मोमिन ख़ान मोमिन शायरी
मोमिन ख़ान मोमिन क्लासिक उर्दू शायरी में एक अहम् नाम हैं | उन्होंने उर्दू अदब को अपनी कई बेहतरीन ग़ज़लों से नवाज़ा | कहते हैं , मोमिन के एक शेर को सुन कर ग़ालिब इतने ख़ुश हुए कि उन्होंने अपना पूरा दीवान मोमिन के नाम करने की बात कही थी |
उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन'
आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे
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वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो
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उलझा है पाँव यार का ज़ुल्फ़-ए-दराज़ में
लो आप अपने दाम में सय्याद आ गया
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गो आप ने जवाब बुरा ही दिया वले
मुझ से बयाँ न कीजे अदू के पयाम को
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