंदर गया तो क्या देखता हूँ कि एक सब्ज़ रंग का टिड्डा टब में तैर रहा है। कहता होगा मैं समुंदर में गोते खा खाकर जान तेरी याद करता हूँ। ग़ारत करे ख़ुदा तुझको और तेरी जान-ए-जानाँ को मेरे पानी को घिनावना कर दिया।

    देखो तो लंबे-लंबे पाँव फैलाए डुबकियाँ खाता है, दम तोड़ता है मगर रौशनी की उलफ़त का दामन नहीं छोड़ता।

    इस फ़ितरत को ख़ुदा की संवार उसके हाथ में क्या आता है। बरसात में इस कसरत से कीड़े क्यों पैदा करती है और उनको इश्क़ में क्यों मुब्तिला करती है। उसको किसी बशर का भी ख़याल है या नहीं जो अशरफ़-उल-मख़लूक़ात है, जो रात के चुपचाप वक़्त को और फ़ुरसत-व-इतमिनान की घड़ियों को उन कम्बख़्त कीड़ों की बदौलत मुफ़्त रायगाँ करता है।

    अब सुबह हो गई तब भी चैन नहीं और नहीं तो नहाने के पानी में अपने जिस्म का जहाज़ दौड़ा रही हैं। ये सारी कारसतानियाँ नेचर (फ़ितरत) की हैं।

    आज से मुझे कोई मुसव्विर-ए-फ़ितरत कहना। मैं एक आमाद हिन्दा फ़ितरत की तस्वीरकशी से हाथ उठाता हूँ। मेरा उसने नाक में दम कर दिया है।

    टिड्डा साहब टब के समुंदर में जान दे रहे हैं। आरज़ू ये है कि मजनूँ और फ़रहाद के रजिस्टर में उनका नाम भी लिखा जाए। डूब कर मरने का सिला उनको ही मिले। हर्गिज़ नहीं, मैं तुझको मरने ही दूँगा। ज़िंदा निकाल कर फेंक दूँगा। देखो क्योंकर तेरा नाम दफ़्तर-ए-इश्क़ में लिखा जाएगा।

    ख़याल तो करो हज़रत की सूरत क्या सुहानी है। चक्की सा चेहरा, बाल सी गर्दन। लंबा नाव सा बदन उस पर टाँगें शैतान की आँत जानवर है या हौआ है।

    फ़ितरत साहिब की अ'क़्ल के क़ुर्बान जाइए क्या बद-शक्ल परिंदा बनाया है। मैं फ़ितरत होता और इश्क़-बाज़ जानवरों को पैदा करता तो बदन के हर हिस्से को सरापा दर्द सोज़ बनाता जिसके देखते ही दुखे हुए दिल आह-आह करने लगते, जनाब फ़ितरत ने शक्ल बनाई ऐसी और दर्द दिया इश्क़ का क्या वज़उश्-शैय अ'ला ग़ैरे महल काम क्या है।

    ओफ़्फ़ो, बस अब नहीं बताता। सक़्क़ा आए तो ताज़ा पानी भरवाऊँ। जब नहाऊँगा और इस इश्क़बाज़ टिड्डे की फ़रयाद उर्दू अदब से करूँगा।

    स्रोत:

    Chutkiyan Aur Gudgudiyan (Pg. 98-99)

    • लेखक: ख़्वाजा हसन निज़ामी
      • प्रकाशक: अननोन आर्गेनाइजेशन

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

    GET YOUR PASS
    बोलिए