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क्यों बुझ गया आवारगी: मोहसिन नक़वी

उर्दू शायरी की दुनिया में मोहसिन नक़वी का नाम बहुत अह्म है।उनकी ग़ज़लों को बड़े-बड़े गायकों ने अपनी आवाज़ दी है। आइए इस चयन के ज़रिए उनके मशहूर शेरों को पढ़ते हैं।

हर वक़्त का हँसना तुझे बर्बाद कर दे

तन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया कर

मोहसिन नक़वी

कल थके-हारे परिंदों ने नसीहत की मुझे

शाम ढल जाए तो 'मोहसिन' तुम भी घर जाया करो

मोहसिन नक़वी

वफ़ा की कौन सी मंज़िल पे उस ने छोड़ा था

कि वो तो याद हमें भूल कर भी आता है

मोहसिन नक़वी

सिर्फ़ हाथों को देखो कभी आँखें भी पढ़ो

कुछ सवाली बड़े ख़ुद्दार हुआ करते हैं

मोहसिन नक़वी

कितने लहजों के ग़िलाफ़ों में छुपाऊँ तुझ को

शहर वाले मिरा मौज़ू-ए-सुख़न जानते हैं

मोहसिन नक़वी

अब तक मिरी यादों से मिटाए नहीं मिटता

भीगी हुई इक शाम का मंज़र तिरी आँखें

मोहसिन नक़वी

ये किस ने हम से लहू का ख़िराज फिर माँगा

अभी तो सोए थे मक़्तल को सुर्ख़-रू कर के

मोहसिन नक़वी

कहाँ मिलेगी मिसाल मेरी सितमगरी की

कि मैं गुलाबों के ज़ख़्म काँटों से सी रहा हूँ

मोहसिन नक़वी

अब के बारिश में तो ये कार-ए-ज़ियाँ होना ही था

अपनी कच्ची बस्तियों को बे-निशाँ होना ही था

मोहसिन नक़वी

जो दे सका पहाड़ों को बर्फ़ की चादर

वो मेरी बाँझ ज़मीं को कपास क्या देगा

मोहसिन नक़वी

मौसम-ए-ज़र्द में एक दिल को बचाऊँ कैसे

ऐसी रुत में तो घने पेड़ भी झड़ जाते हैं

मोहसिन नक़वी

हम अपनी धरती से अपनी हर सम्त ख़ुद तलाशें

हमारी ख़ातिर कोई सितारा नहीं चलेगा

मोहसिन नक़वी

सुना है शहर में ज़ख़्मी दिलों का मेला है

चलेंगे हम भी मगर पैरहन रफ़ू कर के

मोहसिन नक़वी

पलट के गई ख़ेमे की सम्त प्यास मिरी

फटे हुए थे सभी बादलों के मश्कीज़े

मोहसिन नक़वी

वो मुझ से बढ़ के ज़ब्त का आदी था जी गया

वर्ना हर एक साँस क़यामत उसे भी थी

मोहसिन नक़वी

दश्त-ए-हस्ती में शब-ए-ग़म की सहर करने को

हिज्र वालों ने लिया रख़्त-ए-सफ़र सन्नाटा

मोहसिन नक़वी

चुनती हैं मेरे अश्क रुतों की भिकारनें

'मोहसिन' लुटा रहा हूँ सर-ए-आम चाँदनी

मोहसिन नक़वी

बड़ी उम्र के बा'द इन आँखों में कोई अब्र उतरा तिरी यादों का

मिरे दिल की ज़मीं आबाद हुई मिरे ग़म का नगर शादाब हुआ

मोहसिन नक़वी

जो अपनी ज़ात से बाहर सका अब तक

वो पत्थरों को मता-ए-हवास क्या देगा

मोहसिन नक़वी

ढलते सूरज की तमाज़त ने बिखर कर देखा

सर-कशीदा मिरा साया सफ़-ए-अशजार के बीच

मोहसिन नक़वी

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