आँख पर 20 लोकप्रिय शेर
आँखें हमारे जिस्म का सिर्फ़ एक हिस्सा नहीं बल्कि हज़ारों दिलकश ख़्वाबों, शायराना ख़यालों का एक क़ीमती ख़ज़ाना भी हैं। शायरों ने महबूब की आँखों की तारीफ़ में जो कुछ लिखा और जितनी बड़ी तादाद में लिखा है वो हैरान करने वाला है। आँख शायरी ऐसे ख़ूबसूरत अशआर का एक गुलदस्ता है जिसे आप ज़रूर पसंद फ़रमाँऐं।
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तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है
तिरे जमाल की तस्वीर खींच दूँ लेकिन
ज़बाँ में आँख नहीं आँख में ज़बान नहीं
जो उन मासूम आँखों ने दिए थे
वो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ
लड़ने को दिल जो चाहे तो आँखें लड़ाइए
हो जंग भी अगर तो मज़ेदार जंग हो
उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है
दो ज़हर के प्यालों में क़ज़ा खेल रही है
कैफ़िय्यत-ए-चश्म उस की मुझे याद है 'सौदा'
साग़र को मिरे हाथ से लीजो कि चला मैं
आँखें न जीने देंगी तिरी बे-वफ़ा मुझे
क्यूँ खिड़कियों से झाँक रही है क़ज़ा मुझे
दिलों का ज़िक्र ही क्या है मिलें मिलें न मिलें
नज़र मिलाओ नज़र से नज़र की बात करो
कहीं न उन की नज़र से नज़र किसी की लड़े
वो इस लिहाज़ से आँखें झुकाए बैठे हैं
उस की आँखें हैं कि इक डूबने वाला इंसाँ
दूसरे डूबने वाले को पुकारे जैसे
हर एक आँख में होती है मुंतज़िर कोई आँख
हर एक दिल में कहीं कुछ जगह निकलती है
अधर उधर मिरी आँखें तुझे पुकारती हैं
मिरी निगाह नहीं है ज़बान है गोया