मिर्ज़ा रज़ा बर्क़ के 10 बेहतरीन शेर
लखनऊ स्कूल के प्रमुख क्लासिकी शायर / अवध के आख़री नवाब, वाजिद अली शाह के उस्ताद
ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है
वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है
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हमारे ऐब ने बे-ऐब कर दिया हम को
यही हुनर है कि कोई हुनर नहीं आता
दौलत नहीं काम आती जो तक़दीर बुरी हो
क़ारून को भी अपना ख़ज़ाना नहीं मिलता
हम तो अपनों से भी बेगाना हुए उल्फ़त में
तुम जो ग़ैरों से मिले तुम को न ग़ैरत आई
न सिकंदर है न दारा है न क़ैसर है न जम
बे-महल ख़ाक में हैं क़स्र बनाने वाले
अगर हयात है देखेंगे एक दिन दीदार
कि माह-ए-ईद भी आख़िर है इन महीनों में