बहराम जी
ग़ज़ल 11
अशआर 12
कहता है यार जुर्म की पाते हो तुम सज़ा
इंसाफ़ अगर नहीं है तो बे-दाद भी नहीं
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जा-ब-जा हम को रही जल्वा-ए-जानाँ की तलाश
दैर-ओ-काबा में फिरे सोहबत-ए-रहबाँ में रहे
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ढूँढ कर दिल में निकाला तुझ को यार
तू ने अब मेहनत मिरी बे-कार की
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नहीं दुनिया में आज़ादी किसी को
है दिन में शम्स और शब को क़मर बंद
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पता मिलता नहीं उस बे-निशाँ का
लिए फिरता है क़ासिद जा-ब-जा ख़त
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