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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

ज़ुल्मत पर बेहतरीन शेर

ज़ुल्मतों में रौशनी की जुस्तुजू करते रहो

ज़िंदगी भर ज़िंदगी की जुस्तुजू करते रहो

अनवर साबरी

लाख कहते रहें ज़ुल्मत को ज़ुल्मत लिखना

हम ने सीखा नहीं प्यारे ब-इजाज़त लिखना

हबीब जालिब

शिकवा-ए-ज़ुल्मत-ए-शब से तो कहीं बेहतर था

अपने हिस्से की कोई शम्अ' जलाते जाते

अहमद फ़राज़

ग़म-ए-ज़माना तिरी ज़ुल्मतें ही क्या कम थीं

कि बढ़ चले हैं अब इन गेसुओं के भी साए

हफ़ीज़ होशियारपुरी

इक काफ़िर-ए-मुतलक़ है ज़ुल्मत की जवानी भी

बे-रहम अँधेरा है शमएँ हैं परवाने

सिराज लखनवी

शब-ए-फ़िराक़ की ज़ुल्मत है ना-गवार मुझे

नक़ाब उठा कि सहर का है इंतिज़ार मुझे

अनवर साबरी

ज़िंदगी की ज़ुल्मतें अपने लहू में रच गईं

तब कहीं जा कर हमें आँखों की बीनाई मिली

अफ़ज़ल मिनहास

ज़ुल्मतें वहशत-ए-फ़र्दा से निढाल

ढूँढती फिरती हैं घर ख़्वाबों का

अब्दुर रऊफ़ उरूज

मैं ने ज़ुल्मत के फ़ुसूँ से भागना चाहा मगर

मेरे पीछे भागती फिरती मिरी रुस्वाई थी

ताज सईद

ज़ुल्मतों का गुज़र कहाँ मुमकिन

उन का रौशन ख़याल आता है

अबु मोहम्मद वासिल बहराईची

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