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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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बेस्ट आग़ोश शायरी

माँ की आग़ोश में कल मौत की आग़ोश में आज

हम को दुनिया में ये दो वक़्त सुहाने से मिले

कैफ़ भोपाली

आज आग़ोश में था और कोई

देर तक हम तुझे भूल सके

फ़िराक़ गोरखपुरी

ग़म-ए-हयात भी आग़ोश-ए-हुस्न-ए-यार में है

ये वो ख़िज़ाँ है जो डूबी हुई बहार में है

शकील बदायूनी

आग़ोश की हसरत को बस दिल ही में मारुँगा

अब हाथ तिरी ख़ातिर फैलाऊँ तो कुछ कहना

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

रात दिन तू है मिरी आग़ोश में

मैं तिरा साहिल मिरा दरिया है तू

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

शब की आग़ोश में महताब उतारा उस ने

मेरी आँखों में कोई ख़्वाब उतारा उस ने

अज़्म शाकरी

ये रौशनी यूँही आग़ोश में नहीं आती

चराग़ बन के मुंडेरों पे जलना पड़ता है

हसन जमील

आग़ोश सीं सजन के हमन कूँ किया कनार

मारुँगा इस रक़ीब कूँ छड़ियों से गोद गोद

आबरू शाह मुबारक

मिरी ज़मीं मुझे आग़ोश में समेट भी ले

आसमाँ का रहूँ मैं आसमाँ मेरा

नजीब अहमद

सोते में वह जो मुझ से हम-आग़ोश हो गए

जितने गिले थे ख़्वाब-ए-फ़रामोश हो गए

जलील मानिकपूरी

ध्यान बाँधूँ हूँ जो मैं उस की हम-आग़ोशी का

देर तक रहती हैं मिज़्गाँ मिरी मिज़्गाँ से लिपट

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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